हल्द्वानी की इन महिलाओं ने मदद मांगने के बजाय ई-रिक्शा चलाकर खुशहाल बनाई जिंदगी
परिवार की परवरिश व बेहतर माहौल देने के लिए हल्द्वानी की महिलाओं ने ई-रिक्शा को रोजगार का जरिया बनाया और दूसरों के लिए प्रेरणा बनीं।
By Skand ShuklaEdited By: Updated: Tue, 04 Feb 2020 09:40 AM (IST)
हल्द्वानी, भानु जोशी : आधुनिक समाज में महिलाओं को हर अधिकार मिले हैं, मगर बहुत ही कम महिलाएं ऐसी हैं जो अपने सभी अधिकारों से वाकिफ हो पाई हैं। अपने हक से बेखबर उनकी जिंदगी तमाम मुश्किलों में उलझ कर रह जाती है। सामाजिक रूढिय़ां उन्हें उनकी मंजिल तक पहुंचने से रोकने लगती हैं। मगर जब ये अपने हक के लिए खड़ी होती हैं, तो ऐसे तमाम रूढि़वादी ताने-बाने तितर-बितर हो जाते हैं और अपने हौसले के बल पर वह दूसरों के सामने मिसाल बन जाती हैं। आइए जानते हैं हलद्वानी की कुछ ऐसी ही महिलाओं की कहानी।
ई-रिक्शा को बनाया रोजगार का जरिया हल्द्वानी की कुछ महिलाएं हैं, जिन्होंने देर से ही सही, पर अपने अधिकारों को जाना और उन्हें समझ कर उस पर अमल करना शुरू किया। परिवार की परवरिश व बेहतर माहौल देने के लिए खुद मेहनत की दौड़ लगानी शुरू की। इसके लिए ई-रिक्शा को सहारा बनाया। इन महिलाओं ने न केवल समाज को आईना दिखाया, बल्कि अपनी बिखरी जिंदगी भी समेट ली। गुड्डी पासवान, मंजू मिश्रा, बीना, पूजा, गुलनार वो महिलाएं हैं जो आज किसी के सामने हाथ फैलाने को मोहताज नहीं हैं। इन महिलाओं को राह दिखाई उत्तराखंड की पहली महिला ई-रिक्शा चालक रानी मैसी ने।
सब्जी की रेहड़ी से ई-रिक्शा तकई-रिक्शा दौड़ातीं गुड्डी पासवान के जीवन में एक दौर ऐसा भी आया, जब उनके पास जीविकोपार्जन का कोई साधन नहीं था। सब्जी की रेहड़ी भी लगाई। एक सुबह कोई व्यक्ति उन्हें ई-रिक्शा चलाने की सलाह दे गया। रानी मैसी के सहयोग से गुड्डी ने ई-रिक्शा ले लिया। अब वह खुद के हौसलों की उड़ान भर रही हैं।
मजदूरी करने वाली महिलाएं बनीं आत्मनिर्भरहल्द्वानी के छड़ायल निवासी पूजा, इंदिरानगर की गुलनार को भी रानी मैसी ने राह दिखाई। ई-रिक्शा चलाने से पहले पूजा मेहनत मजदूरी करतीं तो गुलनार गौला नदी के आसपास के जंगल से लकडिय़ां बीनती थीं। कुल्यालपुरा निवासी बीना भी बीते सात माह से ई-रिक्शा चलाकर परिवार पाल रही हैं।
नियति ने पुलिस अफसर बनने से रोका तो भी हार नहीं मानी मूल रूप से अयोध्या निवासी मंजू मिश्रा अब हल्द्वानी में बरेली रोड पर रहती हैं। शादी के कुछ माह तक वह शिक्षामित्र रहीं। फिर भारतीय पुलिस सेवा में उनका चयन हुआ। लेकिन नियति को कुछ और ही मंजूर था। कुछ पारिवारिक दिक्कतों के चलते वह नौकरी ज्वाइन नहीं कर सकीं। जब बढ़ती जरूरतों के बीच घर चलाना मुश्किल लगने लगा तो मंजू ने ई-रिक्शा चलाने का निर्णय लिया। मंजू अपनी चार बेटियों को पढ़ा-लिखा कर लायक बना रही हैं। एक बेटी को बैंकर, दूसरी को वकील तो सबसे छोटी बेटी को डॉक्टर बनाने का सपना है।
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