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Rabindranath Tagore Jayanti : विश्वभारती की स्थापना रामगढ़ में करना चाहते थे गुरुदेव रबींद्रनाथ टैगोर

प्राकृतिक सौंदर्य से भरपूर और जिज्ञासु यायावरों की साधनास्थली रही रामगढ़ की भूमि में महान कवि रबींद्रनाथ टैगोर विश्वभारती विश्वविद्यालय की स्थापना करना चाहते थे।

By Skand ShuklaEdited By: Updated: Thu, 07 May 2020 08:36 AM (IST)
Rabindranath Tagore Jayanti : विश्वभारती की स्थापना रामगढ़ में करना चाहते थे गुरुदेव रबींद्रनाथ टैगोर
हल्द्वानी, गणेश जोशी : प्राकृतिक सौंदर्य से भरपूर और जिज्ञासु यायावरों की साधनास्थली रही रामगढ़ की भूमि में महान कवि रबींद्रनाथ टैगोर विश्वभारती विश्वविद्यालय की स्थापना करना चाहते थे। इस सुरम्य स्थली से प्रभावित होकर राष्ट्रगान के रचयिता ने अंग्रेज मित्र डेरियाज से भूमि भी खरीद ली थी। वर्ष 1901 में कुछ दिनों तक वह इन शांत वादियों में रहे और विश्वप्रसिद्ध रचना गीतांजलि के कुछ अंश भी लिखे। रामगढ़ में टैगोर टॉप नाम से प्रचलित उनकी कर्मस्थली को विकसित करने के लिए शांतिनिकेतन ट्रस्ट फॉर हिमालय ने संग्रहालय व शैक्षणिक संस्थान का स्वरूप देने की पहल शुरू कर दी है।

गुरुदेव 1901 में पहली बार रामगढ़ पहुंचे

कोलकाता में सात मई 1861 को जन्मे टैगोर वर्ष 1901 में पहली बार रामगढ़ पहुंचे थे। नैनीताल जिले की फलपटटी नाम से विख्यात इस जगह की मनोरम छटा से वह इतने अभिभूत हुए कि उन्होंने 40 एकड़ की भूमि खरीद ली। इस जगह को उन्होंने हिमंती गार्डन नाम दिया, जिसे अब लोग टैगोर टॉप कहते हैं। टैगोर ने अपनी कई यात्राओं के बीच में ही गीतांजलि के कुछ अंश रामगढ़ में भी लिखे थे। इस रचना के लिए उन्हेंं 1913 में साहित्य का नोबेल पुरस्कार भी मिला था। गुरुदेव पर अध्ययन और टैगोर टॉप को विकसित करने में कुमाऊं विश्वविद्यालय में वाणिज्य विभाग के विभागाध्यक्ष प्रो. अतुल जोशी जुटे हैं। जोशी बताते हैं कि टैगोर ने रामगढ़ में विश्वभारती विश्वविद्यालय की स्थापना का सपना देखा था। इसके लिए उन्होंने यहां 40 एकड़ भूमि भी यहां खरीदी। बाद में इस विश्वविद्यालय की स्थापना शांतिनिकेतन कोलकाता में की। अगर इस जगह पर विवि की स्थापना हो गई होती, तो यह जगह भी आज शिक्षा के हब के रूप में दुनिया में प्रसिद्ध हो गई होती।

टीबी से ग्रस्त बेटी के साथ भी रहे

पत्नी मृणालिनी के देहावसान के बाद टैगोर 1903 में रामगढ़ में 12 वर्षीय बेटी रेनुका को लेकर आए थे। वह टीबी की बीमारी से ग्रस्त थी। हालांकि बाद में बेटी के आकस्मिक निधन से वह दुखी हुए। इस दौरान उन्होंने शिशु नामक कविता की रचना भी की।

निशंक से फिर जगी उम्मीद

मानव संसाधन विकास मंत्री डॉ. रमेश पोखरियाल निशंक ने 17 अप्रैल 2000 में अविभाजित उत्तर प्रदेश में संस्कृति एवं धर्मस्व मंत्री रहते हुए टैगोर संग्रहालय और सुंदरीकरण के लिए 50 लाख की घोषणा की थी। कुछ दिक्कतों की वजह से काम आगे नहीं बढ़ सका। बाद में उत्तराखंड के सीएम रहते हुए भी निशंक ने 8 अप्रैल 2011 को फिर संग्राहलय निर्माण की घोषणा की। डीएम से प्रस्ताव भेजने के निर्देश दिए थे। अब एक बार फिर निशंक मानव संसाधन मंत्री के तौर पर इस जगह को विकसित करने की मंशा जता चुके हैं।

पहाड़ प्रेम उन्हेंं कई बार खींच लाया अल्मोड़ा

टैगोर का पहाड़ प्रेम उन्हेंं 1927 में अल्मोड़ा खींच लाया था। कुमाऊं विश्वविद्यालय में इतिहास विभाग के विभागाध्यक्ष डॉ. विद्याधर नेगी ध्यानम के अनुसार टैगोर ने पहली बार सांस्कृतिक नगरी अल्मोड़ा पहुंचने पर दास पंडित ठुलघरिया के आतिथ्य को स्वीकारा था। उनका तीन से चार बार अल्मोड़ा पहुंचना बुद्धिजीवी समाज के लिए प्रेरणादायी रहा। गुरुदेव की प्रेरणा से ही प्रसिद्ध लेखिका गौरा पंत शिवानी को अध्ययन के लिए शांति निकेतन जाने का अवसर प्राप्त हुआ। वहीं अल्मोड़ा में टैगोर जिस भवन में रुके थे, उसका नाम अब टैगोर भवन कर दिया गया है।

टैगोर से प्रेरित महादेवी वर्मा ने बनाया मीरा कुटीर

टैगोर से प्रेरित होकर कवयित्री महादेवी वर्मा ने भी रामगढ़ में घर बनाया था। बताते हैं कि महादेवी वर्मा वर्ष 1933 में शांतिनिकेतन गई थी। उनकी टैगोर से रामगढ़ को लेकर विस्तार से चर्चा हुई। 1936 में रामगढ़ के निकट उमागढ़ में महादेवी वर्मा ने मीरा कुटीर बनाया। अब महादेवी वर्मा सृजनपीठ नाम से जगह को संरक्षित किया गया है।

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