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कौन होते हैं गुरिल्ला, क्या होता है गुरिल्ला युद्ध, नैनीताल हाईकोर्ट ने इनके पक्ष में सुनाया है फैसला

गुरिल्ला युद्ध पद्धति सटीक सूचना और बेहतरीन युद्ध कौशल के लिए जानी जाती है। महाराणा प्रताप और वीर शिवाजी इसके महारथी थे। वियतनामियों ने इसी के दम पर अमेरिकी सेना को धूल चटाया। हाईकोर्ट ने इनके पक्ष में फैसला सुनाकर 20 हजार गुरिल्लाओं को लाभ का रास्ता साफ किया है।

By Prashant MishraEdited By: Updated: Fri, 05 Aug 2022 10:01 AM (IST)
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Guerrilla War भारतीय अर्धसैन्य बल भी गुरिल्ला युद्ध के लिए बाकायदा ट्रेनिंग देती आई है

हल्द्वानी, ऑनलाइन डेस्क : गुरिल्ला शब्द सुनते ही हम सभी के मन में वीर याेद्धा महाराणा प्रताप व छत्रपति शिवाजी के युद्ध साथ में अमेरिका व वियतनाम की लड़ाई कौंध उठती है। अमेरिका को सैन्य इतिहास में पहली बार वियतनाम से मुंह की खानी पड़ी थी। 

यह एक युद्ध पद्धति है, जो इस विधा में निपुण होता है उन्हें गुरिल्ला कहा जाता है। इसमें कम नुकसान होता है और दुश्मनों पर मानसिक बढ़त बनाने का काम किया जाता है। 

यहां हम आपको बताने जा रहे हैं कि कैसे उत्तराखंड के गुरिल्ला का मामला हाईकोर्ट पहुंचा और भारतीय अर्धसैन्य बल क्यों तैयार करते थे गुरिल्ला।

इन्हीं गुरिल्लाओं के पक्ष में नैनीताल हाईकोर्ट ने अहम फैसला सुनाया है। इससे उत्तराखंड के विभिन्न जिलों के करीब 20 हजार गुरिल्लों को नौकरी व अन्य सुविधाओं का लाभ मिलेगा।

कौन हैं गुरिल्ला और इनका काम

वर्ष 1962 के भारत-चीन युद्ध के बाद वर्ष 1963 में तत्कालीन परिस्थितियों से निपटने के लिए भारत सरकार ने केंद्रीय कैबिनेट के अधीन एसएसबी का गठन किया। इसकी हिमाचल, अरुणाचल, उत्तराखंड व कश्मीर के साथ ही देश के पूर्वोत्तर राज्यों में तैनाती की गई।

एसएसबी सीमांत के गांवों में युवाओं को हथियार चलाने का प्रशिक्षण देती थी। यहीं से चुने गए युवक, युवतियों को 45 दिन की कठिन गुरिल्ला (छापामारी युद्ध पद्धति) का प्रशिक्षण दिया जाता था।

हिमाचल-उत्तराखंड में ट्रेनिंग 

गुरिल्ला युद्ध के लिए हिमाचल के सराहन और उत्तराखंड के ग्वालदम में प्रशिक्षण केंद्र बनाया गया। युवतियों को उत्तराखंड के पौड़ी में प्रशिक्षण दिया जाता था। इसके बाद इन्हें एक निश्चित मानदेय पर एसएसबी के हमराही वॉलेंटियर के रूप में तैनाती दी जाती थी।

वर्ष 2001 में केंद्र सरकार ने एसएसबी को सशस्त्र बल में शामिल कर सशस्त्र सीमा बल नाम दे दिया और गुरिल्लों की भूमिका समाप्त कर दी। तभी से ये अपनी तैनाती के लिए निरंतर संघर्ष कर रहे हैं।

ऐसे कोर्ट पहुंचा मामला

टिहरी गढ़वाल निवासी अनुसुइया देवी व नौ अन्य और पिथौरागढ़ के मोहन सिंह व 29 अन्य गुरिल्ला व उनकी विधवाओं ने याचिका दायर कर कहा कि उन्हें केंद्रीय बलों द्वारा सशस्त्र प्रशिक्षण प्राप्त हैं।

उनसे सरकार ने निश्चित मानदेय पर अर्धसैनिक बलों के साथ काम किया है। पर अब उनसे काम लेना बंद कर दिया गया है।

अब मणिपुर की तरह मिलेगा लाभ

याचिकाकर्ताओं के अनुसार मणिपुर के गुरिल्लाओं ने इस सम्बंध में मणिपुर हाई कोर्ट में याचिका दायर की थी।  मणिपुर हाईबकोर्ट ने इन गुरिल्लाओं को नौकरी में रखने व सेवानिवृत्ति की आय वालों को पेंशन व सेवानिवृत्ति के लाभ देने के निर्देश पारित किए थे। इसे सुप्रीम कोर्ट ने भी सही ठहराया था।

सुनवाई के बाद हाई कोर्ट ने केंद्र सरकार से उत्तराखण्ड के गुरिल्लाओं को मणिपुर के गुरिल्लाओं की भांति सुविधाएं देने के निर्देश दिए।

क्या होता है गुरिल्ला युद्ध 

गुरिल्ला एक युद्ध पद्धति है। इसको आम भाषा में छापामार युद्ध भी बोला जाता है। गुरिल्ला (Guerrilla) स्पेनिश भाषा का शब्द है। जहां इसका अर्थ होता है छोटी लड़ाई। इस युद्ध पद्धति में छोटी सैन्य टुकड़ियां शत्रुसेना के पीछे से आक्रमण कर व्यापक नुकसान पहुंचाती हैं। 

गुरिल्ला युद्ध का सिद्धांत

छापामार सैनिकों का सिद्धांत होता है - 'मारो और भाग जाओ'। ये अचानक आक्रमण करते हैं और गायब हो जाते हैं। गुरिल्ला अपने पास बहुत कम सामान रखते हैं, जिससे के हमला कर तेजी से उस स्थान से निकलने में मदद मिलती है।

इस युद्ध का उद्देश्य दुश्मन सेना पर मानसिक बढ़त बनाना, उन्हें मिलने वाली रसद, गोला बारूद व मेडिकल सहायता को रोकना है। 

भारत में गुरिल्ला युद्ध की शुरुआत

भारत में छापामार युद्ध का सबसे पहला प्रयोग महाराणा प्रताप ने अकबर के विरूद्ध किया था। इसके बाद इसे छत्रपति शिवाजी महाराज ने औरंगजेब के खिलाफ किया। मराठों ने इस युद्ध पद्धति से मुगल सेना के नाक में दम कर दिया था।

वैश्विक स्तर पर प्रयोग 

गुरिल्ला युद्ध की तकनीकि सहायता से शुरुआत द्वितीय युद्ध से शुरू हुआ। हालांकि, वैश्विक स्तर पर सबसे पहले इसका प्रयोग छठीं शताब्दी ईसा पूर्व चीनी जनरल ने किया था। उन्होंने अपनी किताब द आर्ट ऑफ वाॅर (The Art of War) में इसका बाखूबी जिक्र भी किया है।

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