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ईगास पर उत्तराखंड में होती है बैलों की पूजा, लेकिन पहाड़ों पर पूजा के लिए कई गांवों में बैल बचे ही नहीं

Igas 2022 उत्तराखंड में इगास पर्व पर बैलों की पूजा करने की प्रथा है। लेकिन पलायन खेती में मिनी ट्रैक्टर के प्रयोग और बंजर खेतों की संख्या बढ़ने से कई गांवों में बैल बचे ही नहीं हैं।

By kishore joshiEdited By: Skand ShuklaUpdated: Fri, 04 Nov 2022 08:45 AM (IST)
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ईगास पर होती है बैलों की पूजा, लेकिन पहाड़ों पर पूजा के लिए कई गांवों में बैल बचे ही नहीं

किशोर जोशी, नैनीताल : उत्तराखंड में आज लोकपर्व ईगास मनाया जा रहा है। दीपावली के 11 दिनों बाद कुमाऊं के अधिकांश पर्वतीय इलाकों में इस पर्व पर बैलों की पूजा अर्चना करने के साथ ही उन्हें सजाया जाता है।

पलायन की मार, खेती में मिनी ट्रैक्टर के प्रयोग और बंजर भूमि के बढ़ते दायरे के बाद बैलों की संख्या बेहद कम रह गई है। आलम यह है कि कई ग्राम पंचायतों बैल हैं ही नहीं। 2012 तथा 2019 में जारी पशुगणना के आंकड़ों से भी साफ है कि पहाड़ में बैल व बछड़ों की संख्या में अत्यधिक गिरावट आ गई है।

कुमाऊं के पर्वतीय गांवों में 90 के दशक के बाद तक एक्यासी त्यार या धूमधाम से मनाया जाता रहा है। इस दिन सुबह से ही गांवों में बच्चे से लेकर हर वर्ग के पशुप्रेमी बैलों को सजाने-संवारने की सामग्री का इंतजाम करने व उनके लिए खिचड़ी, पूरी पकवान तैयार करने में जुट जाता हैं।

पशुप्रेमी बैलों के लिए घंटी लाने, डोरी को रंगने, भांग या भीमल के रेशे निकालकर उससे आकर्षक रंग में रंगते थे। स्थानीय भाषा में उसे मुझयाड़ कहते हैं। जिसे बैल के सींग में बांधा जाता है। बैल या बछड़े को टीका लगाकर उसकी पूजा अर्चना की जाती है। सींग से लेकर गले, जुड़ें से लेकर पूंछ तक सरसों का तेल लगाया जाता है।

रीठा के बीज व जंगल से खास तरह के बीजों को चुनकर उसकी माला भी सींग में बांधी जाती है। इस पर्व पर शुभ मुहुर्त पर बैल को खिचड़ी तथा पूड़ी पकवान खिलाए जाते रहे हैं। अगले दिन इस पर्व पर बैलों की लड़ाई भी जंगल में खूब होती थी।

समीपवर्ती थापला निवासी पशुपालक केशव दत्त पंत ने माना कि खुर्पाताल-मंगोली क्षेत्र की करीब दस ग्राम पंचायतों में बैलों की संख्या बेहद कम रह गई है। थापला के 90 परिवारों में मात्र चाचर जोड़ी बैल हैं, जबकि पहले हर घर में बैलों की जोड़ी थी।

पशुगणना ने उजागर की पशुपालकों की हकीकत

राज्य में बैल व नर बछड़ों की संख्या तेजी से घट रही है, इसके बाद भी बैलों को आवारा छोड़ने की प्रवृत्ति भी बढ़ रही है। बाजारों, हाइवे समेत अन्य कस्बों में आवारा छोड़े गए बैल व बछछ़े बड़ी मुसीबत बन रहे हैं जबकि गांवों में खेत जुताई के लिए रखे बैल बेहद कम हो गए हैं।

पशुपालन विभाग के निदेशक प्रेम कुमार ने 2012 व 2019 की पशुगणना का जिक्र करते हुए बताया कि 2012 में वयस्क क्रासब्रीड बैलों की संख्या करीब 28 हजार थी जबकि 2019 में करीब 38 प्रतिशत घटकर 17 हजार रह गई। बद्री गाय या पहाड़ी नस्ल की गाय से पैदा बैल 2012 में पांच लाख दस हजार जबकि 2019 में करीब 31 प्रतिशत घटकर 356688 रह गए हैं।

गढ़वाल मंडल में दो साल तक के नर गौवंश, प्रजनन एवं कृषि कार्य व अन्य कार्यों के लिए पाले के गए स्वदेशी बैल गढ़वाल मंडल में 342273 हैं जबकि कुमाऊं में यह संख्या 280854 है। 2019 की पशुगणना के आंकड़ों के अनुसार क्रास ब्रीड किस्म के प्रजनन व कृषि कार्य, बैल गाड़ी, फार्म आदि के लिए पाले गए बैलों की संख्या करीब 47 हजार है, इसमें डेढ़ साल तक के करीब 30 हजार हैं।

स्वदेशी बैलों में दो साल तक के करीब 76 हजार जबकि दो साल से अधिक आयु के चार लाख 32 हजार हैं। 2012 में यह संख्या विदेशी में 80615, स्वदेशी छह लाख 24 हजार से अधिक थी।

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