उत्तराखंड में किया जाएगा औषधीय और दुर्लभ प्रजातियों का संरक्षण
उत्तराखंड में अब औषधीय और दुर्लभ वनस्पतियों का संरक्षण किया जाएगा। इसके लिए वन विभाग तैयारियों में जुट गया है।
हल्द्वानी, [जेएनएन]: औषधीय और दुर्लभ वनस्पतियों के संरक्षण को लेकर वन विभाग कवायद में जुटा हुआ है। विभाग कई ऐसे प्रोजेक्ट पर काम कर रहा है। जो इन वनस्पतियों को सहेजने में कारगर साबित होंगे।
उत्तराखंड में वानस्पातिक प्रजातियों की लंबी श्रृंखला पाई जाती है। खासकर उच्च हिमालयी क्षेत्र तो दुर्लभ प्रजातियों का गढ़ है। इस वजह से इनके संरक्षण को लेकर ठोस पहल जरूरी है। 10-12 हजार फीट की ऊंचाई पर पाए जाने वाली दुर्लभ हत्था जड़ी को लेकर वन अनुसंधान शाखा ने काम करना शुरू किया है। इसके अलावा ब्रह्मकमल, बुरांश की सफेद रंग की झाड़ीनुमा प्रजाति के अलावा आर्किड की दुर्लभ प्रजाति की पौध भी तैयार करने का निर्णय लिया गया। नर्सरी के माध्यम से इन दुर्लभ प्रजातियों को संरक्षित किया जाएगा। व
हीं एफटीए स्थित वन अनुसंधान केंद्र पांच दर्जन से अधिक मेडिकल उपयोग से जुड़े पौधों पर पहले से काम कर रहा है। अलग-अलग भौगोलिक वातावरण में पाए जाने वाली कुछ औषधियों को भी कड़ी मेहनत के बाद यहां संरक्षित किया जा चुका है। अनुसंधान केंद्र की प्रदेश में छह शोध केंद्र और चार बीज रेंज मौजूद है।
दुर्लभ होने से पहले 25 प्रजातियों का संरक्षण
दुर्लभ होने के कगार पर आने से पहले 25 वानस्पतिक प्रजातियों को वन विभाग ने संरक्षण करने का प्रयास किया है। हल्द्वानी वन प्रभाग ने गौलापार के सुल्तानगरी में दुर्लभ पेड़ प्रजाति संरक्षण केंद्र स्थापित कर औषधि, फल और चारा पैदा करने वाले पौधों को तैयार किया है। केंद्र में उन पौधों की नर्सरी तैयार की गई है। जो कि स्थानीय स्तर पर विलुप्त होने के कगार पर है। केंद्र का मुख्य उद्देश्य इन पौधों का जीन बैंक तैयार करना है।
टनकपुर में औषधीय और सगंध केंद्र
हल्द्वानी वन प्रभाग द्वारा शारदा रेंज टनकपुर में औषधीय, संगध और वृक्ष प्रजाति संरक्षण एवं विकास केंद्र खोला है। यहां मेडिकल प्लांट से लेकर मसाला प्रजाति के पौधे लगाए जाते हैं। केंद्र में तेजपत्ता, करीपत्ता, आंवला, रीठा, तुलसी, करौंदा, लेमन ग्रास, जख्या समेत एक दर्जन मसाले पौधे तैयार किए गए है। बकायदा ग्रामीणों को मसाला खेती करने का तरीका भी समझाया जाता है।
सुल्ताननगरी केंद्र में संरक्षित प्रजातियां
मेडिकल प्लांट में थेनेल, पदल, पुला, मैदा, चिरोंगी, बोरांग के अलावा जंगली फल प्रजाति में फाल्सा, सल्लू, केंथ, कुंभी, अमरा, बरना, भिलावा, मेनफॉल, पटनाला सुल्ताननगरी स्थित केंद्र में संरक्षित किए गए हैं। इसके कई चारा प्रजाति भी केंद्र में तैयार हो चुकी है।
डीएफओ डॉ. चंद्रशेखर सनवाल का कहना है कि सुल्तानगरी में बने संरक्षण केंद्र में स्थानीय स्तर पर दुर्लभ होने के कगार पर पहुंच चुकी वनस्पतियों तैयार की गई हैं। पर्यावरण और पारिस्थितिक तंत्र के बीच संतुलन बनाए रखने को इनका संरक्षण जरूरी है।
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