निर्दलियों ने उड़ाई राष्ट्रीय दलों के दावेदारों की नींद
नगर निकाय चुनाव नजदीक आने के साथ ही निर्दलियों ने भी चुनाव प्रचार में अपनी ताकत झोंकनी शुरू कर दी है। उनके जोश से राष्ट्रीय पार्टियों के दावेदारों में बेचैनी छायी है।
By Skand ShuklaEdited By: Updated: Wed, 07 Nov 2018 07:45 PM (IST)
नैनीताल (जेएनएन) : नगर निकाय चुनाव नजदीक आने के साथ ही निर्दलियों ने भी चुनाव प्रचार में अपनी ताकत झोंकनी शुरू कर दी है। दमदार तरीके से जनता के बीच अपनी बात रख रहे इन दावेदारों को अब राष्ट्रीय पार्टियां भी हल्के में नहीं ले रही हैं। उनके जोश से राष्ट्रीय पार्टियों के दावेदारों में बेचैनी छायी है।
पिथौरागढ़ में पिछले निकाय चुनाव राष्ट्रीय दलों के बीच ही सिमटे रहे। निर्दलियों प्रत्याशियों मैदान में उतरे जरू र, लेकिन निर्दलियों को वोटरों ने बहुत गंभीरता से नहीं लिया, लेकिन इस वर्ष मैदान में उतरे निर्दलीय प्रत्याशी अपने-अपने क्षेत्र में खासे दमखम वाले हैं। उद्योग व्यापार मंडल अध्यक्ष शमशेर महर पिछले दो वर्ष से निकाय चुनावों की तैयारियों में जुटे हुए हैं। उन्होंने मतदाताओं के लगभग हर वर्ग में अपनी पैठ बनाई है। दूसरे निर्दलीय प्रत्याशी चंद्रशेखर सामंत भी दिनों दिन बढ़त बना रहे हैं। युवाओं में अच्छी पैठ रखने वाले चंद्रशेखर के प्रचार का तरीका भी मतदाताओं को लुभा रहा है। अपने चुनाव प्रचार में वे गंभीर मसलों को उठा रहे हैं। बसपा के केशव कार्की को भी भी खासा समर्थन मिल रहा है। सामाजिक कार्यकर्ता मनोज जोशी ने पिछले एक वर्ष के दौरान आम जनता से जुड़ी समस्याओं को आंदोलनों के जरिए प्रमुखता से उठाया जिसका लाभ उन्हें मिलता दिख रहा है। कांग्रेस के बागी अजय सिंह महर ने भी अपनी अलग-अलग टीमें मैदान में उतार दी हैं। प्रौढ़ आयु वर्ग के लोग उनकी टीम में अधिक दिख रहे हैं। निर्दलीय प्रत्याशी सहदेव भी समर्थन जुटाने के लिए घर-घर पहुंच रहे हैं। निर्दलीय प्रत्याशियों ने निकाय चुनावों को रोमांचक स्थिति में ला दिया है। राष्ट्रीय दलों के प्रत्याशी निर्दलियों को मिल रहे समर्थन से अपनी जीत का गुणा-भाग कर रहे हैं। फिलहाल दोनों दल निर्दलीय प्रत्याशियों की बढ़त से दूसरे दल को ज्यादा नुकसान होने का दावा कर रहे हैं और इसके लिए तमाम तर्क भी प्रस्तुत कर रहे हैं।
चुनाव में याद आए दादा-नानी के रिश्ते : चुनाव में प्रचार के लिए तरह-तरह के रंग दिखाई दे रहे हैं। सामान्य दिनों में अपने-अपने कामों में व्यस्त रहने वाले प्रत्याशियों ने अपने रिश्तेदारों से संपर्क करना शुरू कर दिया है। यहां तक कि दादा-दादी व नाना-नानी के रिश्तेदारों को भी खोजने में प्रत्याशी जुटे हैं। चुनाव लडऩे से पहले भले ही रिश्तेदारों से मिलने का समय न रहा हो, या फिर मिलने की जरूरत महसूस न हो, लेकिन प्रत्याशी तय होने के बाद सभी तरह के रिश्ते याद आने लगे हैं। सबसे दिलचस्प यह है कि प्रत्याशी अपने दादा-दादी व नाना-नानी के समय के रिश्तों को भी खोज रहे हैं। उनके पास जाकर वोट देने की अपील करते दिख रहे हैं। यह स्थिति मेयर प्रत्याशियों में ही नहीं, बल्कि पार्षद प्रत्याशियों में भी है। प्रत्याशियों को एक-एक वोट के लिए संघर्ष करना पड़ रहा है। अपने रिश्तेदारों से संपर्क करने के लिए कोई सीधे दरवाजे पर दस्तक देने लगा है तो कोई फोन के जरिये सहयोग की अपील कर रहा है। यहां तक कि सोशल मीडिया के जरिये भी अपनों तक पहुंचने की पूरी कोशिश हो रही है। प्रत्याशियों के इस तरह के प्रचार से लोगों तरह-तरह की चर्चा होने लगी है।
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