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कभी यूरोपियन बालिकाओं का पहला स्कूल था डीएसबी कॉलेज, जानें इतिहास

1882 में मिस नोल्स नैनीताल आईं और मेथोडिस्ट स्कूल प्रारंभ करने का प्रयास शुरू किया। उनकी मातृसंस्था जहां से उन्होंने अमेरिका में शिक्षा ग्रहण की थी वैलिसली कॉलेज था इसलिए वह जिस स्कूल की कल्पना कर रही थी उसका नाम वेलिसली गर्ल्स हाईस्कूल रखा गया।

By Skand ShuklaEdited By: Updated: Wed, 09 Dec 2020 11:15 AM (IST)
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कभी यूरोपियन बालिकाओं का पहला स्कूल था डीएसबी कॉलेज, जानें इतिहास

नैनीताल, किशोर जोशी : नैनीताल में 1858 में प्रथम मेथोडिस्ट चर्च की स्थापना के बाद इस धर्म के अनुयायियों की बसासत शुरू हुई। 1882 में मेथोडिस्ट एपीसकोल्स चर्च अमेरिका के वार्षिक सम्मेलन में निर्णय लिया कि शिक्षाविद मिस इ.के. नोल्स नैनीताल में यूरोपियन बालिकाओं के लिए मेथोडिस्ट स्कूल की स्थापना करेंगी। 1881 में इस तरह के विद्यालय को शुरू करने का प्रयास श्रीमती क्रेविंन नैनीताल में कर चुकी थीं, मगर उन्हें सफलता नहीं मिली। 1882 में मिस नोल्स नैनीताल आईं और मेथोडिस्ट स्कूल प्रारंभ करने का प्रयास शुरू किया। उनकी मातृसंस्था जहां से उन्होंने अमेरिका में शिक्षा ग्रहण की थी, वैलिसली कॉलेज था, इसलिए वह जिस स्कूल की कल्पना कर रही थी, उसका नाम वेलिसली गर्ल्स हाईस्कूल रखा गया। शुरुआत में रैमजे हॉस्पिटल के नीचे ब्रदर बट्रीस काशल नामक इमारत में स्थापित किया गया। इसके बाद स्कूल का स्थानांतरण साउथ वुड फिर मल्लीताल फ़ॉरेस्ट लॉज में किया गया।

इतिहासकार प्रो. अजय रावत के अनुसार 1884 में स्कूल में छात्राओं की संख्या में बढ़ोतरी हुई तो चर्च ने स्मगलर्स रॉक इस्टेट खरीद ली। यह इस्टेट पाषाण देवी मंदिर के ऊपर है और क्षेत्रफल 19.99 एकड़ है। शुरुआत के तीन साल इस्टेट के पुराने भवन में विद्यालय चलाया गया। 1887 में इस्टेट में ही दूसरी ईमारत तैयार हो गई। यह उस दौरान भारत के पब्लिक स्कूलों में सर्वोच्च था, किंतु आजादी के बाद इस स्कूल को बंद कर दिया गया, क्योंकि इस विद्यालय में भारतीय मूल की छात्राएं नहीं पढ़ती थीं। इसके बाद भारत में टिंबर किंग ऑफ इंडिया दान सिंह मालदार ने यह इस्टेट खरीद ली।

इस्टेट और पांच लाख रकम सरकार को कर दी दान

प्रो. रावत के अनुसार मालदार की इच्छा थी कि कुमाऊं और गढ़वाल के छात्रों के लिए डिग्री कॉलेज की स्थापना हो। उन्होंने महसूस किया कि पहाड़ के सपन्न परिवारों के युवा उच्च शिक्षा के लिए इलाहाबाद व लखनऊ विवि जाते थे, लेकिन साधारण परिवार के बच्चे उच्च शिक्षा से वंचित हो जाते हैं। इस कारण 1951 में यह इस्टेट व पांच लाख की उत्तरप्रदेश सरकार का दान कर दी और अपने पिता देव सिंह बिष्ट के नाम महाविद्यालय की स्थापना की। उस समय इस कॉलेज को सरकार द्वारा विशेष दर्जा प्रदान किया गया। तमाम कॉलेजों के प्राचार्य इस कॉलेज में पढ़ाने आते थे। 70 के दशक में कुमाऊं विवि बना तो यह परिसर बना दिया गया। उससे पहले आगरा विवि का कॉलेज था।

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