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भ्रष्‍टाचार के खिलाफ है इस अफसर की जंग, अब केन्‍द्र की नाक में किया दम

भारतीय वन सेवा (आइएफएस) के इमानदार और तेज तर्रार वरिष्‍ठ अधिकारी संजीव चतुर्वेदी की एक याचिका केन्‍द्र सरकार के गले की फांस बन गई है।

By Skand ShuklaEdited By: Updated: Mon, 22 Oct 2018 05:49 PM (IST)
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भ्रष्‍टाचार के खिलाफ है इस अफसर की जंग, अब केन्‍द्र की नाक में किया दम
स्‍कन्‍द शुक्‍ल (जेएनएन) : भारतीय वन सेवा (आइएफएस) के इमानदार और तेज तर्रार वरिष्‍ठ अधिकारी संजीव चतुर्वेदी की एक याचिका केन्‍द्र सरकार के गले की फांस बन गई है। केन्‍द्रीय सूचना आयोग (सीआइसी) के मुख्‍य सूचना आयुक्‍त राधा कृष्‍ण माथुर ने प्रधानमंत्री कार्यालय (पीएमओ) को 2014 से 2017 के बीच हुए घोटलों की शिकायत सार्वजनिक करने और इन पर की गई कार्रवाई को साझा करने के निर्देश दिए हैं। सूचनाओं की जानकारी 15 दिन के अंदर सार्वजनिक करनी होगी। भारतीय वन सेवा-2002 बैच के अधिकारी चतुर्वेदी फिलहाल उत्‍तराखंड के नैनीताल जिले के हल्‍द्वानी में तैनात हैं। आइए आपको बताते हैं भ्रष्‍टाचार के खिलाफ लड़ाई के कारण अक्‍सर ट्रांसफर झेलने वाले इस चर्चित अधिकारी के कुछ और किस्‍से जिनके कारण वे में चर्चा में रहे हैं।

एम्‍स में 200 से अधिक भ्रष्‍टाचार के मामलों का किया था खुलासा

एम्‍स में मुख्‍य सतर्कता अधिकारी (सीवीओ) रहते हुए संजीव चतुर्वेदी ने भ्रष्‍टाचार के 200 से अधिक मामले उजागर किए थे। जिसमें करीब 80 मामलों में आरोपियों को सजा भी हुई थी। कई के खिलाफ सीबीआइ जांच भी बैठाई गई थी। उन्‍होंने राज्‍यसभा सदस्‍य (सांसद) जेपी नड्डा पर भी भ्रष्‍टाचार के आरोप लगाए थे। इतना ही नहीं एम्‍स में नकली दवाओं की बिक्री और इसमें बीजेपी-कांग्रेस के नेताओं की संलिप्‍तता को लेकर भी सवाल उठाया था । जिसको लेकर स्‍वास्‍थ्‍य मंत्री जेपी नड्डा से भी उनकी ठन गई थी। इस मामले ने काफी तूल पकड़ा था और इसे लेकर मोदी सरकार की काफी किरकिरी हुई थी। 

चार साल के लिए हुई थी संजीव की नियुक्ति

संजीव की नियुक्ति एम्स में सीवीओ के रूप में जून, 2012 से जून, 2016 तक के लिए की गई थी। खास बात यह है कि निश्चित अवधि से दो साल पहले ही उन्‍हें हटाने का आदेश तब खुद तत्‍कालीन केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री डॉ. हर्षवर्धन ने दी थी।

हटाने के पीछे ये बताया था कारण

संजीव चतुर्वेदी को सीवीओ पद से हटाने पर तत्कालीन स्वास्थ्य मंत्री डॉ. हर्षवर्धन ने कहा था कि चतुर्वेदी का एम्स के सीवीओ पद पर रहना असंवैधानिक है। डॉ. हर्षवर्धन ने ट्वीट कर यह भी कहा था कि सीवीसी ने दो बार चतुर्वेदी का नाम खारिज किया, लेकिन बाद में खुद सीवीसी ने इस मामले में स्वास्थ्य मंत्रालय से अपना पक्ष स्पष्ट करने को कहा था।

नड्डा ने दिया था सीआर तैयार करने का आदेश

नवंबर 2014 में जेपी नड्डा के केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री का कार्यभार संभालाने के बाद उनका एम्स के प्रेसिडेंट के तौर पर नोटिफिकेशन जारी हुआ। इस बीच मार्च 2015 में संजीव अचानक 28 दिनों की छुट्टी पर चले गए। इसी बीच केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री जेपी नड्डा ने संजीव चतुर्वेदी की साल 2014-15 की वार्षिक गोपनीय रिपोर्ट (एसीआर) लिखने का आदेश दे दिया था। इसी को आधार बनाकर संजीव ने कैट में इस आदेश को चुनौती दी थी,जहां से उन्हें स्टे मिल गया था । यह गोपनीय रिपोर्ट तैयार करने का आदेश एम्स में रहते हुए संजीव द्वारा भ्रष्टाचार के मामले उठाए जाने के कारण दिया गया था। भ्रष्टाचार के आरोप स्वास्थ्य मंत्री पर भी लगे थे।

हिमाचल के मुख्‍य सचिव पर भी लगाए थे भ्रष्‍टाचार के आरोप

संजीव चतुर्वेदी ने हिमाचल प्रदेश के मुख्‍य सचिव विनीत चौधरी पर भी भ्रष्‍टाचार के आरोप लगाए थे। जिसके बाद चौधरी ने शिमला की एसीजीएम की अदालत में आपराधिक मानहानि की निजी शिकायत दर्ज कराई थी। शिकायत में 1982 बैच के हिमाचल काडर के आइएएस अधिकारी चौधरी ने कहा था कि संजीव चतुर्वेदी ने उनके भ्रष्टाचार के मामलों को जगह-जगह उजागर कर उनकी मानहानि की। इस शिकायत पर निचली अदालत ने संज्ञान लिया व चतुर्वेदी के खिलाफ जमानती वांरट जारी कर दिए। जिसके बाद वे हाई कोर्ट और फिर वहां से राहत न मिलने के कारण सुप्रीम कोर्ट पहुंचे थे।

अब मोदी सरकार के लिए ये याचिका बनी चुनौती

आइएफएस संजीव चतुर्वेदी ने अगस्त 2017 में पीएमओ में लगाई आरटीआइ में पूछा था कि एक जून 2014 से अगस्त 2017 तक कैबिनेट मंत्रियों के खिलाफ भ्रष्टाचार के कितने मामले आए। शिकायत, जांच व कार्रवाई की प्रति उपलब्ध करवाई जाए। इसके अलावा विदेशों से कालाधन मंगवाने की प्रक्रिया, विज्ञापनों पर खर्च रकम, मेक इन इंडिया में तैयार स्वदेशी उत्पाद, स्मार्ट सिटी की सूची व उनमें क्या काम हुआ की सूचना उपलब्ध करवाने को कहा। वहीं लोकपाल गठन को क्या कार्रवाई अब तक हुई। इसकी सूचना भी मांगी गई। एम्स से चतुर्वेदी को हटाने के बाद जेपी नड्डा पर लगे भ्रष्टाचार के आरोपों पर क्या कार्रवाई हुई व गंगा में प्रदूषण मानकों का ब्यौरा 2014 से 2017 तक की अवधि का देने को कहा। आइएफएस चतुर्वेदी ने बताया कि वीडियो क्रांफ्रेसिंग के दौरान मुख्य सूचना आयुक्त ने पीएमओ को पांच दिन के भीतर विज्ञापन संबंधी जानकारी व अन्य बिंदुओं पर सूचना 15 दिन के भीतर देने का फैसला सुनाया है।

भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई के कारण मिल चुका है ये अवार्ड

संजीव चतुर्वेदी को 2015 का रेमन मैग्सेसे पुरस्कार दिया गया है। वे दूसरे सर्विंग ब्यूरोक्रेट हैं, जिन्हें इस पुरस्कार से नवाजा गया है। इससे पहले किरण बेदी को यह पुरस्कार मिल चुका है । संजीव चतुर्वेदी को यह पुरस्कार सार्वजनिक क्षेत्र में भ्रष्टाचार के मामलों को उजागर करने के लिए दिया गया है। 

तेज तर्रार अफसर के कॅरियर पर एक नजर

  • संजीव चतुर्वेदी ने 1995 में मोतीलाल नेहरू इंस्‍टीट्यूट ऑफ़ टेक्‍नोलॉजी, इलाहाबाद से बीटेक की डिग्री ली।
  • 2002 के आईएफएस संजीव मूलत: हरियाणा काडर के अफ़सर हैं। पहली पोस्टिंग भी कुरुक्षेत्र में मिली। संजीव ने यहां हांसी बुटाना नहर बनाने वाले ठेकेदारों के खिलाफ करप्‍शन के कारण केस दर्ज कराया था।
  • 2014 में संजीव को स्‍वास्‍थ्‍य सचिव ने ईमानदार अधिकारी का खिताब दिया था।
  • भ्रष्टाचार के खिलाफ लगातार कार्रवाई किए जाने के कारण पांच साल में 12 बार स्थानान्तरण का दंड झेलना पड़ा ।
  • 2009 में हरियाणा के झज्जर और हिसार में वन घोटालों का पर्दाफाश किया था।
  • 2009 में ही संजीव पर एक जूनियर अधिकारी संजीव तोमर को प्रताड़ित करने का आरोप लगा, हालांकि बाद में वह आरोप मुक्त हो गए।
  • संजीव ने 2007-2008 में झज्जर में एक हर्बल पार्क के निर्माण में हुए घोटाले का पर्दाफाश किया, जिसमें मंत्री और विधायकों के अलावा कुछ अधिकारी भी शामिल थे।
  • राज्य सरकार की कार्रवाइयों से परेशान होकर 2010 में केंद्र में प्रति नियुक्ति की अर्जी दी थी।
  • 2012 में उन्हें एम्स के डिप्टी डायरेक्टर का पद सौंपा गया। एम्स के सीवीओ पद की जिम्मेदारी सौंपी गई।
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