'मस्जिद के ध्वनि प्रदूषण मामले में नियमानुसार कार्रवाई हो', HC ने DM देहरादून को दिए निर्देश
हाई कोर्ट ने देहरादून में एक मस्जिद से ध्वनि प्रदूषण के मामले में जिलाधिकारी को कार्रवाई के निर्देश दिए हैं। कोर्ट ने कहा है कि धार्मिक स्थलों पर लाउडस्पीकर के इस्तेमाल के लिए लिखित अनुमति जरूरी है और शोर का स्तर पांच डेसीबल से अधिक नहीं होना चाहिए। कोर्ट ने यह भी कहा है कि ध्वनि प्रदूषण (विनियमन और नियंत्रण) नियम 2000 के तहत निर्धारित मानदंडों का पालन किया जाए।
जागरण संवाददाता, नैनीताल। हाई कोर्ट ने देहरादून में एक मस्जिद से ध्वनि प्रदूषण से संबंधित अवमानना याचिका पर सुनवाई करते हुए जिलाधिकारी देहरादून को देहरादून में मस्जिद के मुतवल्ली की ओर से ध्वनि प्रदूषण से संबंधित कोर्ट के आदेश के उल्लंघन मामले में चार माह के भीतर कानून के अनुसार कार्रवाई के के निर्देश दिए हैं।
वरिष्ठ न्यायाधीश न्यायमूर्ति मनोज कुमार तिवारी की एकलपीठ में पान सिंह रावत की अवमानना याचिका पर सुनवाई हुई। जिसमें मार्च 2023 में हाई कोर्ट के आदेश का अनुपालन नहीं करने का आरोप लगाया है।
याचिका में बताया गया है कि कोर्ट ने राज्य सरकार और जिलाधिकारियों को यह सुनिश्चित करने का निर्देश दिया गया था कि मंदिरों, मस्जिदों और गुरुद्वारों-चर्च में धार्मिक निकायों सहित किसी भी व्यक्ति को सक्षम प्राधिकारी से लिखित प्राधिकरण प्राप्त किए बिना लाउडस्पीकर या सार्वजनिक संबोधन प्रणाली का उपयोग नहीं किया जाएगा, यहां तक कि दिन के समय भी शोर का स्तर पांच डेसीबल से अधिक नहीं होगा।
इस आदेश के बाद दून के पान सिंह ने देहरादून में खंड शिक्षा कार्यालय के पास नवादा कुथला में स्थित एक मस्जिद के मुतवल्ली की ओर से इस आदेश के उल्लंघन होने पर याचिका दायर की तो कोर्ट ने दिन के अलग-अलग समय में कम से कम 10 मौकों पर मस्जिद की औचक जांच करने और डेसिबल के स्तर को रिकॉर्ड करने का निर्देश दिया गया। जब आदेश का अनुपालन नहीं हुआ तो पान सिंह ने डीएम के विरुद्ध अवमानना याचिका दायर की थी।
हाई कोर्ट ने 2018 में एक जनहित याचिका का निपटारा करते हुए राज्य सरकार को ध्वनि प्रदूषण (विनियमन और नियंत्रण) नियम, 2000 के तहत निर्धारित मानदंडों के अनुसार ऑडिटोरियम, कांफ्रेंस रूम, सामुदायिक हाल, बैंकट हाल को छोड़कर रात में लाउडस्पीकर, पब्लिक एड्रेस सिस्टम, संगीत वाद्ययंत्र और ध्वनि एम्पलीफायर नहीं बजाए जाने व इसका उल्लंघन करने वालों को दंडित करने का आदेश पारित किया था।
इस आदेश को 2020 में उत्तराखंड वक्फ बोर्ड के निर्वाचित सदस्य ने चुनौती दी थी, जिन्होंने राज्य भर के सभी मुतवल्लियों का प्रतिनिधि होने का दावा किया था। कोर्ट ने उसे कोई राहत नहीं दी और 2018 के हाई कोर्ट के आदेश को बरकरार रखा था।
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