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भू-वैज्ञानिकों ने चायना पीक चोटी से लिए नमूने, कहा पानी की अधिकता से दरकी पहाड़ी nainital news

नैनीताल की सबसे ऊंची चायना पीक चोटी पर दरकी पहाड़ी से संभावित खतरे को देखते हुए जिला प्रशासन अलर्ट मोड में आ गया है।

By Skand ShuklaEdited By: Updated: Fri, 31 Jan 2020 08:59 AM (IST)
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भू-वैज्ञानिकों ने चायना पीक चोटी से लिए नमूने, कहा पानी की अधिकता से दरकी पहाड़ी nainital news
नैनीताल, जेएनएन : नैनीताल की सबसे ऊंची चायना पीक चोटी पर दरकी पहाड़ी से संभावित खतरे को देखते हुए जिला प्रशासन अलर्ट मोड में आ गया है। जिला प्रशासन, जीएसआइ, लोनिवि और आपदा प्रबंधन की संयुक्त टीम ने भूस्खलन से दरकी पहाड़ी का मौका मुआयना किया। भू-वैज्ञानिकों ने दरकी पहाड़ी के पत्थर व मलबे का नमूना लेने के साथ ही भूस्खलन से होने वाले खतरे का आकलन किया। बताया जा रहा है बर्फ व बारिश के कारण भूस्‍खलन हुआ है।

बुधवार को हुआ था चायना पीक चोटी पर भूस्‍खलन

गुरुवार को डीएम के निर्देश पर सरकारी अमला समेत विशेषज्ञ व वैज्ञानिकों की टीम चायना पीक चोटी पर हुए भूस्खलन का जायजा लेने पहुंची। बुधवार शाम को चायना पीक पहाड़ी का हिस्सा दरक गया था। एसडीएम विनोद कुमार, जीएसआइ के वरिष्ठ भू-वैज्ञानिक डॉ. सेवावृत्त दास, सहायक वैज्ञानिक डॉ. आशीष प्रकाश, डॉ. रवि नेगी, आपदा प्रबंधन अधिकारी शैलेष कुमार, लोनिवि ईई दीपक गुप्ता अन्य कर्मचारियों की टीम करीब डेढ़ घंटे की कड़ी मशक्कत के बाद पहाड़ी की तलहटी पर पहुंची।

भूगर्भीय की दृष्टि से पहाड़ी अतिसंवेदनशील

एसडीएम ने बताया कि पहाड़ी भूगर्भीय की दृष्टि से अतिसंवेदनशील है। फिलहाल भू-वैज्ञानिकों द्वारा पहाड़ी के नमूने ले लिए गए हैं। अन्य परीक्षणों के बाद रिर्पोट शासन को भेजी जाएगी। इसके अलावा उन्‍होंने कुछ भी कहने से इन्‍कार कर दिया। इस दौरान लोनिवि एई महेंद्र पाल, यशपाल आर्य, गोविंद सिंह जनौटी, प्रताप सिंह, नरेंद्र नेगी आदि लोग मौजूद रहे।

पहाड़ी का स्थायी उपचार संभव नहीं

जीएसआइ के वरिष्ठ भू-वैज्ञानिक डॉ. सेवावृत्त दास के अनुसार पहाड़ी में मजबूत चट्टान का अभाव है। पूरी पहाड़ी भुरभुरी प्रकार की है। बर्फ और अधिक बारिश के बाद चट्टान में पानी की अधिकता से दरार आने और आपसी जोड़ खुलने से भूस्खलन हुआ है। डॉ. दास के अनुसार भुरभुरी पहाड़ी के जोड़ खुल रहे है। जिस कारण भविष्य में भी छोटे अनुपात में भूस्खलन की संभावना बनी हुई है, लेकिन बड़े पैमाने पर भूस्खलन नहीं होगा, जिससे बड़ा खतरा नहीं है। पहाड़ी का स्थायी ट्रीटमेंट संभव नहीं है। सिर्फ प्राथमिक उपचार और पत्थरों को आबादी क्षेत्र तक पहुंचने से रोकने के लिए और सुरक्षा दीवारों का निर्माण किया जा सकता है।

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