जम्मू-कश्मीर के चिनाब घाटी में बढ़ा मानव-वन्यजीव संघर्ष, शोध में हुआ खुलासा
लॉकडाउन में मानव वन्य जीव संघर्ष के ग्राफ में तेजी आई है। भालू लैपर्ड मानव बस्तियों तक पहुंचे हैं। जम्मू-कश्मीर के कुलभूषण कुमार ने अपने शोध में इसका खुलासा किया है।
By Skand ShuklaEdited By: Updated: Sat, 16 May 2020 09:30 AM (IST)
नैनीताल, किशोर जोशी : भारतीय सेना के पराक्रम से पाक प्रायोजित आतंकवाद से उबर रहे जम्मू-कश्मीर की चिनाब घाटी अब मानव वन्य जीव संघर्ष गंभीर समस्या के रूप में उभर रहा है। जंगलों में मानव बस्ती के विस्तार और वनों के अंधाधुंध कटान की वजह से हजारों की आबादी डर के साए में जीने को मजबूर है। कोविड-19 के लॉकडाउन के बाद हिमालयन काला भालू और लैपर्ड की मानव बस्तियों में आवाजाही से साफ निष्कर्ष निकला है कि मानव आबादी ने जंगली जानवरों को मुश्किल में डाला है। 2010 से 2018 तक इस घाटी में वन्य जीवों के हमले के 343 मामलों में 34 लोगों की मौत जबकि 309 लोग जख्मी हुए थे।
नैनीताल के प्रो. बिष्ट ने निर्देशन में किया अध्ययन
कुमाऊं विवि के डीएसबी परिसर जंतु विज्ञान विभाग के प्रो. सतपाल सिंह बिष्ट के निर्देशन में जम्मू के निवासी कुलभूषण कुमार ने जम्मू रीजन की चिनाब घाटी के 808 गांवों में से 565 गांवों मानव वन्य जीव संघर्ष के प्रभावों के अलावा 2017 से 2018 व 2019 में मानव वन्य जीव संघर्ष में मृतक, घायलों के साथ ही वन्यजीव पीडि़तों के मामलों का अध्ययन किया है। 11691 वर्ग किमी क्षेत्रफल की इस घाटी का 5555 वर्ग किमी क्षेत्रफल वनों से घिरा है। सात लाख की आबादी की इस घाटी में इस संकट से तीन लाख से अधिक लोग प्रभावित हैं। इस क्षेत्र में अक्सर मानव वन्य जीव संघर्ष के मामले आते रहे हैं। घाटी के 263 गांवों की आबादी जंगली जानवरों की बढ़ती आवाजाही की वजह से मौत के साए में जीने को मजबूर है। हालिया सालों में चिनाब घाटी के जंगलों से सटे गांवों में मानव-वन्यजीव संघर्ष के मामलों की बढ़ोत्तरी देखी गई है। शोध के अनुसार मानव बस्ती के विस्तार और अंधाधुंध वनों की कटाई की वजह से यह समस्या विकराल रूप ले रही है। कोरोना संक्रमण की रोकथाम को प्रभावी लॉकडाउन के बाद हिमालयन काला भालू और लैपर्ड दिनदहाड़े मानव बस्तियों में घूमते देखे गए हैं, जो इसका सबूत है कि मानव आबादी ने जंगली जानवरों के जीवन जीने के तरीकों पर अवरोध पैदा किया है।
वन्य जीव विभाग बनाने की वकालत
शोध में इस समस्या के समाधान के लिए वन विभाग के साथ समन्वय के लिए वन्यजीव विभाग बनाने, वनों की कटाई-जंगलों में अतिक्रमण की जांच करने की सिफारिश की गई है, ताकि मानव जीवन की रक्षा होने के साथ ही वन्यजीवों की जैव विविधता का संरक्षण किया जा सके। शोधग्रंथ में उल्लेख किए मामलों के अनुसार मानव वन्य जीव संघर्ष के मामले 2010-11 में 37, 2011-12 में 25, 2012-13 में 30, 2013-14 में 45, 2014-15 में 20, 2015-16 में में 59, 2016-17 में 23, 2017-18 में 33 सामने आए।
मानव वन्य जीव संघर्ष बढऩा चिंताजनकजम्मू-कश्मीर के साथ ही पूरे हिमालय क्षेत्र के राज्यों में मानव वन्य जीव संघर्ष की समस्या बढ़ रही है। कुमाऊं विवि की ओर से पहली बार इस तरह के ज्वलंत विषय पर शोध किया गया। जंतु विज्ञान विभाग इस तरह के शोध को प्रमोट करता रहेगा। -प्रो. सतपाल सिंह बिष्ट, रिसर्च गाइड जंतु विज्ञान विभाग।यह भी पढ़ें : जीतेगा भारत हारेगा कोरोनाकहां गया रोज का 13 हजार लीटर दूध? फेंकने-खराब होने की शिकायत नहीं, यानी नकली दूध पी रहा था शहर
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