उत्तराखंड के पर्वतीय जिलों में उच्च शिक्षा की बुनियाद ही कमजोर, पढ़ें जागरण की खास रिपोर्ट
पहाड़ में शिक्षा की बुनियाद को मजबूत करने के दावे खोखले हैं। जहां-तहां मनमाने तरीके से राजनीतिक हित के लिए महाविद्यालय खोल दिए गए लेकिन इनमें गुणवत्ता का ध्यान नहीं रखा गया। अल्मोड़ा जिले में लोग लंबे समय से उच्च शिक्षा के लिए पलायन करने को मजबूर हैं।
By Skand ShuklaEdited By: Updated: Wed, 01 Sep 2021 01:17 PM (IST)
जागरण टीम, हल्द्वानी : पहाड़ में शिक्षा की बुनियाद को मजबूत करने के दावे खोखले हैं। जहां-तहां मनमाने तरीके से राजनीतिक हित के लिए महाविद्यालय खोल दिए गए, लेकिन इनमें गुणवत्ता का ध्यान नहीं रखा गया। प्राचीन समय से ही शिक्षा व संस्कृति के लिए प्रसिद्ध रहे अल्मोड़ा जिले में लोग लंबे समय से उच्च शिक्षा के लिए पलायन करने को मजबूर हैं। कहीं शिक्षक हैं तो छात्र नहीं। कई जगह भवन भी नहीं। व्यावसायिक पाठ्यक्रमों की स्थिति भी निराशाजनक है। कुमाऊं में उच्च शिक्षा की हकीकत की पड़ताल करते हुए जागरण अभियान की प्रस्तुत है यह पहली स्टोरी।
14 महाविद्यालय, चार के पास अपने भवन नहींकुमाऊं के प्रतिष्ठित एसएसजे परिसर अल्मोड़ा ने लाज तो रखी है, मगर विकासखंड स्तर पर खोले गए 14 महाविद्यालयों में से चार के पास अपने भवन तक नहीं हैं। विज्ञान जैसे अहम विषय का पाठ्यक्रम तक नहीं हैं। प्रयोगशालाएं भी महज नाम की हैं। जिले में 6188 छात्रों के लिए 205 प्राध्यापकों के पद सृजित हैं, लेकिन कार्यरत सिर्फ 173 हैं। 22 संविदा पर रखे गए हैं। बाकी विषयों के विद्यार्थी कैसे पढ़ते होंगे, इसकी फिक्र किसी को नहीं है।
पशु चिकित्सालय में लमगड़ा डिग्री कॉलेज जिला मुख्यालय से कुछ ही दूर पर स्थित है लमगड़ा। जहां डिग्री कॉलेज तो खोल दिया गया, लेकिन सुविधाओं का पता नहीं। यह कॉलेज पशु चिकित्सालय में संचालित हो रहा है। प्राइमरी स्तर से भी कम यानी 130 छात्र संख्या वाले डिग्री कॉलेज सल्ट के पास भी अपना भवन नहीं है। वर्षों से जीआइसी नेवलगांव में संचालित हो रहा है। इंटरनेट कनेक्शन लिया है, लेकिन वहां नेटवर्क ही नहीं है। ऑनलाइन शिक्षा के नाम पर कुछ भी नहीं।
मानिला, जैंती, भिकियासैंण कॉलेज में भी महज खानापूर्ति सल्ट ब्लॉक के मानिला में भी डिग्री कॉलेज खोल दिया। फोर जी कनेक्शन भी दिया, लेकिन चलता नहीं। लैब है, पर चलाने वाले नहीं हैं। अंग्रेजी विषय का पाठ्यक्रम शुरू करा दिया, पर शिक्षक तैनात ही नहीं हैं। भिकियासैंण डिग्री कॉलेज का हाल भी कुछ ऐसे ही है। रोजगारपरक पाठ्यक्रम के नाम पर स्पोकन इंग्लिश व कंप्यूटर साइंस को शामिल किया गया है, लेकिन पढ़ाई शुरू नहीं हो सकी है। स्याल्दे महाविद्यालय में 400 विद्यार्थी हैं। दुर्भाग्य देखिए, यहां भी अंग्रेजी व गणित विषयों के शिक्षक नहीं हैं। 278 छात्र संख्या वाले जैंती महाविद्यालय में गणित विषय के शिक्षक नहीं हैं। रोजगार पाठ्यक्रम में सुगंधित व औषधीय पौधों की खेती का प्रशिक्षण शामिल किया है। यह कोर्स शुरू नहीं हो सका है।
कॉलेज जाने का न रास्ता भी ठीक नहींराजकीय डिग्री कॉलेज सोमेश्वर में स्नातक स्तर पर राजनीति, कंप्यूटर व गृह विज्ञान, संस्कृत तथा योग विषय नहीं हैं। कॉमर्स व विज्ञान संकाय के लिए भवन नहीं है। महाविद्यालय के लिए बना मार्ग खस्ताहाल है। जबकि वहां पर 552 छात्र-छात्राएं हैं। द्वाराहाट महाविद्यालय में 38 वर्ष पुराने स्वतंत्रता सेनानी मदनमोहन उपाध्याय स्नातकोत्तर महाविद्यालय में एमएससी की कक्षा ही नहीं संचालित हो रही है। एमए में केवल समाजशास्त्र, इतिहास तथा राजनीति शास्त्र विषय हैं। स्नातक कला वर्ग में भी विषयों का टोटा। 1983 में कॉलेज खुलने से अब तक मात्र छह विषय पढ़ाए जा रहे हैं।
ये है दिक्कत - रोजगारपरक पाठ्यक्रमों का अभाव है।- शिक्षकों की पर्याप्त संख्या नहीं है।- प्रयोगशालाएं भी आधी-अधूरी हैं।- ऑनलाइन शिक्षा भी महज खानापूर्ति।- मनपसंद विषय भी नहीं ले सकते हैं।- संसाधनों का पर्याप्त व्यवस्था न होना।सत्ता बदलते ही अधर में लटक गया कॉलेज विधायक जागेश्वर गोविंद सिंह कुंजवाल ने बताया कि लमगड़ा में महाविद्यालय हरीश रावत सरकार में स्वीकृत हुआ। हमने करीब तीन लाख रुपये का बजट मंजूर कराया। जमीन तलाशी। सत्ता बदलते ही भाजपा ने मामला लटका दिया। मैं तीन दिन उपवास पर बैठा। गांव वालों ने भूमिदान की। अब सरकार कह रही है 2.94 करोड़ रुपये स्वीकृत कर दिए हैं लेकिन जीओ का पता ही नहीं है। सरकार उच्च शिक्षा के प्रति उदासीन है।
सब्जी मंडियों की तरह महाविद्यालय खोल दिएजीबी पंत कृषि एवं प्रौद्योगिकी विवि पंतनगर के पूर्व छात्र प्रकाश जोशी का कहना है कि पहले गिने-चुने महाविद्यालय थे तो शिक्षा पर ज्यादा फोकस था। शिक्षक पर्याप्त थे। अब सब्जी मंडियों की तरह महाविद्यालय खोल दिए हैं। मौजूदा जरूरत के अनुरूप विषय हैं ही नहीं। पुराने विषयों को पढ़ा कर मात्र कथित साक्षरों की भीड़ बढ़ाई जा रही है। रोजगारपरक शिक्षा की तरफ ध्यान नहीं है। जमीनी शिक्षा यानी यांत्रिक कृषि व बागवानी आधारित रोजगारपरक पाठ्यक्रम शुरू करने की जरूरत है। यह नौकरी से लेकर खेती को बढ़ावा देने में कारगर कदम होगा। पहाड़ की जटिलताओं व ग्रामीण परिवेश को देखते हुए उच्च शिक्षा का ढांचा तैयार किया जाना चाहिए।
महाविद्यालयों का अपना भवन होना चाहिएविभागाध्यक्ष इतिहास एसएसजे परिसर प्रो. बीडीएस नेगी ने बताया कि उच्च शिक्षा में गुणवत्ता के लिए यूजीसी के मानकों का पालन जरूरी है। महाविद्यालयों का अपना भवन होना ही चाहिए। छात्र संख्या के आधार पर शिक्षकों की तैनाती व विषय विशेषज्ञता का ध्यान रखा जाए। सभी लैब प्रयोगात्मक उपकरणों से लैस हों। विश्वविद्यालयों को भी महाविद्यालयों के विकास को आगे आना होगा।
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