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विवाहित बेटियों के हक में हाई कोर्ट का ऐतिहासिक फैसला, मृतक अ‍ाश्रित के तौर पर मिलेगी नौकरी

मुख्य न्यायधीश की अध्यक्षता वाली लार्जर बेंच ने विवाहित पुत्री को परिवार का सदस्य माना है। कोर्ट ने साफ किया कि वह भी मृत आश्रित कोटे में नौकरी दिए जाने का अधिकार रखती है।

By Skand ShuklaEdited By: Updated: Wed, 27 Mar 2019 08:17 PM (IST)
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विवाहित बेटियों के हक में हाई कोर्ट का ऐतिहासिक फैसला, मृतक अ‍ाश्रित के तौर पर मिलेगी नौकरी
नैनीताल, जेएनएन। हाईकोर्ट ने उत्तराखंड की विवाहित बेटियों को बड़ी सौगात दी है। कोर्ट ने विवाहित बेटी को भी परिवार का सदस्य मानते हुए साफ कर दिया है कि मृतक आश्रित कोटे में विवाहित बेटी को भी सरकारी नौकरी पाने का अधिकार है। बुधवार को मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति रमेश रंगनाथन की अध्यक्षता वाली फुल बेंच ने यह ऐतिहासिक फैसला दिया है। इस बेंच में न्यायमूर्ति लोकपाल सिंह व न्यायमूर्ति आरसी खुल्बे भी शामिल रहे।

चमोली निवासी संतोष किमोठी ने हाई कोर्ट में याचिका दायर कर कहा था कि उनके पिता की सेवाकाल के दौरान मृत्यु हो गई थी। पिता ने सेवाकाल में ही उसकी शादी कर दी थी। शादी के बाद उसके पिता का निधन हो गया। मायके में पिता के अलावा किसी कमाऊ सदस्य के न होने पर परिवार की देखभाल के लिए उसने मृतक आश्रित कोटे के तहत नौकरी के लिए आवेदन किया था।

मामला कोर्ट तक पहुंचा तो हाई कोर्ट की एकलपीठ ने विवाहित पुत्रियों को भी परिवार की देखभाल के लिए मृतक आश्रित कोटे के तहत सरकारी नौकरी देने का आदेश पारित किया था, मगर एकलपीठ के इस आदेश के खिलाफ सरकार ने विशेष अपील दायर कर दी, जिसके बाद हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश ने मामला फुल बेंच को रेफर कर दिया। लार्जर बेंच के सामने सवाल था कि विवाहित बेटियों को सरकारी नौकरी में मृतक आश्रित कोटे से नौकरी दी जाए या नहीं।

याचिका में भी दो महत्वपूर्ण बिंदु सामने आए थे कि याचिकाकर्ता क्या मृतक आश्रित कोटे में सरकारी नौकरी पाने की हकदार है या नहीं। मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति रमेश रंगनाथन, न्यायमूर्ति लोकपाल सिंह व न्यायमूर्ति रमेश चंद्र खुल्बे की फुल बेंच ने मामले में सुनवाई करते हुए फैसला सुरक्षित रख लिया था। बुधवार को कोर्ट ने बेटियों के हक में अपना फैसला सुना दिया। 

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