उत्तराखंड में छह जून से होगी गजराज की गणना, नर-मादा के ग्राफ पर रहेगा फोकस
छह जून से उत्तराखंड के जंगलों में गजराज (Elephants) को तलाशने का काम शुरू हो जाएगा। कार्बेट व राजाजी पार्क के अलावा 15 फॉरेस्ट डिवीजन में हाथियों (Elephants) की गणना होगी।
2015 की गणना में कुल 1779 हाथी मिले थे
पांच साल बाद उत्तराखंड में हाथियों (Elephants) की गिनती हो रही है। 2015 में कुल 1779 हाथी मिले थे। प्रशिक्षण ले चुके वनकर्मी 6-8 जून तक बीट के हिसाब से जंगलों की खाक छानेंगे। वन संरक्षक पश्चिमी वृत्त ने बताया कि तराई व भाबर के इलाके में हाथियों का बेहतर वासस्थल है। यह लगातार एक से दूसरे जंगल में मूवमेंट करते हैं।
जेंडर का अनुपात रखता है मायने
पिछली गणना पर एक नर पर ढाई मादा का रेश्यो तक सामने आया था। जो कि मानक के हिसाब से बेहतर था। हाथियों (Elephants) के संरक्षण मेें नर-मादा लिंगानुपात काफी अहम भूमिका निभाता है। महकमे को पूरी उम्मीद है कि बाघों (Tiger) की तर्ज पर उत्तराखंड में हाथियों की संंख्या में भी वृद्धि होगी। एक माह बाद मुख्य वन संरक्षक डाटा को जारी करेंगे।
यहां होगी गणना
ऐसे समझें पहाड़ का ग्राफ
नैनीताल डिवीजन के ज्योलीकोट व कालाढूंगी से उपर, चंपावत डिवीजन की बूम रेंज, रामनगर से सटी अल्मोड़ा की मोहान रेंज, गढ़वाल डिवीजन व लैंसडाउन वन प्रभाग का हिस्सा मैदानी जंगल से सटा है। गढ़वाल व लैंसडाउन कार्बेट (Jim corbatt national park) से सटे हुए हैं। इन जगहों पर पूर्व में कभी हाथियों (Elephants) की उपस्थिति दर्ज हुई। जिसके चलते इन वन प्रभागों के बार्डर एरिया को गणना में शामिल किया गया है।मल पर नहीं आंखों देखी पर फोकस
अब ड्रोन का भी साथ मिलेगा
इस बार बीट के हिसाब से कर्मचारियों की जिम्मेदारी तय होने से आसानी भी होगी। जलस्त्रोतों पर फोकस करते हुए स्टाफ सुबह-शाम तीन-तीन घंटे गिनती में जुटेगा। वन संरक्षक पश्चिमी वृत्त डॉ. पराग मधुकर धकाते ने बताया कि ड्रोन फोर्स की मदद से भी हाथियों की निगरानी होगी। वनकर्मी हाथी दिखने पर उसकी फोटो खींचने के साथ नर, मादा, व्यस्क, अव्यस्क व टस्कर को भी चिन्हित करेगा।