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Famous Temple of Kashipur: उत्तराखंड का एक ऐसा मंदिर जिसका जीर्णोद्वार स्वयं मुगल शासक औरंगजेब ने कराया

Famous Temple of Kashipur औरगंजेब की बहन जहांआरा का स्वास्थ्य खराब हो गया। उस पर किसी की भी दवा का असर नहीं हो रहा था। माता ने बाल रूप में जहांआरा को दर्शन दिए और उसे कहा कि उसका भाई औरंगजेब मंदिर का जीर्णोद्वार कराये तो वह स्वस्थ हो जाएगी।

By Prashant MishraEdited By: Updated: Sat, 25 Jun 2022 11:07 PM (IST)
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आज भी मंदिर के उपर बनी मस्जिदनुमा आकृति एवं तीन गुंबद इस बात को प्रमाणित करते हैं।
जागरण संवाददाता, काशीपुर : उत्तराखंड प्रदेश के प्रत्येक क्षेत्र का अपना आध्यात्मिक एवं ऐतिहासिक महत्व है। इसी प्रकार देश के ऐतिहासिक विरासत को समेटे काशीपुर की अपनी एक छटा है। शहर पौराणिक व सांस्कृतिक महत्व के लिए पूरे देश में विख्यात है। 

काशीपुर में आदि शक्तिपीठों में से एक है मां बाल सुंदरी का मंदिर है। जिससे जुड़ा इतिहास भी बेहद रोचक है। इस मंदिर का जीर्णोद्धार स्वयं हिन्दू विरोधी क्रूर मुगल शासक औरगंजेब ने किया था। सुनने में यह बात अजीब लगे लेकिन यह सच है। 

मंदिर का इतिहास

मंदिर के मुख्य पंडा विकास अग्निहोत्री बताते हैं कि उनके पूर्वज गया दीन और बंदी दीन कई सौ वर्ष जब यहां से गुजर रहे थे तभी उन्हें यहां पर दिव्य शक्ति होने का अहसास हुआ और उन्हें देवी का मठ मिला। उस समय भारत पर औरंगजेब का शासन चलता था। औरगंजेब ने यहां पर मंदिर बनाने से मना कर दिया। 

इस बीच औरगंजेब की बहन जहांआरा का स्वास्थ्य खराब हो गया। उस पर किसी की भी दवा का असर नहीं हो रहा था। माता ने बाल रूप में जहांआरा को दर्शन दिए और उसे कहा कि उसका भाई औरंगजेब मंदिर का जीर्णोद्वार कराये तो वह स्वस्थ हो जाएगी। 

यह बात जब जहांआरा ने औरंगजेब को बताई तो उसने खुद अपने मजदूर भेज कर मंदिर का जीर्णोद्वार कराया। आज भी मंदिर के उपर बनी मस्जिदनुमा आकृति एवं तीन गुंबद इस बात को प्रमाणित करते हैं। 

प्रमुख आयोजन

52 शक्तिपीठों में से एक चैती परिसर में स्थित शक्तिपीठ बाल सुंदरी मंदिर। माता का यह नाम उनके द्वारा बाल रूप में की गई लीलाओं से पड़ा। इसे पूर्व में उज्जैनी एवं उकनी शक्तिपीठ के नाम से भी जाना जाता था। माता के प्रांगण में चैत्रमास में लगने वाला उत्तर भारत का प्रसिद्ध मेला लगता है। इस मेले को चैती मेला के नाम से जाना जाता है। इसके अलावा नवरात्र पर भी मां के दर्शन को श्रद्धालु उमड़ते हैं।

मंदिर में किसी देवी की मूर्ति नहीं बल्कि एक पत्थर पर बांह का आकार गढा हुआ है, यहां पर इसी की पूजा होती है। चैत्र माह की सप्तमी की रात में माता की सोने की मूर्ति नगर देवी मंदिर से डोले के रूप में बाल सुंदरी मंदिर पहुंचती है। इस दौरान ढोल नगाडों के साथ हजारों श्रद्वालु माता के डोले के साथ चलते हैं।

कहा जाता है कि इस दौरान हिमाचल प्रदेश स्थित ज्वाला देवी के मंदिर की एक ज्योति कम हो जाती है। मंदिर परिसर में एक विशाल कदंब का वृक्ष है, जो नीचे से खोखला होने पर भी उपर से हरा भरा है। 

मान्यता

नवरात्रि के तीसरे दिन मां चंद्रघंटा की पूजा की गई। मां चंद्रघंटा को राक्षसों का वध करने वाली देवी कहा जाता है। मान्यता है कि मां दुर्गा के चौथे रूप मां चंद्रघंटा के माथे पर घंटे के आकार की अर्धचंद्र सुशोभित है और इसलिए इन्हें मां चंद्रघंटा के नाम से पूजा जाता है।

इसके साथ ही नवरात्रि के चौथे दिन रविवार को माता दुर्गा के 'कुष्मांडा' रूप की पूजा की जाती है। अपनी मंद मुस्‍कान द्वारा ब्रह्मांड की उत्‍पत्ति करने के कारण देवी के इस रूप को कुष्मांडा कहा गया। ऐसी मान्‍यता है कि जब दुनिया नहीं थी, तब इसी देवी ने अपने हास्य से ब्रह्मांड की रचना, इसीलिए इन्‍हें सृष्टि की आदिशक्ति कहा गया है।

बुक्सा जनजाति की कुल देवी हैं मां बाल सुंदरी

आदिशक्ति की बाल रूप में पूजा होने के कारण ही इसे बाल सुंदरी कहा जाता है। माता बाल सुंदरी बुक्सा जाति की कुल देवी हैं। आज भी बुक्सा जाति के लोग वर्ष में एक बार माता विधिवत पूजन करने आते हैं और जागरण व भंडारे का आयोजन करते हैं।

ऐसे पहुंचे चैती माता मंदिर

चैती माता मंदिर पहुंचने के लिए फ्लाइट, बस और ट्रेन की सुविधा है। दिल्ली-लखनऊ आदि शहरों से सीधे पंतनगर की फ्लाइट ली जा सकती है। पंतनगर से बस या टैक्सी से काशीपुर आया जा सकता है। पंतनगर से करीब करीब 60 किलोमीटर की दूरी पर मंदिर है।

इसके साथ ही सड़क मार्ग से दिल्ली, गाजियाबाद, लखनऊ, मुरादाबाद, हल्द्वानी से ट्रेन और बस की सुविधा है। बस से आने पर मुराबाद से राम नगर रूट पर मंदिर स्थित है।

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