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रास्ते में पड़ता है मंदिर इसलिए मासिक धर्म के दौरान स्कूल नहीं जाती हैं छात्राएं

खबर की हेडिंग पढ़कर काफी कुछ साफ हो गया होगा। जी हां ये खबर बिल्कुल सच है और मामला है उत्तराखंड के पिथौरागढ़ जिले का।

By Skand ShuklaEdited By: Updated: Wed, 28 Nov 2018 08:32 PM (IST)
रास्ते में पड़ता है मंदिर इसलिए मासिक धर्म के दौरान स्कूल नहीं जाती हैं छात्राएं
पिथौरागढ़, जेएनएन : खबर की हेडिंग पढ़कर काफी कुछ साफ हो गया होगा। जी हां ये खबर बिल्कुल सच है और मामला है उत्तराखंड के पिथौरागढ़ जिले का। बीच रास्ते में मंदिर पड़ने के कारण यहां की छात्राएं पीरियड्स यानि मासिक धर्म के दौरान स्कूल नहीं जा पाती हैं। माना जाता है कि इस दौरान वे अपवित्र हो जाती हैं और उनके स्कूल जाने से मंदिर की पवित्रता भंग हो जाती है।

नेपाल सीमा से लगे सल्ला चिंगरी क्षेत्र के कई गांवों की छात्राओं को आज भी मासिक धर्म के दौरान स्कूल नहीं भेजा जाता। वे हर माह पांच दिन घर में ही बैठी रहती हैं। स्कूल और क्षेत्र के लोक देवता के मंदिर को जोडऩे वाला मार्ग एक ही है। किसी अनिष्ठ की आशंका के चलते परिजन भी इस दौरान छात्राओं को स्कूल भेजने से बचते हैं। यह मामला प्रकाश में आने के बाद जिले का शिक्षा महकमा हरकत में आ गया है।

इस तरह से मामला आया सामने

पिछले दिनों उत्तराखंड महिला मंच की उमा भट्ट के नेतृत्व में महिलाओं ने झूलाघाट से पंचेश्वर घाटी तक पैदल यात्रा की। इस यात्रा के दौरान महिलाओं ने क्षेत्र की महिलाओं और स्कूल पडऩे वाले छात्राओं से बातचीत की और इस बातचीत में यह मामला सामने आया। पद यात्रा की रिपोर्ट सार्वजनिक किए जाने के बाद शिक्षा विभाग को भी इस मामले की जानकारी लगी।

ग्रामीण बेटियों को भेजने पर तैयार नहीं

छात्राओं के माह में पांच दिन स्कूल नहीं जाने की जानकारी मिलने पर मुख्य शिक्षाधिकारी बीपी सिमल्टी ने खंड शिक्षाधिकारी मूनाकोट बीएस रावत को मसले का समाधान निकालने के निर्देश दिए। उन्होंने बताया कि क्षेत्र के दो इंटर कॉलेज और दो जूनियर हाईस्कूल में इस तरह की समस्या सामने आई है। खंड शिक्षाधिकारी मूनाकोट रावत ने गांव पहुंचकर ग्रामीणों के साथ बैठक की और इस मसले पर चर्चा की। उन्होंने ग्रामीणों से छात्राओं को स्कूल भेजने का अनुरोध किया, लेकिन ग्रामीण फिलहाल इस पर सहमत नहीं हैं।

वैकल्पिक मार्ग बनाए जाने का प्रयास

मुख्य शिक्षाधिकारी ने बताया कि ग्रामीणों ने मंदिर के मार्ग को छोड़कर स्कूलों के लिए वैकल्पिक मार्ग बनाए जाने की मांग रखी है। मामले को प्रशासन के सामने रखा जा रहा है। उन्होंने उम्मीद जताई है कि जल्द ही मसले का समाधान निकाल लिया जाएगा।

डीएम बोले-क्षेत्र में भेजी जाएगी टीम

सल्ला चिंगरी क्षेत्र में मासिक धर्म के दौरान छात्राओं के स्कूल नहीं जाने का मामला संज्ञान में आया है। इसी सप्ताह बाल विकास विभाग, शिक्षा विभाग की टीम के साथ एक काउंसलर क्षेत्र में भेजा जा रहा है। काउंसलर के माध्यम से मासिक धर्म को लेकर लोगों की भ्रांति दूर करने के प्रयास किए जायेेंगे। वैकल्पिक मार्ग भी एक विकल्प हो सकता है, लेकिन ज्यादा महत्वपूर्ण भ्रांति को दूर करना है। फिलहाल इसी पर फोकस रखा जाएगा।

मासिक धर्म में बेटियों को रखा जाता है अलग-थलग

मासिक धर्म के दौरान बेटियों को अलग-थलग रखा जाता है। प्रचलित मान्‍यता के दौरान इस समय वे पूरी तरह से अपवित्र हो जाती हैं। इस दौरान उन्‍हें किचेन में घुसने, खाना बनाने यहां तक कि किसी को छूने तक की भी अनुमति नहीं दी जाती है। हालांकि प्रगतिशील समाज में बहुत सारी चीजें बदल चुकी हैं। लेकिन पिछड़े क्षेत्रों में इन सब बातों को काफी तवज्‍जों दिया जाता है।

मां के पीरियड के समय बेटियां नहीं जाती हैं स्‍कूल

कई जगहों पर मां को पीरियड आने पर बेटियों को खाना बनाना पड़ता है, ऐसे में वे स्‍‍कूल नहीं जा पाती हैं। इतना ही नहीं मां के बिल्‍कुल अलग-थलग पड़ जाने के कारण पूरी जिम्‍मेदारी बेटियों को उठानी पड़ती है।

सबरीमाला मंदिर में महिलाओं का प्रवेश था प्रतिबंधित

केरल का सबरीमाला मंदिर भगवान अयप्पा का मंदिर है। माना जाता है कि भगवान अयप्पा अविवाहित थे और महिलाओं से दूर रहते थे। जिस कारण इस मंदिर में 1500 सालों से महिलाओं का प्रवेश प्रतिबंधित था। लोगों का मानना है कि 10 से 50 वर्ष की महिलाओं को हर महीने मासिक धर्म होता है और इस दौरान उन्हें अपवित्र माना जाता है, जिसके कारण वे मंदिर में प्रवेश नहीं कर सकती। वहीं सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद से इस मामले को लेकर काफी हंगामा हुआ।

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