Uttarakhand High Court हाई कोर्ट ने एक ऐतिहासिक फैसले में गंभीर रूप से बीमार पति की संरक्षकता चाहने वाली पत्नी को अनुमति प्रदान की है। यह प्रदेश में अपनी तरह का पहला मामला है। पति जून 2023 से कोमा में हैं। कोर्ट ने चिकित्सा रिपोर्ट और प्रशासनिक रिकॉर्ड की जांच के बाद यह फैसला सुनाया है। महिला अब अपने पति के इलाज और अन्य जरूरतों का ध्यान रख सकेगी।
जागरण संवाददाता, नैनीताल। Uttarakhand High Court: हाई कोर्ट ने प्रदेश में अपनी तरह का पहले मामले में गंभीर बीमार पति की संरक्षकता चाहने वाली पत्नी को चिकित्सा रिपोर्ट और प्रशासनिक रिकार्ड की जांच के बाद संरक्षक बनने की अनुमति प्रदान की है।
ऐसे व्यक्ति के लिए अभिभावक नियुक्त करने का कोई कानून नहीं है, इसलिए याचिकाकर्ता के अधिवक्ता ने केरल हाई कोर्ट के एक ऐसे ही मामले का हवाला दिया।
यह भी पढ़ें- इंसान नहीं हैवान: बच्चों के सामने पत्नी से होता था फिजिकल, बेटी को भी नहीं बख्शा; बनाए अप्राकृतिक संबंध
जून 2023 से कोमा में मुकेश
न्यायाधीश न्यायमूर्ति पंकज पुरोहित की एकलपीठ ने महिला की याचिका पर सुनवाई करते हुए ऐतिहासिक निर्णय पारित किया।
नैनीताल शहर निवासी 35 साल की महिला ने अपने 42 वर्षीय पति मुकेश जोशी का संरक्षक बनने की अनुमति प्रदान करने को याचिका दायर की थी। मुकेश जून 2023 से कोमा में हैं।
2022 में मुकेश के साथ विवाह हुआ
अदालत ने अपने निर्णय में कहा है कि अभिभावक के रूप में महिला किसी भी ऐसे दस्तावेज पर हस्ताक्षर करने की हकदार होगी जिस पर उसके पति के हस्ताक्षर किए जाने की आवश्यकता है।
कोर्ट ने अनुमति इस शर्त के साथ दी कि यदि उसके पति की तबियत ठीक हो जाती है और वह स्वस्थ जीवन जीना शुरू कर देते हैं, या अधिकार का दुरुपयोग या वित्तीय अनियमितता होती है, या फिर यदि उपचार के संबंध में देखभाल, संरक्षण व सहायता की आवश्यकता होती है, या अन्य आवश्यक चीजें उपलब्ध नहीं कराई जाती हैं तो इस अनुमति को रद किया जा सकता है।
महिला के अनुसार उनका 2022 में मुकेश के साथ विवाह हुआ और उनकी एक साल की बच्ची भी है। पति पिछले साल दो ब्रेन स्ट्रोक के बाद कोमा में चले गए थे। वह नैनीताल के प्रतिष्ठित निजी कालेज में स्पोर्ट्स टीचर हैं और वेतन करीब 35 हजार मासिक हैं।
यह भी पढ़ें- दिल्ली से देहरादून घूमने के लिए आए दंपती संग गेस्ट हाउस में बर्बरता, पत्नी से दुष्कर्म का प्रयास; पति को पीटा
महिला अपने पति का संरक्षक बनने की कोशिश कर रही हैं ताकि उनकी शादी का पंजीकरण हो सके। उनकी बेटी का आधार कार्ड बन सके और वह अपने पति के बैंक खाते का प्रबंधन कर सकें। अब तक वह अपने पति के इलाज पर 35 लाख रुपये से अधिक खर्च कर चुकी हैं और उन्हें मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है क्योंकि उनके परिवार सामान्य पृष्ठभूमि से हैं
।
याचिकाकर्ता के अधिवक्ता संदीप कोठारी के अनुसार पति की गंभीर हालत को देखते हुए कोर्ट ने ऐतिहासिक निर्णय दिया है। महिला को समाज से आर्थिक मदद की भी जरूरत है।
आपके शहर की हर बड़ी खबर, अब आपके फोन पर। डाउनलोड करें लोकल न्यूज़ का सबसे भरोसेमंद साथी- जागरण लोकल ऐप।