हार्इ कोर्ट की सख्ती के बाद दो घंटे में खत्म हुर्इ बस ऑपरेटर्स की हड़ताल
हार्इ कोर्ट ने राज्य के सभी निजी ऑपरेटर्स को हड़ताल वापस लेने का आदेश दिया है। कोर्ट ने कहा कि वे अपनी हड़ताल एक घंटे के भीतर वापस ले।
By Raksha PanthariEdited By: Updated: Wed, 01 Aug 2018 08:20 AM (IST)
नैनीताल, [जेएनएन]: आखिरकार हाईकोर्ट की सख्ती के बाद राज्य में पिछले 12 दिन से चल रही निजी बस ऑपरेटर्स की हड़ताल खत्म हो गई है। कोर्ट की सख्ती का आलम यह था कि एक बजे एक घंटे में हड़ताल खत्म करने के आदेश पारित हुआ और तीन बजे कुमाऊं मोटर्स यूनियन ने हड़ताल खत्म होने का हलफनामा कोर्ट को सौंप दिया। कोर्ट ने परिवहन सचिव को तीन सप्ताह में ऑपरेटर्स की मांगों पर विचार करने के निर्देश दिए हैं। कोर्ट ने चेतावनी दी थी कि यदि हड़ताल वापस नहीं ली तो यूनियन भंग करने का आदेश पारित किया जाएगा।
दरअसल किराया बढ़ाने समेत पुलिस ज्यादती के खिलाफ प्रदेशभर के निजी बस ऑपरेटर्स पिछले १२ दिनों से हड़ताल पर थे। हड़ताल में केमू के साथ ही गढ़वाल मोटर्स ऑनर्स यूनियन, कुमाऊं मोटर्स समिति, गढ़वाल मोटर्स यूजर्स और ऑल इंडिया ट्रांसपोर्ट यूनियन शामिल थी।मंगलवार से उत्तराखंड की टैक्सी यूनियनें भी हड़ताल के समर्थन में कूद पड़ी थी। निजी बस ऑपरेटर्स ने रोडवेज के समान किराया बढ़ाने की मांग की थी। साथ ही कहा था कि पुलिस व आरटीओ बसों का ओवरलोडिंग में चालान कर रहे हैं, यही नहीं बस चालकों का लाइसेंस व परमिट निरस्त कर रहे हैं। कोर्ट ने सरकार को निर्देश दिए कि दो सप्ताह में निजी ऑपरेटर्स की मांग पर सहानुभूति पूर्वक विचार कर निस्तारण करें। बस ऑपरेटर्स एक सप्ताह में प्रस्ताव सरकार के समक्ष सौंपेगे।
परमिट लेकर मनमानी नहीं चलेगीहल्द्वानी के नीरज तिवाड़ी ने हाई कोर्ट में जनहित याचिका दायर कर हड़ताल से पर्वतीय क्षेत्र के यात्रियों को हो रही दिक्कतों को देखते हुए हस्तक्षेप का आग्रह किया था। सोमवार को मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति केएम जोसफ व न्यायमूर्ति शरद कुमार शर्मा की खंडपीठ ने २४ घंटे में सरकार से इस मामले में जवाब मांगा था। मंगलवार को सरकार की ओर से कोर्ट को बताया गया कि मांगों पर विचार किया जा रहा है, मगर यूनियन की कुछ मांगें न्यायोचित नहीं हैं। कोर्ट ने यूनियन को साफ चेतावनी दी कि यदि हड़ताल वापस नहीं ली तो यूनियन भंग भी की जा सकती है।
कोर्ट ने टिप्पणी की कि पर्वतीय क्षेत्र में परिवहन निगम की सेवाएं या टे्रन सेवा संचालित नहीं हैं और बहुत स्थानों में एक मात्र सार्वजनिक परिवहन निजी बसें हैं। कोर्ट ने यह भी कहा कि सरकार की ओर से निजी बसों को परमिट प्रदान किए गए हैं, ऐसे में निजी बस ऑपरेटर्स की मनमानी नहीं चलेगी। यह भी पढ़ें: स्वास्थ्य सेवाओं में सुधार को व्यापारियों ने किया प्रदर्शन
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