अधिकारी व कर्मचारियों को सस्ती बिजली देने के मामले में हुई सुनवाई, हाईकोर्ट ने दिए ये निर्देश
अधिकारी व कर्मचारियों को सस्ती बिजली देने और आम जनता पर बिल का बोझ डालने के खिलाफ दायर जनहित याचिका पर हाईकोर्ट में सुनवाई हुई।
By Skand ShuklaEdited By: Updated: Mon, 06 Jan 2020 04:54 PM (IST)
नैनीताल, जेएनएन : अधिकारी व कर्मचारियों को सस्ती बिजली देने और आम जनता पर बिल का बोझ डालने के खिलाफ दायर जनहित याचिका पर हाईकोर्ट में सुनवाई हुई। कोर्ट में एमडी पाॅवर कॉर्पोरेशन की तरफ से शपथपत्र पेश किया गया। जिसमें कहा गया कि कोर्ट के आदेश के बाद कुछ कर्मचारियों ने मीटर लगा लिए हैं। जिसका विरोध करते हुए याचीकाकर्ता के अधिवक्ता द्वारा कोर्ट को बताया गया कि अभी तक कुछ ही कर्मचारियों के वहा मीटर लगाए गए हैं और एमडी ने कोर्ट के आदेश का पालन नहीं किया है। कर्मचारियों को नवम्बर माह का वेतन दे दिया है । कोर्ट ने इस पर पाॅवर काॅरपोरेशन से कल सात जनवरी को स्थिति साफ करने को कहा है। पिछली तिथि को एमडी ने कोर्ट में कहा था कि वे एक माह के भीतर सभी के यहां मीटर लगवा देंगे। उन्होंने ये भी माना है कि निगम में अनियमितता की गई है।
मुख्य न्यायधीश न्यायमूर्ति रमेश रंगनाथन व न्यायमूर्ति आलोक कुमार वर्मा की खंडपीठ में देहरादून आरटीआई क्लब की जनहित याचिका पर सुनवाई हुई। जिसमें कहा कि ऊर्जा निगम अधिकारियों से एक महीने का बिल मात्र 400 से 500 रुपए एवं अन्य कर्मचारियों से सौ रुपए ले रही है जबकि इनका बिल लाखो में आता है। जिसका बोझ सीधे जनता पर पड़ रहा है। याचिकाकर्ता का कहना है कि प्रदेश में कई अधिकारियों के घर बिजली के मीटर तक नहीं लगे हैं जो लगे भी है वे खराब स्थिति में हैं। उदारहण के तौर पर जनरल मैनेजर का 25 माह का बिजली का बिल 4 लाख 20 हजार आया था और उसके विजली के मीटर की रीडिंग 2005 से 2016 तक नही ली गयी ।
वहीं कोर्पोरेशन ने वर्तमान कर्मचारियों के अलावा रिटायर कर्मचारियों व उनके आश्रितों को भी बिजली रियायती दाम में दी है जिसका सीधा भार आम जनता की जेब पर पड़ रहा है । याचिकाकर्ता का कहना है कि उत्तराखंड ऊर्जा प्रदेश घोषित है लेकिन यहां हिमांचल से मंहगी बिजली है। घरों में लगे मीटरों का किराया पावर कारपोरेशन कब का वसूल कर चुका है परन्तु हर माह के बिल के साथ जुड़कर आता है। जो गलत है जबकि उपभोक्ता उसके किराया कब का दे चुका है।
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