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वैदिक ज्ञान से सुधरेगी खेती की "सेहत", पंत विश्वविद्यालय ऋषि परासर व सुरपाल के ग्रंथों पर करेगा शोध

हरित क्रांति में अग्रणी भूमिका निभाने वाला गोविंद बल्लभ पंत कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय अब वैदिक कृषि की विरासत को सहेजेगा। खेती से जुड़े ग्रंथों के साथ वेदों में वर्णित विधियों को अपनाकर खेती की सेहत और किसानों की आर्थिक स्थिति भी सुधारेगा।

By Skand ShuklaEdited By: Updated: Wed, 13 Jan 2021 07:11 PM (IST)
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खेती के लिए वेदों की ओर लौटेगा पंत विश्वविद्यालय, ऋषि परासर व सुरपाल के ग्रंथ आएंगे काम

रुद्रपुर, अरविंद कुमार सिंह : हरित क्रांति में अग्रणी भूमिका निभाने वाला गोविंद बल्लभ पंत कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय अब वैदिक कृषि की विरासत को सहेजेगा। खेती से जुड़े ग्रंथों के साथ वेदों में वर्णित विधियों को अपनाकर खेती की सेहत और किसानों की आर्थिक स्थिति भी सुधारेगा। पहले चरण में कृषि आधारित ग्रंथों को संकलित किया जा रहा है। इसके लिए विशेष ग्रंथागार बनाया गया है, जहां वैदिक कृषि से जुड़ी पराशर स्मृति व ऋषि सुरपाल रचित वृक्षायुर्वेद सहित अन्य दुर्लभ ग्रंथों का संकलन किया जा रहा है।

शोध के अनुसार वैदिक विधि से होने वाली पारंपरिक खेती में मिट्टी की सेहत के साथ उत्पाद की गुणवत्ता भी बरकरार रहती थी। समय के साथ किसान परंपरागत खेती से दूर होते गए और वैदिक ज्ञान भूलते गए। इसका असर मिट्टी की सेहत के साथ भूजल स्तर की गुणवत्ता पर भी पडऩे लगा। ऐसी स्थिति में पंत विश्वविद्यालय ने वैदिक खेती की ओर रुख किया है। जानकारी जुटाने के लिए वैदिक खेती से जुड़े ग्रंथों को संकलित किया जा रहा है। आज विश्वविद्यालय के पास प्राचीन कृषि ग्रंथों का बेहतर संकलन है, जिसकी मदद से शोध छात्र व कृषि विज्ञानी वैदिक खेती की विधियों, प्रसार, शोध, तकनीक की जानकारी हासिल करेंगे। बाद में वह किसानों को भी प्रशिक्षित करेंगे।

खेती की रही समृद्ध विरासत

ऋषि पराशर की पराशर स्मृति, ऋषि सुरपाल की वृक्षायुर्वेद जैसे ग्रंथों में पुरातन कृषि विधि, प्रसार, मृदा, जल व पर्यावरण संरक्षण के साथ उत्पाद की गुणवत्ता का भी जिक्र है। जैविक खेती के तरीके भी बताए गए हैं। इसी परंपरागत विधि के माध्यम से एक बार फिर पंत विश्वविद्यालय देश को वैदिक कृषि की सीख देगा।

गौ आधारित रही व्यवस्था

कृषि गीता में वैदिक खेती को गौ आधारित बताया गया है। हर घर में गोपालन एवं पंचगव्य आधारित कृषि का वर्णन है। गोबर-गोमूत्र युक्त खाद, पंचगव्यों का घर-घर में उत्पादन किया जाता था। अथर्ववेद में तो गोशाला में निर्भय होकर एवं परस्पर मिलकर रहती हुई श्रेष्ठ (गोबर) की खाद उत्पन्न करने वाली और शांत व मधुर रस (दूध) को धारण करती हुई गौएं निरोग स्थिति में हमारे पास रहें का वर्णन है।

घी-दूध एवं शहद का भी प्रयोग

खेती को उपजाऊ बनाने के लिए घी-दूध एवं शहद का भी प्रयोग किया जाता था। यजुर्वेंद में माधुर्य गुण युक्त अन्नों के उत्पादन का वर्णन है।

-मधुमतीर्न इषस्कृधि। यजुर्वेद 7.2

-धृतेन सीता मधुनासम्ज्यताम। ज्पयसा पिन्वमाना।। यजुर्वेद 12.70

अभी इन ग्रंथों को मिली जगह

  • कृषि पराशर
  • कृषि संग्रह
  • पराशर तंत्र
  • वृक्षायुर्वेद
  • कृषि गीता
  • नुश्क दर फन्नी फलहत (फारसी)
  • विश्ववल्लभ
  • लोकोपकार
  • उपवन विनोद
  • अर्थशास्त्र

ऋषि मृदा की प्रकृति, क्षमता, संरचना को बेहतर समझते थे

पंत विवि के डीन डाॅ. शिवेंद्र कुमार कश्यप ने बताया कि ऋषि मृदा की प्रकृति, क्षमता, संरचना को बेहतर समझते थे। ऐसे में मृदा की उर्वरा शक्ति मजबूत होने पर उत्पादन के साथ उत्पाद की गुणवत्ता भी अच्छी होगी। कृषि से जुड़े प्राचीन ग्रंथों का संकलन किया जा रहा है। उनके वर्णित विधियों का अध्ययन कर किसानों को भी प्रशिक्षित किया जाएगा।

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