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पहाड़ में आज भी जिंदा है च्यूड़े से सिर पूजने की परंपरा

भाई दूज मनाने के लिए पहाड़ों में भिगोए धान से च्यूड़े बनाए जाते हैं। भैयादूज के दिन इन्हीं च्यूड़ों को सिर में रखकर बहन भाई के लंबे उम्र की कामना करती है।

By Skand ShuklaEdited By: Updated: Thu, 08 Nov 2018 06:44 PM (IST)
पहाड़ में आज भी जिंदा है च्यूड़े से सिर पूजने की परंपरा
चंद्रशेखर बड़सीला, बागेश्वर : दीपावली पर्व के बाद उत्तराखंड में भैयादूज का त्योहार धूमधाम से मनाया जाता है। इस पर्व को मनाने के लिए पहाड़ों में भिगोए धान से च्यूड़े बनाए जाते हैं। भैयादूज के दिन इन्हीं च्यूड़ों को सिर में रखकर बहन भाई के लंबे उम्र की कामना करती है और भाई अपनी बहन की रक्षा का संकल्प लेता है। पहाड़ में आधुनिकता की चकाचौंध में परम्पराएं भी धूमिल होती जा रही हैं। कृषि आधारित अर्थव्यवस्था से जुड़ी कई परंपराओं को लोग आज भी सहेजे हुए हैं। ऐसा ही अनूठा पर्व है भैयादूज। इस दिन पहाड़ों में च्यूड़े का विशेष महत्व है।

ऐसे तैयार होता है च्यूड़ा : च्यूड़ा बनाने के लिए चार-पांच दिन पूर्व धान भिगोए जाते हैं। गोवर्धन पूजा के दिन इनको ओखली में कूटा जाता है। भैयादूज के अवसर पर इन्हीं च्यूड़ों को बहन भाई के सिर में रखकर आशीर्वाद देती है। कुल पुरोहित और बुजुर्गों द्वारा भी बच्चों के सिर में च्यूड़े रखकर आशीष के आंखर दिए जाते हैं। इस पर्व का पौराणिक महत्व भी है। भैयादूज के दिन को यम द्वितीया भी कहा जाता है। इस दिन यमराज अपनी बहन यमुना से मिलने गए थे। उनकी बहिन ने उन्हें च्यूड़े लगाकर सुरक्षा का वचन मांगा था। तभी से यह पर्व धूमधाम से मनाया जाता है।

गांवों में भैयादूज अभी भी धूमधाम से मनाया जाता है। शहरों में यह परंपरा सीमित दायरे में ही मनाई जाती है, लेकिन ग्रामीण क्षेत्रों में परंपरागत तरीके से आज भी त्योहार मनाए जाते हैं। आज परम्पराओं को सहेजने की जरुरत है। इसके लिए सभी को आगे आना होगा। इस दिन विशेष पूजा अनुष्ठान भी किए जाते हैं, जिससे सुख-समृद्धि बढ़ती है। साथ ही संस्कृति भी जिंदा रहती है। - पं. कैलाश चंद्र जोशी

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