भारत छोड़ाे आंदाेलन के दौरान अल्मोड़ा में हुई थी तेज बगावत, शहीद हो गए थे आठ सेनानी
independence day 2022 स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान उत्तराखंड के कुमाऊं का अल्मोड़ा केंद्र बिंदु बना। जिले के खुमाड़ सालम देघाट में आंदोलन के दौरान आठ क्रांतिकारियों ने अपना बलिदान दिया। सैकड़ों लोग घायल हुए। वीर सपूतों के अदम्य साहस व बलिदान से देश को आजादी मिली।
By Skand ShuklaEdited By: Updated: Tue, 09 Aug 2022 10:29 AM (IST)
चंद्रशेखर द्विवेदी, अल्मोड़ा : independence day 2022 : दो दशकों तक महात्मा गांधी के अहिंसात्मक आंदोलन का जब असर दिखाई देने लगा तो फिर ब्रिटिश हुकूमत को देश से बाहर खदेड़ने के लिए आखिरी चोट मारी गई। राष्ट्रपिता ने आठ अगस्त 1942 में बाम्बे में हुई अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी की बैठक में भारत छोड़ाे का नारा दिया।
आंदोलन का असर पूरे देश में दिखा। उत्तराखंड के कुमाऊं के स्वतंत्रता आंदोलन का केंद्र बिंदु अल्मोड़ा ने इसकी अगुवाई की। खुमाड़, सालम, देघाट में आंदोलन के दौरान आठ क्रांतिकारियों ने अपना बलिदान दिया। सैकड़ों लोग घायल हुए। वीर सपूतों के अदम्य साहस व बलिदान से देश को आजादी मिली।
सालम क्रांति में दो सपूतों ने दिया बलिदान
भारत छोड़ो आंदोलन में अल्मोड़ा जिले के सालम पट्टी का महत्वपूर्ण योगदान रहा है। 25 अगस्त 1942 की अविस्मरणीय घटना इतिहास के पन्नों में ‘सालम की जनक्रांति’ के नाम से जानी जाती है। भारत छोड़ो और करो या मरो का प्रस्ताव पास होने के बाद नौ अगस्त की सुबह ही महात्मा गांधी व गोविंद बल्लभ पंत की गिरफ्तारी का असर कुमाऊं पर भी पड़ा। यहां भी कई नेताओं व कार्यकर्ताओं की धरपकड़ शुरू हुई।
सालम में भी 11 अगस्त को पटवारी दल सांगण गांव में रामसिंह आजाद के घर पंहुचा। जहां बड़ी संख्या में कौमी दल के स्वयंसेवक मौजूद थे। रामसिंह आजाद शौच के बहाने से फरार हो गए। 19 अगस्त को स्वयंसेवकों के सचल दल के 14 कार्यकर्ताओं को गिरफ्तार कर लिया।
25 अगस्त 1942 के दिन आस-पास के कई गांवों के लोग, तिरंगे, ढोल नगाड़ों के साथ धामदेव पर एकत्र होने लगे। थोड़ी देर बाद खबर मिली कि ब्रिटिश फौज पूरे दल बल के साथ आ रही है। हजारों की संख्या में लोग पूरे जोश से जुटने लगे।
जब ब्रिटिश फौज नजदीक पहुंची तो, उन्होंने जनता को डराने के लिए हवाई फायर की, तब जनता भड़क गई और अपने बचाव के लिए ब्रिटिश सेना पर पत्थरों की बौछार शुरू कर दी। धामद्यौ का मैदान पूरा युद्ध का मैदान बन गया। एकतरफ दलबल के साथ ब्रिटिश सेना, दूसरी ओर कुमाऊं के निहत्ते स्वतंत्रता सेनानी।एक गोली चैकुना गांव के नर सिंह धानक के पेट मे जा लगी और वो शहीद हो गए। उसके बाद एक गोली टीका सिंह कन्याल को लगी। वो भी गंभीर रूप से घायल हो गए, जो बाद में शहीद हो गए। शाम होते होते यह संघर्ष खत्म हो गया। इसमें जो कौमी दल के सदस्य पकड़े गए, उन पर जुल्म करते हुए उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया।
आपके शहर की हर बड़ी खबर, अब आपके फोन पर। डाउनलोड करें लोकल न्यूज़ का सबसे भरोसेमंद साथी- जागरण लोकल ऐप।कुमांऊ की बारदोली में चार सपूतों ने प्राण किए न्यौछावर
पांच सितम्बर 1942 को खुमाड़ में स्वतंत्रता सेनानियों की भीड़ पर तत्कालीन एसडीएम जानसन व 200 गोरी पुलिस ने अंधाधुंध गोली चलाकर चार लोगों को ढेर कर दिया और कई लोग घायल हो गये। इस शहादत के बाद महात्मा गांधी ने खुमाड़ को ''कुमाऊँ का बारदोली'' नाम देकर इसे अमर कर दिया। महात्मा गांधी के ‘भारत छोड़ो और ‘करो या मरो’ के नारे की सल्ट क्षेत्र में जबरदस्त प्रतिक्रिया हुई। सल्टवासियों की वीरता व एकजुटता से बौखलाकर 5 सितंबर 1942 को अंग्रेजी हुकूमत ने एसडीएम जॉनसन को विद्रोह को कुचलने के लिए सशस्त्र पुलिस बल के साथ सल्ट भेजा। उसी समय खुमाड़ में भारी जन समुदाय की मौजूदगी में आंदोलनकारियों की सभा भी चल रही थी।सल्ट पहुंचकर जॉनसन ने वहां हो रही सभा में गोली चलाने के आदेश दे दिए। जिसमें खीमानंद, उनके भाई गंगा राम और बहादुर सिंह मेहरा, चूड़ामणि चार लोग मौके पर ही शहीद हो गए। इसके अलावा गंगादत्त शास्त्री, मधुसूदन, गोपाल सिंह, बचे सिंह, नारायण सिंह आदि एक दर्जन लोग गंभीर रूप से घायल हुए। सल्ट क्रांति’ के नाम से प्रसिद्ध स्वतंत्रता आन्दोलन में उस समय जनसमुदाय ने भागीदारी की।देघाट में दो क्रांतिकारियों ने दिया बलिदान
19 अगस्त 1942 में ऐसा ही देघाट में हुआ। यहां भी ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ सभा व प्रदर्शन हुए। एक सभा के दौरान पुलिस ने आंदोलनकारियों पर गोली चलाई और इस दौरान हरिकृष्ण उप्रेती और हीरामणि बडौला शहीद हुए।सालम क्रांति में स्वतंत्रता सेनानी- नर सिंह धानक
- टीका सिंह कन्याल पुत्र जीत सिंह
- खुमाड़ सल्ट में हुए स्वतंत्रता सेनानी
- सीमानंद पुत्र टीकाराम
- गंगादत्त पुत्र टीकाराम
- चूड़ामणि पुत्र परमदेव
- बहादुर सिंह पुत्र पदम सिंह
- देघाट के शहीद स्वतंत्रता सेनानी
- हरिकृष्ण, हीरामणि