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हल्द्वानी में रेलवे भूमि पर अतिक्रमण : 15 साल से रह-रहकर उठता मुद्​दा, मगर रेलवे को जमीन मिली न यहां काबिज लोगों को सुकून

encroachment on railway land haldwani हल्द्वानी रेलवे स्टेशन के निकट 29 एकड़ भूमि पर अतिक्रमण बताया जा रहा है। इस भूमि पर करीब 4600 से अधिक परिवार रह रहे हैं। गौलापार निवासी आरटीआई एक्टिविस्ट रवि शंकर जोशी ने इसके खिलाफ हाई कोर्ट में जनहित याचिका दायर की थी

By Rajesh VermaEdited By: Updated: Thu, 29 Sep 2022 08:00 PM (IST)
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रेलवे ने 15 दिन में कब्जा खाली करने का नोटिस दिया था, फिर भी अवैध कब्जे नहीं हटाए जा सके।

हल्द्वानी : Encroachment on Railway Land in Haldwani : शहर के बनभूलपुरा में रेलवे की भूमि पर अतिक्रमण का का मामला फिर सुर्खियों में है। गुरुवार को इस मसले पर अतिक्रमणकारियों की ओर से दाखिल याचिका पर हाई कोर्ट में सुनवाई हुई। जिसके बाद हाई कोर्ट ने इस मामले को दूसरी पीठ को रेफर कर दिया। जो पहले से ही इस मामले में दाखिल एक अन्य याचिका पर सुनवाई कर रही है।

इन क्षेत्रों में बताया जा रहा अतिक्रमण

हल्द्वानी रेलवे स्टेशन के पास करीब 29 एकड़ भूमि है, जिसे रेलवे अपना बताकर यहां रहने वालों को अतिक्रमणकारी बता रहा है। ये इलाके वार्ड एक, 18, 20, 22, 24, गफूर बस्ती, ढोलक बस्ती, नई बस्ती आदि हैं। इन इलाकों में धर्म विशेष की आबादी की बहुलता है। 2020 और 2021 में रेलवे ने इन इलाकों में 15 दिन में कब्जा खाली करने का नोटिस भी दिया था, फिर भी अवैध कब्जे नहीं हटाए जा सके।

15 साल पहले चला था अभियान

रेलवे भूमि पर अतिक्रमण का यह मामला नया नहीं है। अतिक्रमण हटाने के लिए करीब 15 साल पहले बड़े स्तर पर अभियान भी चला था, जिसके बाद मामला हाई कोर्ट पहुंच गया था। इस बीच 2016 में रेलवे ने सीमांकन कर रेलवे स्टेशन के आसपास के क्षेत्रों में पिलर लगा दिए थे।

ये भी पढ़ें : हल्द्वानी के बनभूलपुरा में रेलवे की भूमि पर अतिक्रमण का मामला, हाई कोर्ट ने मामला दूसरी पीठ को भेजा 

29 एकड़ भूमि पर अतिक्रमण

दरअसल, हल्द्वानी रेलवे स्टेशन के निकट 29 एकड़ भूमि पर अतिक्रमण बताया जा रहा है। इस भूमि पर करीब 4600 से अधिक परिवार रह रहे हैं। गौलापार निवासी आरटीआई एक्टिविस्ट रवि शंकर जोशी ने 2016 में इस अतिक्रमण के खिलाफ हाई कोर्ट में जनहित याचिका दायर की थी, जिसके बाद 9 नवंबर 2016 को हाईकोर्ट ने 10 हफ्तों के भीतर रेलवे की जमीन से अतिक्रमण हटाने का आदेश दिया था। कोर्ट ने कहा था कि जितने भी अतिक्रमणकारी हैं, रेलवे पीपी एक्ट के तहत उन्हें नोटिस देकर जनसुनवाई करें। अतिक्रमण हटाने काे आदेश के बाद भी आज तक अवैध कब्जे नहीं हटाए गए। तब से रह-रहकर अतिक्रमण का मुद्​दा उठता आ रहा है। हालांकि यहां रह रहे लोग इसे अपनी जमीन बता रहे हैं।

4365 वादों की हुई सुनवाई

हाई कोर्ट के आदेश के बाद राज्य संपदा अधिकारी पूर्वोत्तर रेलवे इज्जतनगर मंडल में करीब चार साल पहले सुनवाई शुरू हुई थी। रेलवे की रिपोर्ट के मुताबिक, अतिक्रमण की जद में आए 4365 वादों की सुनवाई हुई। जिसमें सभी वादों का निस्तारण हो चुका है। मगर कोई भी अतिक्रमणकारी कब्जे को लेकर ठोस सबूत नहीं दिखा पाया। किसी के पास भी जमीन संबंधित कागजात नहीं मिले।

कई स्कूल, मदरसे-अस्पताल भी अतिक्रमण की जद में

रेलवे की रिपोर्ट में ये भी कहा गया है कि इंदिरानगर व गफूरबस्ती में पांच सरकारी स्कूल व इंदिरानगर में एक प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र भी रेलवे की जमीन पर अतिक्रमण कर बनाए गए हैं।

ये स्कूल बताए जा रहे अतिक्रमण

प्राथमिक विद्यालय लाइन नंबर 17-18, राजकीय इंटर कालेज इंदिरानगर, जूनियर हाईस्कूल लाइन नंबर 17, ललित आर्य महिला इंटर कालेज, चोरगलिया रोड, प्राथमिक विद्यालय इंदिरानगर

चार मदरसे भी यहीं पर

नैनीताल पब्लिक स्कूल मदरसा, निषाद मेमोरियल मदरसा, हयात-ऊलूम मदरसा, मदरसा गरीब नवाज।

ये 5 धार्मिक स्थल भी हैं रेलवे भूमि पर

रेलवे की जमीन पर गोपाल मंदिर, शिव मंदिर समेत पांच मंदिर भी बने हुए हैं। साथ ही 20 मस्जिदें भी हैं। इंदिरानगर व गफूरबस्ती में कई समुदाय के लोग निवासरत हैं। हालांकि ज्यादा आबादी एक समुदाय विशेष की है। इसके अलावा दो पेयजल टैंक भी इंदिरानगर व गफूरबस्ती में रेलवे की जमीन पर बने हुए हैं।

सरकारी योजनाओं का उठा रहे लाभ

यहां रह रहे लोग सभी सरकारी योजनाओं का लाभ भी उठा रहे हैं। राशन कार्ड, आधार कार्ड के साथ ही उनके स्थायी निवास प्रमाणपत्र भी बने हैं। प्रधानमंत्री पीएम आवास योजना से भी सैकड़ों लोग लाभान्वित हो चुके हैं। कई लोगों का ये भी दावा है कि वे नगर निगम को टैक्स भी देते हैं। लोगों के पास बिजली-पानी के कनेक्शन भी है। इसी अाधार पर ये लोग कह रहे हैं कि जमीन उनके नाम पर है। अतिक्रमण होने पर उन्हें सरकारी योजनाओं का लाभ कैसे मिलता।

अतिक्रमण हटाने में 23 करोड़ खर्च होने का अनुमान

अप्रैल में कोर्ट से अतिक्रमणकारियों को बड़ा झटका लगा था। तब हाई कोर्ट ने अतिक्रमण हटाने को लेकर रेलवे से मास्टर प्लान मांगा था। इसके बाद जिला प्रशासन व रेलवे अतिक्रमण हटाने की तैयारियों में जुट गया। जिला प्रशासन ने अतिक्रमण हटाने में करीब 23 करोड़ रुपये लगने का अनुमान जताया था। यही नहीं, 15 मई को प्रशासन के निर्देश पर लोक निर्माण विभाग ने तैयारियां करते हुए बुलडोजर व पोकलैंड के लिए टेंडर भी जारी कर दिया था। टेंडर में कार्य का समय 15 दिन का उल्लेख किया गया है।

अतिक्रमण हटा तो होगा विकास

इस मामले में याचिकाकर्ता रविशंकर जोशी का कहना है कि हल्द्वानी कुमाऊं मंडल का प्रवेश द्वार है। कुमाऊं के विकास के लिए नई ट्रेनों का संचालन जरूरी है। इसके लिए नई लाइनों का निर्माण, वाशिंग-यार्ड, मेंटेनेंस-यार्ड, शंटिंग-लाइनों आदि का निर्माण भी होना है। मगर हल्द्वानी स्टेशन पर भूमि की कमी के कारण ये कार्य नहीं हो पा रहे हैं। अतिक्रमण हटने से पूरे कुमाऊं का विकास होगा। पर्यटन के साथ व्यापारिक-व्यवसायिक गतिविधियों को भी व्यापक बढ़ावा मिलेगा।

क्या कहता है रेलवे

रेलवे इज्जतनगर मंडल के पीआरओ राजेंद्र सिंह के मुताबिक, हाईकोर्ट के आदेश पर अतिक्रमणकारियों को पीपी एक्ट में नोटिस दिया गया था। इनकी सुनवाई रेलवे ने पूरी कर ली है। किसी भी व्यक्ति के पास भूमि के वैध कागजात नहीं पाए गए। इनको हटाने के लिए रेलवे ने डीएम नैनीताल को दो बार पत्र देकर सुरक्षा दिलाने की मांग की। मगर इनका जवाब आज तक नहीं मिला।

क्या कहता है सुप्रीम कोर्ट

दिसंबर 2021 में सुप्रीम कोर्ट ने सभी राज्यों को दिशा निर्देश दिए थे कि अगर रेलवे की भूमि पर अतिक्रमण है तो पटरी के आसपास रहने वाले लोगों को दो सप्ताह और उसके बाहर रहने वाले लोगों को छह सप्ताह के भीतर नोटिस देकर हटाएं, ताकि रेलवे का विस्तार हो सके। इन लोगों को राज्य में कहीं भी बसाने की जिम्मेदारी जिला प्रशासन व राज्य सरकारों की होगी। अगर इनके सभी पेपर वैध पाए जाए हैं तो राज्य सरकारें प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत इनको आवास मुहैया कराएं।

अतिक्रमणकारियों का पक्ष

अतिक्रमणकारियों के हक के लिए संघर्ष कर रहे बनभूलपुरा संघर्ष समिति के अध्यक्ष उवैस राजा ने बताया कि रेलवे ने करीब 4500 मकानों को अतिक्रमण के दायरे में बताया है, जो गलत है। उनका कहना है कि रेलवे ने बरेली इज्जतनगर में किसी भी पक्ष की सही से सुनवाई नहीं की। सबको एक जैसा आदेश बनाकर बेदखली का नोटिस दे दिया। अभी तक नगर निगम ने अपनी जमीन का सीमांकन भी नहीं किया है, जबकि इस इलाके में 400 या 500 लोगों को डीएम की ओर से जमीन के पट्टे भी दिए गए हैं। कुछ का मामला न्यायालय में विचाराधीन है। ऐसे में पहले नगर निगम ये बताए कि इस क्षेत्र में उसकी अपनी कितनी जमीन है। उसके बाद जो जमीन बचती है, उसका अतिक्रमण हटाने से पहले वहां के लोगों को दूसरी जगह बसाने का इंतजाम किया जाए।