Famous Temple in Champawat: पूर्णागिरि धाम में पूरी होती है हर मनोकामना, सती की नाभि गिरने से बनी सिद्धपीठ
Famous Temple in Champawat टनकपुर के पर्वतीय अंचल में स्थित अन्नपूर्णा चोटी के शिखर में लगभग 3000 फीट की ऊचाई पर है। यहां माता सती की नाभि गिरी थी। नरभक्षी बाघ का शिकार करते समय जिम कॉर्बेट को पूर्णागिरी मंदिर के पास प्रकाश पुंज के दिव्य दर्शन हुए थे।
By Prashant MishraEdited By: Updated: Thu, 23 Jun 2022 01:09 AM (IST)
जागरण संवाददाता, टनकपुर (चम्पवात) : Famous Temple in Champawat: महाकवि कालिदास की रचना में चम्पावत क्षेत्र अलकापुरी के नाम से जाना जाता है। चीन, नेपाल और तिब्बत की सीमा से घिरे और सामरिक दृष्टि से महत्त्वपूर्ण चम्पावत के प्रवेशद्वार टनकपुर से 19 किलोमीटर दूर स्थित यह शक्तिपीठ माँ भगवती की सिद्धपीठों में से एक है।
यह शक्तिपीठ टनकपुर के पर्वतीय अंचल में स्थित अन्नपूर्णा चोटी के शिखर में लगभग 3000 फीट की ऊचाई पर है। यहां माता सती की नाभि गिरी थी। माता द्वारा दिए गए सपने के बाद वर्ष 1632 में श्रीचंद तिवारी ने चोटी पर मंदिर की स्थापना की और विधिवत पूजा अर्चना शुरू की। यहां आने वाले हर भक्त की हर मनोकामना पूर्ण होती है।
मान्यतापुराणों के अनुसार जब सती ने अपने पिता दक्ष के यज्ञ में अपमानित होकर स्वयं को जला डाला तब आक्रोशित भगवान शिव उनके पार्थिव शरीर को आकाश मार्ग से ले जा रहे थे। इस दौरान अन्नपूर्णा चोटी पर सती की नाभि गिर गई। तब से उस स्थल को पूर्णागिरि शक्तिपीठ के रूप में पहचान मिली।
संवत 1321 में गुजरात के श्रीचंद तिवारी यमनों के अत्याचार के बाद जब चम्पावत के चंद राजा ज्ञान चंद के शरण में आए तो उन्हें एक रात सपने में मां पूर्णागिरि ने नाभि स्थल गिरने के स्थान पर मंदिर बनाने का आदेश दिया। तब श्रीचंद तिवारी ने 1632 में यहां मंदिर की स्थापना की और तभी से यहां पूजा अर्चना शुरू हुई। प्रमुख आयोजनमां पूर्णागिरि धम आस्था, भक्ति और श्रद्धा की त्रिवेणी है। यहां वर्ष भर श्रद्धालु शीश नवाते हैं। चैत्र और शारदीय नवरात्र में तो इस धाम में भक्तों का रेला उमड़ पड़ता है। उत्तर भारत ही नहीं अपितु देश भर के लोग यहां मां के दर्शन को आते हैं।
ठूलीगाड़ है धाम का पहला पड़ाव टनकपुर पहुंचने के बाद श्रद्धालु पवित्र शारदा नदी में स्नान कर आठ किमी दूर पहले पड़ाव ठूलीगाड़ पहुंचते हैं। इस स्थान पर धर्म परायण लोगों द्वारा भंडारा लगाया जाता है। बाबा भैरवनाथ हैं मां के द्वारपाल शक्तिपीठ में पहुंचने से पूर्व भैरव मंदिर पर बाबा भैरवनाथ का वास है। जो उनके द्वारपाल के तौर पर खड़े हैं। उनके दर्शन के बाद ही मां के दर्शनों की अनुमति मिलती है। यहां वर्ष भर धूनी जली रहती है। बाबा भैरव को हनुमान का सारथी व शिव का काल रूप भी माना जाता है।
झूठे का मंदिरमां पूर्णागिरि धाम के झूठा मंदिर की भी पूजा की जाती है। कहावत है कि किसी सेठ ने पुत्र रत्न प्राप्त होने पर मां के दरबार में सोने का मंदिर चढ़ाने की प्रतिज्ञा की थी, लेकिन मन्नत पूरी होने के बाद लोभवश उस सेठ ने तांबे में सोने का पानी चढ़ाकर मंदिर बनबाया। जब मजदूर उस मंदिर को धाम की ओर ले जा रहे थे तो विश्राम के बाद वह मंदिर वहां से नहीं उठ सका। तब से इसे झूठे मंदिर के रूप में जाना जाता है। मां पूर्णागिरि के दर्शन के बाद श्रद्धालु इस मंदिर में भी पूजा करते हैं।
सिद्धबाबा के दर्शन से पूरी होती है यात्रा पूर्णागिरि में मंदिर में ऊंची चोटी पर एक सिद्ध बाबा ने अपना आश्रम जमा लिया था। बताते हैं नदी में मां के स्नान के समय वह पहुंच गया। इससे क्रोधित होकर देवी ने सिद्धबाबा को शारदा नदी के पार नेपाल फेंक दिया। बाद में उसके भक्त होने का पता चलने पर देवी ने उससे कहा श्रद्धालुओं की यात्रा तभी पूरी होगी जब वह तुम्हारे भी दर्शन करेंगे। सिद्धबाबा का मंदिर नेपाल के ब्रह्मदेव में स्थापित है। मां पूर्णागिरि के दर्शन के बाद भक्त सिद्धबाबा मंदिर में शीश नवाते हैं।
जिम कॉर्बेट को हुए थे दिव्य पुंज के दर्शन पूर्णागिरि के आसपास का क्षेत्र अंग्रेज शिकारी जिम कॉर्बेट की कर्मस्थली भी रहा है। वर्ष 1929 में नरभक्षी बाघ का शिकार करते समय जिम कॉर्बेट को पूर्णागिरी मंदिर के पास प्रकाश पुंज के दिव्य दर्शन हुए थे। जिम कॉर्बेट ने इस क्षेत्र में पूर्णागिरि से 12 किमी दूरी पर 1938 में टाक गांव में अपने जीवन के अंतिम नरभक्षी बाघ का शिकार किया था।
ऐसे पहुंचे मां पूर्णागिरि पूर्णागिरि धाम पहुंचने के लिए दिल्ली, पीलीभीत, कासगंज से सीधी ट्रेन सेवा है। इसके अलावा त्रिवेणी एक्सप्रेस के माध्यम से भी टनकपुर पहुंचा जा सकता है। श्रद्धालु टनकपुर रेलवे स्टेशन से आधा किमी दूर मुख्य बाजार से टैक्सियों द्वारा पूर्णागिरि जा सकते हैं।
निजी वाहनों से भी सीधे भैरव मंदिर तक जाया जा सकता है। जहां से तीन किमी की खड़ी चढ़ाई पार कर मां के दर्शन किया जा सकते हैं। रोडवेज बसों के जरिए भी श्रद्धालु टनकपुर से ठूलीगाड़ तक जा सकते हैं।यह भी पढ़े : नैना देवी मंदिर, जिसने दिया नैनीताल को अस्तित्व व दूर करतीं हैं भक्तों के नेत्र रोग
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