Rabindranath Tagore Jayanti : विश्वभारती की स्थापना रामगढ़ में करना चाहते थे गुरुदेव रबींद्रनाथ टैगोर
प्राकृतिक सौंदर्य से भरपूर और जिज्ञासु यायावरों की साधनास्थली रही रामगढ़ की भूमि में महान कवि रबींद्रनाथ टैगोर विश्वभारती विश्वविद्यालय की स्थापना करना चाहते थे।
गुरुदेव 1901 में पहली बार रामगढ़ पहुंचे
कोलकाता में सात मई 1861 को जन्मे टैगोर वर्ष 1901 में पहली बार रामगढ़ पहुंचे थे। नैनीताल जिले की फलपटटी नाम से विख्यात इस जगह की मनोरम छटा से वह इतने अभिभूत हुए कि उन्होंने 40 एकड़ की भूमि खरीद ली। इस जगह को उन्होंने हिमंती गार्डन नाम दिया, जिसे अब लोग टैगोर टॉप कहते हैं। टैगोर ने अपनी कई यात्राओं के बीच में ही गीतांजलि के कुछ अंश रामगढ़ में भी लिखे थे। इस रचना के लिए उन्हेंं 1913 में साहित्य का नोबेल पुरस्कार भी मिला था। गुरुदेव पर अध्ययन और टैगोर टॉप को विकसित करने में कुमाऊं विश्वविद्यालय में वाणिज्य विभाग के विभागाध्यक्ष प्रो. अतुल जोशी जुटे हैं। जोशी बताते हैं कि टैगोर ने रामगढ़ में विश्वभारती विश्वविद्यालय की स्थापना का सपना देखा था। इसके लिए उन्होंने यहां 40 एकड़ भूमि भी यहां खरीदी। बाद में इस विश्वविद्यालय की स्थापना शांतिनिकेतन कोलकाता में की। अगर इस जगह पर विवि की स्थापना हो गई होती, तो यह जगह भी आज शिक्षा के हब के रूप में दुनिया में प्रसिद्ध हो गई होती।
टीबी से ग्रस्त बेटी के साथ भी रहे
निशंक से फिर जगी उम्मीद
मानव संसाधन विकास मंत्री डॉ. रमेश पोखरियाल निशंक ने 17 अप्रैल 2000 में अविभाजित उत्तर प्रदेश में संस्कृति एवं धर्मस्व मंत्री रहते हुए टैगोर संग्रहालय और सुंदरीकरण के लिए 50 लाख की घोषणा की थी। कुछ दिक्कतों की वजह से काम आगे नहीं बढ़ सका। बाद में उत्तराखंड के सीएम रहते हुए भी निशंक ने 8 अप्रैल 2011 को फिर संग्राहलय निर्माण की घोषणा की। डीएम से प्रस्ताव भेजने के निर्देश दिए थे। अब एक बार फिर निशंक मानव संसाधन मंत्री के तौर पर इस जगह को विकसित करने की मंशा जता चुके हैं।पहाड़ प्रेम उन्हेंं कई बार खींच लाया अल्मोड़ा
टैगोर से प्रेरित महादेवी वर्मा ने बनाया मीरा कुटीर
टैगोर से प्रेरित होकर कवयित्री महादेवी वर्मा ने भी रामगढ़ में घर बनाया था। बताते हैं कि महादेवी वर्मा वर्ष 1933 में शांतिनिकेतन गई थी। उनकी टैगोर से रामगढ़ को लेकर विस्तार से चर्चा हुई। 1936 में रामगढ़ के निकट उमागढ़ में महादेवी वर्मा ने मीरा कुटीर बनाया। अब महादेवी वर्मा सृजनपीठ नाम से जगह को संरक्षित किया गया है।यह भी पढें
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