चर्चित आइएफएस संजीव चतुर्वेदी ने चुनाव आयुक्त अशोक लवासा की ईमानदारी खड़े किए सवाल
भ्रष्टाचार के विरुद्ध लड़ाई के लिए मैग्सैसे पुरस्कार से सम्मानित चर्चित आइएफएस संजीव चतुर्वेदी ने चुनाव आयुक्त अशोक लवासा की ईमानदारी व कार्यप्रणाली पर गंभीर सवाल खड़े किए हैं।
By Skand ShuklaEdited By: Updated: Mon, 20 Jan 2020 12:23 PM (IST)
नैनीताल, किशोर जोशी : भ्रष्टाचार के विरुद्ध लड़ाई के लिए मैग्सैसे पुरस्कार से सम्मानित चर्चित आइएफएस संजीव चतुर्वेदी ने चुनाव आयुक्त अशोक लवासा की ईमानदारी व कार्यप्रणाली पर गंभीर सवाल खड़े किए हैं। उन्होंने लवासा को लिखे 90 पेज के पत्र को सार्वजनिक करते हुए उनके खिलाफ दिए गए न्यायालय के पांच आदेश, उनके कार्यकाल के अंतर्गत दर्ज फाइल नोटिंग को संलग्न करते हुए उनकी कार्यप्रणाली पर सवाल उठाए हैं।
कोर्ट ने अशोक की कार्यप्रणाली पर की थी प्रतिकूल टिप्पणी 1980 बैच के हरियाणा कैडर के आइएएस अशोक केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय में अगस्त 2014 से अप्रैल 2016 तक सचिव रहे। इसी अवधि में संजीव के दिल्ली सरकार में प्रतिनियुक्ति पर जाने का प्रकरण उनके सामने आया था। जिसके लिए न्यायालय ने उनके कार्यप्रणाली को लेकर प्रतिकूल टिप्पणी की थी। उस दौरान संजीव एम्स में केंद्रीय प्रतिनियुक्ति में तैनात थे। दिल्ली की तत्कालीन सरकार उनको प्रतिनियुक्ति पर अपने यहां बुलाना चाहती थी।
आम चुनाव में अन्य आयुक्तों से आइएएस अशोक का रहा मतभेद आइएएस अशोक को 2018 में चुनाव आयुक्त बनाया गया था। 2019 के लोकसभा चुनाव के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के विरुद्ध चुनाव आचार संहिता के कथित उल्लंघन मामले में उनका अन्य चुनाव आयुक्तों से मतभेद चर्चा में रहा था। संजीव का आरोप है कि अशोक की बेटे की कंपनी में हुए निवेश, उनकी पत्नी की कंपनियों, गुड़गांव में फ्लैट में स्टांप ड्यूटी के भुगतान को लेकर अनियमितता की जांच आयकर विभाग व प्रवर्तन निदेशालय द्वारा शुरू की गई है।
संजीव ने अशोक के लेख पर कड़ी प्रतिक्रिया दी इसी जांच को लेकर अशोक ने पिछले साल दिसंबर अंतिम सप्ताह में अंग्रेजी के चुनिंदा अखबारों तथा तमाम न्यूज पोर्टल पर ईमानदारी से काम करने के चलते होने वाली तकलीफों के बारे में विस्तार से लिखा था। संजीव ने अशोक के इसी लेख पर कड़ी प्रतिक्रिया देते हुए उनके कार्यकाल के दौरान अपने मामले में मई 2015 से जून 2016 तक की गई कोर्ट की पांच टिप्पणियों का हवाला दिया है। जिनमें कोर्ट ने न केवल आइएएस अशोक को नियम कानून के दायरे मेें रहकर काम करने के आदेश जारी किए बल्कि यहां तक कोर्ट ने कहा कि संजीव को बार-बार अपने मामले के निस्तारण के लिए न्यायालय के चक्कर लगाने को मजबूर किया जा रहा है।
पीएम की शक्तियों का उपयोग कर अवैध आदेश को कोर्ट ने किया निष्प्रभावी अक्टूबर 2015 में कोर्ट ने यहां तक लिखा कि प्रतिवादी अशोक लवासा ने खुद स्वीकारा है कि आठ माह से संजीव के केस में कोई कार्रवाई नहीं की गई थी। संजीव ने पत्र में लिखा है कि यह स्थिति तब थी, मई 2015 में न्यायालय ने पहले ही संजीव के एक अन्य मामले में यह कहा था कि दिल्ली कैट ने उनका केस अत्यधिक प्रताडऩा का दुर्लभ मामला था। कोर्ट ने यह भी कहा था कि आगे इसमें कुछ न किया जाए कि भ्रष्टाचार पुरस्कृत हो और ईमानदारी दंडित हो। उस समय लवासा ही केंद्रीय वन एवं पर्यावरण के सचिव थे।
अशोक बताएं उन्होंने कब इमानदार से काम किया संजीव ने अपने सार्वजनिक पत्र में लवासा से यह साफ करने को कहा है कि अपने 37 साल की सेवाकाल में उन्होंने कब ईमानदारी से काम किया, कब ईमानदारी के चलते उनका किसी भी प्रकार से सत्ता के संघर्ष हुआ हो, या किसी भी प्रकार की कोई प्रताडऩा झेलनी पड़ी हो। संजीव ने कार्मिक मंत्रालय की आधिकारिक वेबसाइट का हवाला देते हुए कहा कि लवासा को पूरे सेवाकाल में वित्त, गृह, ऊर्जा, नागरिक उड्डयन तथा उद्योग जैसे महत्वपूर्ण विभागों में तैनाती से नवाजा गया था।
संजीव ने कहा कि अशोक के लेख और कोर्ट की टिप्पणी में कोई सामजस्य नहीं संजीव ने यह भी साफ करने को कहा है कि उनके लेख में लिखी बातें व उनके बारे में न्यायालय की प्रतिकूल टिप्पणी में कोई सामंजस्य नहीं है और इसलिए ईमानदारी के बारे में उनका लेख केवल एक मजाक जैसा है। पत्र में यह भी कहा है कि लवासा ने फरवरी 2016 व अप्रैल 2016 मेें प्रधानमंत्री को दी गई शक्तियों का स्वयं उपयोग करते हुए अवैध आदेश पारित किए, जिसे कोर्ट ने निष्प्रभावी कर दिया। इधर संजीव के पत्र में लगाए आरोपों पर चुनाव आयुक्त के मोबाइल नंबर पर संपर्क किया गया, मगर मोबाइल रिसीव नहीं हुआ।
आम चुनाव में पीएम मोदी व शाह को क्लीन चिट देने के मामले में दर्ज की थी असहमति पिछले आम चुनाव में पीएम नरेंद्र मोदी और भाजपा अध्यक्ष अमित शाह को आदर्श आचार संहिता उल्लंघन के मामलों में क्लीन चिट देने के मामले में चुनाव आयोग में असहमति हो गई थी। चुनाव आयुक्त अशोक लवासा ने अल्पमत के फैसले को रिकॉर्ड नहीं किए जाने के विरोध में मुख्य चुनाव आयुक्त (सीईसी) सुनील अरोड़ा को पत्र लिखकर आचार संहिता से संबंधित बैठकों में शामिल होने से साफ इन्कार कर दिया था। इस पत्र पर बवाल मचने के बाद सीईसी विवाद को गैरजरूरी बताया था। उन्होंने कहा, ऐसे वक्त में विवाद से बेहतर खामोशी है।
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