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उत्तराखंड के गांव ओढ़ाबासोट में रहते हैं पत्थर तराशने में माहिर देव शिल्पी, ऐसे पड़ा नाम; रोचक है कहानी

Oda Basot पत्थरों को तराश आलीशान भवन व भव्य मंदिरों के निर्माण में महारत हासिल देवशिल्पियों के ओढ़ा बासोट का इतिहास ब्रितानी दौर से जुड़ा है। बंगला आवासीय भवन हों या सामान्य मकानों का निर्माण भगवान ने जो नेमत ओड़ा बासोट के पूर्वजों को बख्शी उसने उन्हें देव शिल्पियों का दर्जा दे दिया। यहां के बाशिंदों को आज भी प्रस्तर शैली का इंजीनियर कहा जाता है।

By deep bora Edited By: Swati Singh Updated: Fri, 02 Feb 2024 03:39 PM (IST)
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नैनीताल जिले के बेतालघाट स्थित ओड़ाबासोट गांव। जागरण
मनीष साह, गरमपानी। बेतालघाट ब्लाक के सुदूर में ब्रितानी अफसर ने कारीगरी से खुश होकर दान दी थी जमीन। गांव कस्बों के नामांतरण की परंपरा बेहद अनूठी रही है। देश काल परिस्थितियां, समसामयिक घटनाक्रम तो अमुक स्थान के नामकरण की वजह रहे ही हैं, भौगोलिक हालात, क्षेत्रीय खूबियां मसलन संबंधित स्थान की जलवायु, मौसम, वनस्पतियां और व्यक्ति विशेष के योगदान का भी बड़ी भूमिका रहती है।

गांवों की विरासत, इतिहास और उससे जुड़े रोचक किस्सों की कड़ी में इस बार फिर सैर कराते हैं बेतालघाट ब्लाक की तरफ। प्रस्तर शैली यानी पत्थरों (ओड़ा) को तराशने और भवन व मंदिर निर्माण में माहिर देवशिल्पियों के हुनर से यहां की विरासत को नाम मिला ओड़ाबासोट।

ब्रितानी दौर से जुड़ा है इतिहास

पत्थरों को तराश आलीशान भवन व भव्य मंदिरों के निर्माण में महारत हासिल देवशिल्पियों के ओढ़ा बासोट का इतिहास ब्रितानी दौर से जुड़ा है। बंगला, आवासीय भवन हों या सामान्य मकानों का निर्माण, भगवान ने जो नेमत ओड़ा बासोट के पूर्वजों को बख्शी, उसने उन्हें देव शिल्पियों का दर्जा दे दिया। यहां के बाशिंदों को आज भी प्रस्तर शैली का इंजीनियर कहा जाता है। वजह पत्थरों को तराश कर उसे जोडने यानी ओढ़ा तैयार करने की कला ही इस गांव की पहचान है।

काम से खुश होकर दान की थी भूमि

ग्राम प्रधान प्रतिनिधि खीमानंद तथा स्थानीय सत्य प्रकाश बुजुर्गों से सुने किस्सों का हवाला दे बताते हैं कि गोरखाराज खत्म होने के बाद जब कुमाऊं में ब्रिटिश शासन आया तो एक बुजुर्ग देवशिल्पी की कारीगरी के बारे में अंग्रेज अफसरों को पता लगा। तब उन्होंने बुजुर्ग शिल्पकार को बड़े ब्रिटिश अधिकारी का बंगला बनाने को कहा। शर्त थी कि पूरा बंगला पत्थरों का बनना चाहिए और फिनिशिंग में खामी नहीं रहे। परीक्षा में पास होने से खुश ब्रिटिश अफसर ने उस बुजुर्ग देवशिल्पी को बेतालाघाट के इस क्षेत्र में भूमि दान में दे दी। प्रथम पुरुष के रूप में उस बुजुर्ग देव शिल्पी का परिवार बढ़ता गया। कालांतर में गांव ओड़ाबासोट कहलाया।

वर्तमान में ऐसा है ओड़ाबासोट

वर्तमान में ओड़ाबासोट में 80 परिवार हैं। आबादी ढाई सौ के आसपास है। पूर्वजों से विरासत में मिली शिल्पकला को युवा पीढ़ी आज भी कायम रखे है। भवन निर्माण में माहिर देवशिल्पी परिवार के सदस्य आधुनिक दौर में भी पत्थर, लकड़ी और टिनशेड के साथ पत्थरों की छत वाले आलीशान भवन बनाने में महारत रखते हैं।

आईएएस अफसर भी दिया

शिल्पकारी यहां के बाशिंदों की आजीविका तो रही ही है। साथ में खेतीबाड़ी को भी ग्रामीण जिंदा रखे हैं। खास बात कि शिल्पकला के साथ इस गांव ने देश को चंद्र प्रकाश आर्या के रूप में आईएएस अधिकारी भी दिया है। वहीं कुछ युवा खुफिया विभाग व सेना में भी भर्ती होकर देश सेवा कर रहे।

यहां स्थित है गांव

हल्द्वानी से 60 किमी पर गरमपानी। यहां से रातीघाट बेतालघाट रोड पर 26 किमी पर पल्सू फिर ऊंचाकोट रोड पर लगभग चार किमी दूर है ओड़ाबासोट गांव।

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