World Environment Day : बकरियों के पेड़-पौधों के चरने पर नैनीताल में लगता था पांच रुपए जुर्माना, पालना भी था प्रतिबंधित
World Environment Day अंग्रेजी हुकूमत के समय नैनीताल में हरियाली बचाने के लिए बकरी पालन और क्षेत्र में चरने के लिए आने तक पर प्रतिबंध लगा दिया गया था।
By Skand ShuklaEdited By: Updated: Fri, 05 Jun 2020 07:57 AM (IST)
नैनीताल, किशोर जोशी : अंग्रेजों के समय का नैनीताल पालिका का बायलॉज आज भी पर्यावरण संरक्षण की दिशा में काफी अहम है। तब नैनीताल में हरियाली बचाने के लिए बकरी पालन और क्षेत्र में चरने के लिए आने तक पर प्रतिबंध लगा दिया गया था। बकरियों के पेड़-पौधों के चरने पर पांच रुपए तक का जुर्माना लगाया जाता था। ऐसे में लोग भी जुर्माने से बचने के लिए सचेत होते थे। हालांकि वक्त के साथ ही यह बॉयलाज निष्प्रभावी हो चुका है। लंबे वक्त से शायद ही इसके तहत कोई कार्यवाई हुई हो, लेकिन बाॅयलाज पालिका में अब भी नियमत: प्रभावी है।
वक्त के लिहाज से काफी अधिक थी जुर्माने की राशि नैनीताल का नैसर्गिक सौंदर्य देश-दुनिया के पर्यटकों के लिए आकर्षण का बड़ा केन्द्र है। यहां के जंगल, पहाड़ और नदियां नैनीताल की खूबसूरती में चार चांद लगाते हैं। इसे सहेजने के लिए अंग्रेजों ने पालिका के बायलाॅज में एक अनोखे कानून का प्रवधान रखा। कानून ये था कि यदि किसी की कोई बकरी यदि पालका क्षेत्र आ जाए या पेड़-पौधों काे चर ले तो उस पर जुर्माना लगाया जाएगा। जुर्माने की राशि भी पांच रुपए रखी गई जो उस वक्त के लिहाज से काफी अधिक थी। हरियाली बचाने के लिए उनकी ये पहल काफी सार्थक और प्रभावी रही।
बकरी पालन पर ही लगा दिया गया था प्रतिबंध
1940 में अंग्रेजी हुकूमत ने नैनीताल में पेड़ पौधों के संरक्षण को देखते हुए बकरी पालन पर पाबंदी लगा दी थी। भूगर्भीय दृष्टि से संवेदनशील नैनीताल चारों ओर जंगल से घिरा है। यहां ओक प्रजाति के साथ ही देवदार, बुरांश व अन्य प्रजातियों के पेड़ पौधे हैं। ओक प्रजाति के जंगल की वजह से प्राकृतिक जल स्रोतों की कमी नहीं है। लेकिन इनका संरक्षण बेहद जरूरी था। पेड़-पौधे ठीक से विकास कर सकें इसे ध्यान में रखते हुए बकरी पालन पर ही प्रतिबंध लगा दिया गया था। इसके साथ ही जुर्माने का भी प्रावधान किया गया।
जिम काॅर्बेट ने पर्याटरण बचाने को की थी पहल पर्यावरणविद व इतिहासकार प्रो अजय रावत बताते हैं कि 1930 में जब जिम कार्बेट नैनीताल पालिका के उपाध्यक्ष थे। उस दौर में पर्यावरण संरक्षण की दिशा में महत्वपूर्ण कदम उठाए गए। बकरी पेड़ पौधों को नुकसान पहुंचाती हैं, इसलिए 1940 में पालिका ने बकरी पालन पर पाबंदी का प्रावधान लागू कर दिया। पालिका सीमा में बकरी के प्रवेश पर तक पांच रुपये जुर्माना तय था। पर्यावरण बचाने को लेकर उस वक्त का प्रयास ही नैनीताल की हरियाली की हरियाली को अब तक संरक्षित रखे हुए है।
ऊटी व कोडई निकाय में भी बॉयलाज लागूनैनीताल के बाद यह बॉयलॉज दक्षिण भारत के ऊटी व कोडई निकाय में भी लागू किया गया। प्रो रावत बताते हैं कि पालिका नियमों के अनुपालन में इतनी सख्त थी कि कोई बकरी पालना तो दूर पालिका सीमा तक लाने की हिम्मत भी नहीं जुटा पाता था। यह बॉयलॉज आज भी प्रभावी है। नैनीताल पालिका 1954 तथा 1955 में तत्कालीन चेयरमैन मनोहर लाल साह के कार्यकाल में लगातार दो बार पौधरोपण में सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करने पर बल्लभ भाई पटेल वानिकी राष्ट्रीय पुरस्कार मिला, जो रिकार्ड है।
पातन समिति की मंजूरी पर कटेगी टहनीसरोवर नगरी के संरक्षण व संवर्धन के लिए छोटी सरकार द्वारा बायलॉज में सख्त प्रावधान किए गए। आज भी पालिका क्षेत्र में किसी सूखे पेड़ या टहनी के पातन के लिए आम नागरिकों को पातन समिति के पास आवेदन करना होता है। समिति सदस्य मौका मुआयना कर आख्या देते हैं, तब जाकर वन निगम या वन विभाग द्वारा पातन किया जाता है। यह व्यवस्था 1995 से लागू है। पालिका रैंज के वन क्षेत्राधिकारी की अध्यक्षता में यह समति होती है, जिसमें शहर के पर्यावरणप्रेमी सदस्य नामित किए जाते हैं।
नैनीताल में हुई थी वन महोत्सव की शुरूआत पर्यावरणविद प्रो रावत बताते हैं कि नैनीताल राजभवन में 1950 में देश का पहला वन महोत्सव आयोजित किया गया। यह पहली से सात जुलाई तक चला। महोत्सव के शुभारंभ के लिए तत्कालीन केंद्रीय कृषि मंत्री केएम मुंशी आए थे, तत्कालीन गवर्नर एचपी मोदी की मौजूदगी में चीफ कन्जरवेटर राज नारायण सिंह द्वारा महोत्सव का आयोजन कराया गया। यह पहली से सात जुलाई तक चला। महोत्सव में बांज के पौधे लगाए गए थे।
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