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अपने संरक्षण की राह देख रहीं कुमाऊं की ऐतिहासिक धरोहरें nainital news

कुमाऊं की धरोहरों को आज संरक्षण की दरकार है। राज्य और केंद्र सरकार की सूची में शुमार होने के बाद भी तमाम धरोहरों के प्रसार और संरक्षण की दिशा में कुछ खास काम नहीं हुआ है।

By Skand ShuklaEdited By: Updated: Fri, 07 Feb 2020 06:24 PM (IST)
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अपने संरक्षण की राह देख रहीं कुमाऊं की ऐतिहासिक धरोहरें nainital news
बृजेश तिवारी, अल्मोड़ा। उत्तराखंड अपनी संस्कृति, परंपराओं और ऐतिहासिक धरोहरों के लिए जाना जाता है। बावजूद इसके तमाम ऐसी ऐतिहासिक धरोहरें हैं जो सामने नहीं आ पाई हैं। ऐसी धरोहरों को आज संरक्षण की दरकार है। हाल यह है कि संरक्षण के लिए राज्य और केंद्र सरकार की सूची में शुमार होने के बाद भी तमाम धरोहरों के प्रसार और संरक्षण की दिशा में कुछ खास काम नहीं हो पाया है।

कत्यूरी, चंद, गोरखा, अंग्रेज शासकों ने यहां कई साल राज किया। हिंदू ग्रंथों में केदारखंड और मानस खंड के रूप में कुमाऊं और गढ़वाल के पौराणिक इतिहास के बारे में स्पष्ट उल्लेख है। कुमाऊं पौराणिक इतिहास को अलग-अलग स्वरूपों में समेटे हुए हैं। पुराने पांडवकालीन व ऐतिहासिक मंदिर, शिलालेख, इंडो यूरोपियन शैली में बने भवनों के अलावा तमाम ऐसी धरोहरें हैं जो संरक्षण के अभाव में दम तोड़ रही है। कुछ मुख्य धरोहरों के अलावा तमाम अन्य ऐसी गुमनाम धरोहर हैं जो यहां के इतिहास को समझने के लिए महत्वपूर्ण साबित हो सकती है।

उद्धार की आस तक रही धरोहरें

कुमाऊं के चार जिलों में अनेक पुरानी ऐतिहासिक धरोहरें आज भी पुरातत्व विभाग की संरक्षण सूची में शामिल नहीं हो पाई है। इसमें अल्मोड़ा जिले में मुक्तेश्वर महादेव मंदिर कनरा, पवनेश्वर मंदिर पुभाऊं, प्राचीन शिलालेख कसारदेवी, बोडसी देवालय बाड़ेछीना, ल्वेटा रॉक पेंटिग, बद्रीनाथ मंदिर छत्तगुल्ला, मणिकेश्वर मंदिर,  चूड़ाकर्म महादेव मंदिर मासी। बागेश्वर जिले के ऐड़ी देवालय, टोटा देवालय, शिव मंदिर मोहली, धौभिणा बिरखम आदि। चंपावत जिले में शिव मंदिर मजपीपल, सूर्य मंदिर मण संरक्षण की सूची में शामिल हैं। जबकि पिथौरागढ़ के विष्णु मंदिर कोटली को पिछले साल ही भारत सरकार को स्थानांतरित किया गया है।

कटारमल और जागेश्वर मंदिर भी उपेक्षित

पुरातत्व विभाग के संरक्षण वाले अल्मोड़ा जिले में स्थित कटारमल सूर्य मंदिर के शिखर का हिस्सा टूटा है। जबकि जागेश्वर मंदिर की ईंटे गल चुकी हैं। यहां विभाग ही मरम्मत एवं सुधार संबंधी कार्य कराता है, लेकिन हकीकत यह है कि इनके अस्तित्व पर खतरा मंडरा रहा है।

अधिकारियों की कमी से जूझ रहा मकहमा

पौराणिक धरोहरों को संरक्षित रखने का जिम्मा संभाले पुरातत्व विभाग अधिकारियों की कमी से जूझ रहा है। हालत यह है कि कुमाऊं के चार पर्वतीय जिलों के लिए यहां पुरातत्व अधिकारी समेत अन्य काॢमकों की तैनाती नहीं हो पाई है। जिस यहां की धरोहरों का जिम्मा चतुर्थ श्रेणी कर्मचारियों के भरोसे है। ऊधमसिंह नगर के काशीपुर स्थित गोविषाण किला भी दो सुरक्षा कर्मियों के जिम्मे है। क्षेत्रीय पुरातत्व इकाई के कुमाऊं प्रभारी चंद्र सिंह चौहान का कहना है कि कुमाऊं की ऐतिहासिक धरोहरों को संरक्षित करने के प्रयास किए जा रहे हैं। इन धरोहरों में से बोडसी, ल्वेटा, बद्रीनाथ, मणिकेश्वर व चूड़ाकर्म मंदिर को जल्द ही संरक्षण की सूची में शामिल किया जा रहा है। अन्य धरोहरो के संरक्षण के प्रस्ताव भी उच्च अधिकारियों को भेजे गए हैं।

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