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ब्रह्मांड के महाविस्फोट से गामा-रे से निकली शक्तिशाली ऊर्जा का चला पता, खोज में एरीज के भी वैज्ञानिक

ब्रह्मांड के महाविस्फोट से गामा-रे यानी जीआरबी से निकली शक्तिशाली ऊर्जा का पता लगाने में खगोल वैज्ञानिकों को महत्वपूर्ण कामयाबी मिली है।

By Skand ShuklaEdited By: Updated: Sat, 23 Nov 2019 11:30 PM (IST)
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ब्रह्मांड के महाविस्फोट से गामा-रे से निकली शक्तिशाली ऊर्जा का चला पता, खोज में एरीज के भी वैज्ञानिक
नैनीताल, जेएनएन : ब्रह्मांड के महाविस्फोट से गामा-रे यानी जीआरबी से निकली शक्तिशाली ऊर्जा का पता लगाने में खगोल वैज्ञानिकों को अहम कामयाबी मिली है। इस तरह की यह पहली खोज है, जिसमें आर्यभटट् प्रेक्षण विज्ञान शोध संस्थान एरीज के वैज्ञानिक डॉ. शशिभूषण पांडे व डॉ. कुंतल मिश्रा का भी महत्वपूर्ण योगदान रहा है। उनका शोधपत्र नेचर एस्ट्रोनॉमी पत्रिका में प्रकाशित होने जा रहा है।

विस्फोट में उच्चतम उर्जा के कणों का पता लगाया गया

बुधवार को प्रेसवार्ता में एरीज के निदेशक डॉ. वहाबउद्दीन ने बताया कि यह विस्फोट 14 जनवरी 2019 को हुआ था, जो संक्षिप्त व बेहद शक्तिशाली था। इस विस्फोट में उच्चतम उर्जा के कणों का पता लगाया गया। इस विस्फोट का नाम जीआरबी 190114सी दिया गया है। शोध कार्य में दुनिया के बीस देशों के वैज्ञानिक शामिल हुए थे। ब्रह्मांड के विशाल तारों के गूढ़ रहस्यों को जानने में यह खोज मददगार होगी। एरीज के अलावा आइआइएसटी त्रिवेंद्रम की प्रो. एल रश्मि व शोध पार्षद एसवी चेरूकरी व वी जैसवाल भी शोध में शामिल रहे थे।

विस्फोट दूसरी आकाशगंगा में हुआ

शोध में शामिल रहे डॉ. शशिभूषण पांडे ने बताया कि इस खोज में स्पेन की दस मीटर जीटीसी दूरबीन की मदद ली गई, जबकि डॉ कुंतल मिश्रा ने पूना स्थित रेडियो टेलीस्कोप से अध्ययन किया। यह विस्फोट पृथ्वी से 4.5 बिलियन प्रकाश वर्ष दूरी पर दूसरी आकाशगंगा में हुआ था। इस खोज में दुनिया के दो दर्जन से अधिक वेधशाला का सहारा लिया गया। उन्होंने कहा भविष्य में सूर्य से कई गुना बड़े तारों से निकलने वाली ऊर्जा का पता लगाया जा सकता है। आमतौर पर ऐसे विस्फोट बाहरी आकाशगंगा में बहुत होते हैं। इस तरह के विस्फोट हमारी आकाशगंगा में भी संभव हैं।

अंतरिक्ष के दूरबीनों की भी ली गई मदद

डॉ. कुंतल मिश्रा ने कहा कि इस खगोलीय घटना में उच्चतम उर्जा को मापा जा सका है। इसमें धरती की दूरबीनों से ही नहीं बल्कि अंतरिक्ष में स्थापित दूरबीनों की मदद भी ली गई। इससे भविष्य में जीआबी की भौतिक गतिविधियों के बारे में पता लगाने में आसानी होगी।

एरीज के वैज्ञानिकों को भी खासा अनुभव

डॉ. वहाबउद्दीन ने कहा कि एरीज के वैज्ञानिकों को खासा अनुभव है। पूर्व में जीआरबी 160625 बी की खोज में एरीज के वैज्ञानिक शामिल रह चुके हैं। जिसमें डॉ. कुंतल मिश्रा व डॉ. शशिभूषण पांडे ने को-आर्थर के रूप में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। 

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