आदमखोर के दहशत से निजात दिलाने के लिए बिजनौर से पहुंचे शिकारी, कई को कर चुके हैं ढेर
अल्मोड़ा में दहशत का पर्याय बने आदमखोर तेंदुए का शिकार करने के लिए दो शिकारियों की मदद ली गई है। दोनों ने मोर्चा संभाल लिया है।
By Skand ShuklaEdited By: Updated: Fri, 10 Jul 2020 10:47 AM (IST)
अल्मोड़ा, दीप सिंह बोरा : अल्मोड़ा में दहशत का पर्याय बने आदमखोर तेंदुए का शिकार करने के लिए दो शिकारियों की मदद ली गई है। दोनों ने मोर्चा संभाल लिया है। उत्तर प्रदेश बिजनौर से पहाड़ पहुंचे शिकारी नवाब सैफी आशिफ और राजीव सोलोमणी अब तक कई आदमखोरों को ढेर कर चुके हैं। हालांकि दोनों शिकारी वन्य जीवों के संरक्षण के भी उतने ही पक्षधर हैं। मगर बात जब इंसानी जिंदगी पर आदमखोर के संकट की हो तो ठीक वैसे ही निपटते हैं जैसे किसी हिस्ट्रीशीटर से। चूंकि हिंसक वन्यजीव बेजुबान होते हैं, लिहाजा मार गिराने के बाद मलाल भी उतना ही होता है। दोनों शिकारी तेंदुओं की घटती संख्या से चिंतित हैं और उन्हें संरक्षित करने की पैरवी भी करते हैं। पेटशाल से उडल गांव तक आतंक का पर्याय बन चुके आदमखोर तेंदुए का शिकार करने आए दोनों शिकारियों 'जागरण' से खास बातचीत में अपनी बातें साझा की।
आदमखोर बाघ संग चार तेंदुओं को ढेर कर चुके हैं राजीव
शिकारी राजीव सोलोमणी उत्तराखंड में अब तक 36 आदमखोर तेंदुआ से छुटकारा दिला चुके शार्प शूटर जॉय व्हीकल के करीबी हैं। वर्ष 2006, 2008 व 2012 में वह कॉर्बेट पार्क में आदमखोर बाघ के साथ ही चार तेंदुए को ढेर कर चुके। वह कहते हैं, एक तरफ इंसानी जिंदगी बचानी है तो वन्यजीव बचाने भी जरूरी हैं। तेंदुआ खूबसूरत व फूर्तीला वन्यजीव है। संख्या वैसे ही घट रही। इन्हें संरक्षित करने की जरूरत है। जब एक अपराधी सिरदर्द बन जाता है तो एनकाउंटर करना ही पड़ता है। वैसे ही आदमखोर होने पर तेंदुओं को मारना भी मजबूरी। हालांकि बुरा भी लगता है। पहली कोशिश यही है कि उसे कैद कर लिया जाए। मौका लगे तो ट्रैंकुलाइज कर लें। राजीव ने जॉय व्हीकल के साथ वर्ष 2006 से यह पेशा शुरू किया था।
आठ बादमखोंरों का शिकार कर चुके हैं नवाब सैफी बाघ समेत अब तक आठ आदमखोर गुलदारों को निशाना बना चुके शिकारी नवाब सैफी आशिफ वन्जीवों से जुड़ी नामचीन संस्था बांबे नेचुलर हिस्ट्री सोसायटी व डब्ल्यूडब्ल्यूएफ के आजीवन सदस्य भी हैं। वह कॉर्बेट पार्क रामनगर में आदमखोर बाघ के साथ ही जैंती (अल्मोड़ा), श्रीनगर, गोगाड़ी, उत्तरकाशी, रुद्रपयाग में अब तक सात तेंदुओं से निजात दिला चुके। कहते हैं बिगड़ैल हो जाएं और ग्रामीणों की जिंदगी खतरे में पड़े तो पहला मकसद उन्हें नष्ट करना होता है। हालांकि हत्या किसी की भी हो, बुरा तो लगता ही है। नवाब 1999 से इस पेशे में उतरे हैं।
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