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उत्तराखंड में छह जून से होगी गजराज की गणना, नर-मादा के ग्राफ पर रहेगा फोकस

छह जून से उत्तराखंड के जंगलों में गजराज (Elephants) को तलाशने का काम शुरू हो जाएगा। कार्बेट व राजाजी पार्क के अलावा 15 फॉरेस्ट डिवीजन में हाथियों (Elephants) की गणना होगी।

By Skand ShuklaEdited By: Updated: Fri, 05 Jun 2020 09:45 PM (IST)
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उत्तराखंड में छह जून से होगी गजराज की गणना, नर-मादा के ग्राफ पर रहेगा फोकस
हल्द्वानी, जेएनएन : छह जून से उत्तराखंड के जंगलों में गजराज (Elephants) को तलाशने का काम शुरू हो जाएगा। कार्बेट व राजाजी पार्क के अलावा 15 फॉरेस्ट डिवीजन में बीट के हिसाब से महकमा हाथियों (Elephants) की गणना में जुटेगा। खास बात यह है कि गणना में शामिल कुछ डिवीजन ऐसी भी है जिनका अधिकांश हिस्सा पर्वतीय क्षेत्र में आता है। मगर कुछ जंगल मैदानी वन प्रभाग से सटा होने की वजह से बाॅर्डर पर हाथियों का मूवमेंट चेक किया जाएगा। वहीं, गिनती के दौरान नर व मादा के अनुपात पर खास फोकस रहेगा।

2015 की गणना में कुल 1779 हाथी मिले थे

पांच साल बाद उत्तराखंड में हाथियों (Elephants) की गिनती हो रही है। 2015 में कुल 1779 हाथी मिले थे। प्रशिक्षण ले चुके वनकर्मी 6-8 जून तक बीट के हिसाब से जंगलों की खाक छानेंगे। वन संरक्षक पश्चिमी वृत्त ने बताया कि तराई व भाबर के इलाके में हाथियों का बेहतर वासस्थल है। यह लगातार एक से दूसरे जंगल में मूवमेंट करते हैं।

जेंडर का अनुपात रखता है मायने

पिछली गणना पर एक नर पर ढाई मादा का रेश्यो तक सामने आया था। जो कि मानक के हिसाब से बेहतर था। हाथियों (Elephants) के संरक्षण मेें नर-मादा लिंगानुपात काफी अहम भूमिका निभाता है। महकमे को पूरी उम्मीद है कि बाघों (Tiger) की तर्ज पर उत्तराखंड में हाथियों की संंख्या में भी वृद्धि होगी। एक माह बाद मुख्य वन संरक्षक डाटा को जारी करेंगे।

यहां होगी गणना

कार्बेट व राजाजी पार्क, तराई पश्चिमी, तराई पूर्वी, तराई केंद्रीय, हल्द्वानी, रामनगर डिवीजन, नैनीताल डिवीजन, चंपावत वन प्रभाग, अल्मोड़ा डिवीजन, गढ़वाल डिवीजन, लैंसडाउन डिवीजन, दून वन प्रभाग, मसूरी डिवीजन, नरेंद्रनगर डिवीजन, सोयल डिवीजन कालसी। डॉ. पराग मुधकर धकाते, वन संरक्षक पश्चिमी वृत्त ने बताया कि तीन दिन तक स्टाफ गिनती में जुटेगा। कुछ पहाड़ी डिवीजन का हिस्सा मैदानी जंगल से सटा है। इसलिए उस भाग को भी शामिल किया गया है। पूरी उम्मीद है कि उत्तराखंड हाथियों के संरक्षण में भी अहम भूमिका निभाएगा।

ऐसे समझें पहाड़ का ग्राफ

नैनीताल डिवीजन के ज्योलीकोट व कालाढूंगी से उपर, चंपावत डिवीजन की बूम रेंज, रामनगर से सटी अल्मोड़ा की मोहान रेंज, गढ़वाल डिवीजन व लैंसडाउन वन प्रभाग का हिस्सा मैदानी जंगल से सटा है। गढ़वाल व लैंसडाउन कार्बेट (Jim corbatt national park) से सटे हुए हैं। इन जगहों पर पूर्व में कभी हाथियों (Elephants) की उपस्थिति दर्ज हुई। जिसके चलते इन वन प्रभागों के बार्डर एरिया को गणना में शामिल किया गया है।

मल पर नहीं आंखों देखी पर फोकस

हाथियों (Elephants) की गणना पहले मल विधि से होती थी। मल का घनत्व निकाला जाता था। माना जाता है कि हाथी दिन में करीब 15 बार मल त्याग करता है। साथ ही 20 किमी से ज्यादा अपना ठिकाना भी बदल लेता है। मगर इस बार प्रत्यक्ष को प्रमाण का मुख्य आधार माना जाएगा। विभागीय सूत्रों के मुताबिक करीब चार साल पहले एक एनजीओ द्वारा मल विधि के तहत गणना की गई थी, लेकिन सही परिणाम सामने नहीं आया।

अब ड्रोन का भी साथ मिलेगा

इस बार बीट के हिसाब से कर्मचारियों की जिम्मेदारी तय होने से आसानी भी होगी। जलस्त्रोतों पर फोकस करते हुए स्टाफ सुबह-शाम तीन-तीन घंटे गिनती में जुटेगा। वन संरक्षक पश्चिमी वृत्त डॉ. पराग मधुकर धकाते ने बताया कि ड्रोन फोर्स की मदद से भी हाथियों की निगरानी होगी। वनकर्मी हाथी दिखने पर उसकी फोटो खींचने के साथ नर, मादा, व्यस्क, अव्यस्क व टस्कर को भी चिन्हित करेगा।

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