शहद खा रहे हैं तो एंटीबायोटिक का शरीर पर नहीं होगा असर, जानिए क्या है माजरा
मधुमक्खी पालक मधुमक्खियों की बीमारी को दूर करने के लिए एंटीबायोटिक दे रहे हैं। ऐसे में इनके शहद से मानव शरीर में पहुंचे बैक्टीरिया पर एंटीबायोटिक बेअसर साबित हो रहा है।
By Skand ShuklaEdited By: Updated: Sat, 02 Mar 2019 05:37 PM (IST)
किशोर जोशी, नैनीताल : जिले के मधुमक्खी पालक मधुमक्खियों में होने वाली बीमारी को दूर करने के लिए एंटीबायोटिक का उपयोग कर रहे हैं। एंटीबायोटिक का सेवन कर चुकी मधुमक्खी के शहद से मानव शरीर में पहुंचे बैक्टीरिया पर एंटीबायोटिक बेअसर साबित हो रहा है। यूरोपीय देशों ने इसी वजह से शहद के आयात पर पाबंदी लगाई है। इस विषय पर शोध अध्ययन कर रही डीएसबी जंतु विज्ञान विभाग की शोधार्थी नगमा परवीन को उत्तराखंड स्टेट साइंस एंड टेक्नोलॉजी कांग्रेस में यंग साइंटिस्ट अवार्ड से नवाजा गया है।
मल्लीताल जयलाल साह बाजार निवासी पेंटर नूर अहमद की छह भाई बहनों में सबसे छोटी नगमा परवीन डीएसबी जंतु विज्ञान विभाग के प्रो. सतपाल सिंह बिष्टï के अधीन शोध कार्य कर रही हैं। नगमा ने विज्ञान कांग्रेस में स्टेटस ऑफ एंटी बायोटिक यूज्ड इन एंटीकल्चर बाइ डिकीपर्स इट्रीट दी सीरियल बैक्ट्रीयल कैथोजैनसिस विषयक पोस्टर प्रदर्शित किया। नगमा के शोध का विषयक मधुमक्खी में एंटीबायोटिक के उपयोग का मानव में प्रभाव है।
75 फीसद कर रहे एंटीबायोटिक का उपयोग
नगमा के अनुसार शोध के तहत नैनीताल के आठ गांवों के मधुमक्खी पालन का अध्ययन किया गया। इसमें ज्योलीकोट भल्यूटी, हल्द्वानी के लोहरियासाल मल्ला, काठगोदाम, रामनगर, नाथुपुर छोई, नीरीपुरा छोई, मदनपुर कुरमी, बैलपड़ाव आदि के करीब दो दर्जन मधुमक्खी पालकों से जानकारी जुटाई गई। अध्ययन में पाया कि 75 फीसद मधुमक्खी पालक मधुमक्खियों में बीमारी होने पर टैरामाइसिन एंटीबायोटिक का उपयोग करते हैं। यह ब्राड स्पेक्ट्रम एंटीबायोटिक है। इसमें अनेक तरह के बैक्टीरिया पाए जाते हैं। एंटीबायोटिक का सेवन कर चुकी मधुमक्खी शहद बनाती है तो बैक्टीरिया उसमें चले जाते हैं। शहद से यह मानव शरीर तक पहुंचते हैं, फिर शहर खाने वाले व्यक्ति में एंटीबायोटिक का असर ही नहीं होता। नगमा को यंग साइंटिस्ट अवार्ड यूकॉस्ट के महानिदेशक डॉ. राजेंद्र डोभाल द्वारा दिया गया।
गोल्ड मेडल मिलने से उत्साहित
सामान्य परिवार की विज्ञान कांग्र्रेस के पोस्टर वर्ग में गोल्ड मेडल मिलने से बेहद उत्साहित है। उन्होंने इसका श्रेय मुख्य शोधकर्ता प्रो. एसपीएस बिष्टï के साथ ही अपने माता-पिता व भाइयों को दिया। साथ ही कहा कि शोध के माध्यम से समाज की सेवा करना चाहती हैं।
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