सुरकंडा देवी रोपवे का लेकर हरीश रावत ने कहा, कांग्रेस के काम का श्रेय ले रही भाजपा सरकार
अक्टूबर 2016 में तत्कालीन कांग्रेस सरकार के तत्कालीन सीएम हरीश रावत और तत्कालीन पर्यटन मंत्री निदेश धनै ने कद्दूखाल से सुरकंडा देवी तक रोपवे का शिलान्यास किया था। जबकि भाजपा सरकार के कार्यकाल में रोपवे का काम पूरा हुआ है।
By Skand ShuklaEdited By: Updated: Tue, 03 May 2022 10:01 AM (IST)
नैनीताल, जागरण संवाददाता : उत्तराखंड के टिहरी में धनोल्टी में स्थित सिद्धपीठ मां सुरकंडा देवी मंदिर के लिए रोपवे का संचालन शुरू हो चुका है। बीते रविवार को सीएम पुष्कर सिंह धामी और पर्यटन मंत्री सतपाल महाराज ने इसका शुभारंभ किया। इसको लेकर हरीश रावत ने ट्वीट कर परोक्ष रूप से आरोप लगाया कि कांग्रेस सरकार के काम का श्रेय भाजपा सरकार ले रही है।
बता दें कि अक्टूबर 2016 में तत्कालीन कांग्रेस सरकार के तत्कालीन सीएम हरीश रावत और तत्कालीन पर्यटन मंत्री निदेश धनै ने कद्दूखाल से सुरकंडा देवी तक रोपवे का शिलान्यास किया था। वहीं अब हरीश रावत ने रोपवे शुभारांभ की एक फोटो साझा करते हुए लिख...कैसी विडंबना, सुरकंडा मंदिर रोपवे को स्वीकृत करने व उसका काम प्रारंभ करने वाले तत्कालीन पर्यटन मंत्री और मुख्यमंत्री अब इस पिक्चर से गायब हैं! रोप वे के उद्घाटन के अवसर पर माँ सुरकंडा के दर्शन करने के लिए पहुंचने वाले सारे यात्रियों को ढेर सारी शुभकामनाएं।
रोपवे की क्षमता पांच सौ व्यक्ति प्रति घंटा
बता दें कि सुरकंडा देवी मंदिर जाने के लिए बने रोपवे की लंबाई 502 मीटर है। इसकी क्षमता लगभग 500 व्यक्ति प्रति घंटा है। सुरकंडा देवी मंदिर रोपवे सेवा, उत्तराखंड के राज्य के गठन होने के बाद पहली महत्वपूर्ण रोपवे परियोजना है जिसका निर्माण राज्य पर्यटन विभाग द्वारा किया गया है। सुरकंडा रोपवे सेवा शुरू होने से श्रद्धालु कद्दूखाल से मात्र 5 से 10 मिनट में सुगमता पूर्वक साल भर मां सुरकंडा देवी के दर्शन कर सकेंगे। इसका किराया आने जाने का 177 रुपए तय किया गया है।
अभी तक पैदल जाते थे श्रद्धालु
सुरकंडा मंदिर 2750 मीटर की ऊंचाई पर है। यह मसूरी चंबा मोटर मार्ग पर धनोल्टी से 8 किमी की दूरी पर है। नई टिहरी से 41 किमी की दूरी पर चंबा मसूरी रोड पर कद्दुखाल स्थान है जहां से लगभग 2.5 किमी की पैदल चढाई कर सुरकंडा माता के मंदिर तक पहुंचा जाता है। हालांकि अब यहां रोपवे शुरू हो गया है।यह सुरकंडा देवी की मान्यता
मान्यता है कि सती तपस्वी भगवान शिव की पत्नी एवं पौराणिक राजा दक्ष की पुत्री थी। दक्ष को अपनी पुत्री के पति के रूप में शिव को स्वीकार करना पसंद नहीं था। राजा दक्ष द्वारा सभी राजाओं के लिए आयोजित वैदिक यज्ञ में भगवान शिव के लिए की गई अपमान जनक टिप्पणी को सुनकर सती ने अपने आप को यज्ञ की ज्वाला में फेंक दिया। भगवान शिव को जब पत्नी की मृत्यु का समाचार मिला तो वो वह नाराज हो गए और सती माता के पार्थिव शरीर को कंधे पर रख हिमालय की और निकल गए। भगवान शिव के गुस्से को एवं दुःख को समाप्त करने के लिए एवं सृष्टी को भगवान शिव के तांडव से बचाने के लिए विष्णु भगवान ने अपने सुदर्शन चक्र को सती के नश्वर शरीर को धीरे धीरे काटने को भेजा। सती के शरीर के 51 भाग जहां जहां गिरे वहां पवित्र शक्ति पीठ की स्थापना हुयी और जिस स्थान पर माता सती का सिर गिरा वह सिरकंडा कहलाया जो बाद में सुरकंडा नाम से प्रसिद्ध हो गया।
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