ऐपण को ग्लोबल पहचान दिलाने में जुटे IIM के उत्कल, पहाड़ की महिलाओं को भी मिल रहा रोजगार
काशीपुर आइआइएम (IIM Kashipur) से बिजनेस में मास्टर डिग्री हासिल करने वाले उत्कल ऐपण (aipan) को अलग पहचान दी है। उन्होंने इसे अपने स्टार्टअप का आधार बनाया है।
By Skand ShuklaEdited By: Updated: Wed, 17 Jun 2020 04:05 PM (IST)
काशीपुर,अभय पाडेय : उत्तराखंड अपनी अनूठी सांस्कृति और लोककलाओं के लिए जाना जाता है। इन्हीं में से एक ऐपण (aipan) कला प्रदेश को विशेष पहचान देती है। शुभ कार्यों और धार्मिक अनुष्ठानों में इसका खास महत्व है। इसके महत्व और विशेष पहचान को देखते हुए काशीपुर आइआइएम (IIM Kashipur) से बिजनेस में मास्टर डिग्री हासिल करने वाले उत्कल इसे अलग पहचान दी है। उन्होंने इसे अपने स्टार्टअप का आधार बनाया है। उनका कहना है कि लोक कलाओं को संरक्षरित करने के लिए जरूरी है कि उसे लोगों की भावनाओं के साथ बाजार से जोड़ दिया जाए।
ऐपण के डिजाइन वाले प्रोडक्ट की डिमांड बढ़ी
उत्कल ने बताया कि अल्मोड़ा के लाला बाजार के मार्केट की रिसर्च के बाद आभास हुआ कि उत्तराखंड की यह कला हजारों लोगों के लिए खासकर महिलाओं के लिए रोजगार का बड़ा माध्यम बन सकती है। आज ऐपण (aipan) के डिजाइन की बड़ी मांग है। जूट बैग, रेडिमेड गारमेंट, पिलो कवर, चाय के कप, नेम प्लेट से लेकर चाबी के छल्ले, रिंग, पूजा की थाली आदि प्रोडेक्ट पर ऐपण (aipan) की पेंटिंग को लोग खूब पसंद कर रहे हैं।उत्कल बताते हैं कि वह एक एनजीओ के माध्यम से जुड़े महिलाओं के लिए मार्केट तैयार करने में जुटे हैं। इसके लिए ऑनलाइन व आफलाइन दोनों प्लेटफार्म पर तैयारी की जा रही है।
बड़ी कंपनियों की चाह छोड़ स्टार्टअप की पकड़ी राहकानपुर शहर से अपनी शुरुआती पढ़ाई करने वाले उत्कल 2015 में इंजीनियरिंग करने के बाद एक प्राइवेट कंपनी में जॉब की। इसी दौरान उनका सलेक्शन काशीपुर आइआइएम (IIM Kashipur) में हो गया। काशीपुर से बिजनेस की पढ़ाई के दौरान ही इनके मन में यह बात घर कर गई कि जॉब करना बड़ी बात नहीं दूसरे रोजगार देना बड़ी बात है। इसके बाद इन्होंने पढ़ाई के दौरान ही स्टार्टअप पर ध्यान केंन्दित करना शुरू कर दिया। कॉलेज टाइम में इन्होंने ऐपण कला (aipan) के बारे में रिर्सच करना शुरू कर दिया था। पहाड़ की कलाओं को पुर्नजीवित कर हुए उसे बाजार से जोड़ने के काॅन्सेप्ट पर काम करना शुरू कर दिया ।
अल्मोड़ा के लाल बाजार से उत्कर्ष को मिली राहरिसर्च के दौरान पता चला कि अल्मोडा में लाल बाजार ऐपण (aipan) कला का पुराना मार्केट रहा है। 2019 में वंहा कुछ दिन रहकर बाजार को समझा। इस दौरान पता चला कि लालबाग में ऐपण कला से जुड़े सामानों की दुकाने धीरे- धीरे बंद होती गईं। इन्हें एक दुकान मिली जहां पता चला कि कुमाऊं के काठगोदाम में तीन ऐसी स्वयं सेवी संस्थाएं हैं, जिसमें 500 से ज्यादा की संख्या में महिलाएं ऐपण कला का काम करती हैं। इसके बाद इन संगठनों से मिलकर उत्कर्ष ने मार्केट पर रिर्सच शुरू किया।
ग्लोबल पहचान दिलाने के लिए डिजिटल का लिया सहाराऐपन कला (aipan) की मांग देश में ही नहीं बल्कि विदेशों में भी खूब है, लेकिन समय के साथ इस कला को ग्लोबल पहचान देने का प्रयास नहीं किया गया। आज ऐपण कला से घरों की इंटीरियर से लेकर बड़े इवेंट में अपनी छाप छोड़ रहा है। उत्कल ने ऐपण कला से बनने वाले प्रोडक्ट जूट बैग, रेडिमेड गारमेंट, पिलो कवर, चाय के कप, नेम प्लेट से लेकर चाबी के छल्ले, रिंग, पूजा की थाली को ग्लोबल पहचान दिलाने के लिए सोशल मीडिया व वेबसाइट का सहारा लिया। इसका नतीजा है कि आज आॅनलाइन वेबसाइट के जरिए भारत के विभिन्न कोने से इनके लिए आॅर्डर आते हैं और कुमाऊं का यह प्रोडेक्ट विदेश तक पहुंच रहा है। इन प्रोडक्ट के डिमांड बढ़ने से एनजीओ से जुड़ी महिलाओं को भी अच्छा मुनाफा हो रहा है।
ऑर्डर के हिसाब से प्रोडक्ट भी हो रहे तैयारउत्कल के लिए अपने स्टार्टअप के लिए सबसे उत्साहित व भावुक करने वाला पल वह था जब आइआइएम (IIM kashipur) के दीक्षांत समारोह में पिछली बार अतिथितयों का स्वागत करने के लिए स्मृति चिन्ह् बनाने का ऑर्डर मिला। यह उनका पहला आर्डर था जो उनके काॅलेज से ही मिला। इसके बाद वे सरकार के ई प्लेटफार्म के जरिए इन प्रोडक्टों की बिक्री भी शुरू कर रहे हैं, जिससे उन्हें बड़ा मार्केट मिलेगा। सरकार के ई काॅमर्स वेबसाइट पर आने से इन्हे बड़ा अवसर भी मिलेगा, जिसमें सरकारी विभागों व सरकारी संस्थानों की तरफ से ऐपण कला को लेकर ऑर्डर मिलने लगेगा। फिलाहाल हर माह विभिन्न समूहों की मदद से देश के विभिन्न शहरों में दर्जनों डील फाइनल किए जा चुके हैं।
अल्पना का ही प्रतिरूप है ऐपण उत्तराखंडी लोक कला के विविध आयाम हैं। यहाँ की लोककला को ऐपण (aipan) कहा जाता है। यह अल्पना का ही प्रतिरूप है। संपूर्ण भारत के विभिन्न क्षेत्रों में लोक कला को अलग-अलग नामों जैसे बंगाल में अल्पना। उत्तर प्रदेश में चौक पूरना, गुजरात में रंगोली, मद्रास में कोलाम, राजस्थान में म्हाराना और बिहार में मधुबनी से जाना जाता है। धार्मिक अनुष्ठानों एवं संस्कारों से संबंधित क्षेत्रीय लोक कलाओं का महत्त्व सदियों से चलता चला आया है। विवाहोत्सवों पर निर्मित कलाओं में बारीकियों का विशेष महत्त्व होता है। ऐपण भावनाओं का दर्पण होत्ते हैं।
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