इंदिरा ने दुष्कर्म पीडि़ता को न्याय दिलाने के लिए पिता व समाज को कर दिया दरकिनार
समाज में कुछ लोग ऐसे भी हैं जो समानता व न्याय के लिए अपना सर्वस्व लगाने में पीछे नहीं रहते। ऐसे ही लोग मिसाल भी बनते हैं। ऐसी ही शख्सियत हैं एडवोकेट इंदिरा दानू ने।
By Skand ShuklaEdited By: Updated: Tue, 22 Jan 2019 07:42 PM (IST)
बागेश्वर, जेएनएन : कानून सभी के समान है और कानून की नजर में सभी समान है। बावजूद इसके गरीब, असहाय और कमजोर वर्ग को न्याय हासिल करने के लिए न जाने कितनी दुश्वारियों से गुजरना पड़ता है। कई बार इसी न्याय की आस में वर्षों गुजर जाते हैं और कमजोर मानसिक एवं आर्थिक रूप से भी टूट जाता है। फिर भी समाज में कुछ लोग ऐसे भी हैं जो समानता व न्याय के लिए अपना सर्वस्व लगाने में पीछे नहीं रहते। ऐसे ही लोग मिसाल भी बनते हैं। ऐसी ही शख्सियत हैं एडवोकेट इंदिरा दानू ने। जिन्होंने अपने पिता, परिवार, समाज की परवाह किए बगैर और कड़ा विरोध झेलने के बाद भी नेपाली मूल की दुष्कर्म पीडि़ता नाबालिग को न्याय दिलाया। सिर्फ इसलिए नहीं कि वह एक अधिवक्ता हैं, बल्कि इसलिए भी कि उस पीडि़ता की आवाज को भरसक दबाने की कोशिश की गई।
साल 2018 में बागेश्वर जिले के कपकोट ब्लाक के खाती में पुल निर्माण का काम चल रहा था। पुल निर्माण के दौरान गांव के ही विजय बहादुर ने नेपाली मूल की 10 वर्षीया नाबालिग के साथ दुष्कर्म कर दिया। यह नाबालिग अपने परिवार के साथ खाती गांव में रह रही थी। घटना के बाद पूरे मामले को दबाने की कोशिश की गई। पुलिस ने तो नेपाली मूल के होने के कारण पीडि़ता की ओर से मुकदमा ही दर्ज नही किया। लोगों के जरिए यह मामला निर्भया प्रकोष्ठ की अधिवक्ता इंदिरा दानू को पता चला। फिर क्या था इंदिरा ने पीडि़ता को न्याय और अपराधी को सजा दिलाने की ठान ली।
इस मामले में बड़ी बात यह थी कि खाती गांव में पुल निर्माण का ठेका भी इंदिरा के पिता का ही था। पीडि़ता का परिवार और आरोपित दोनों इनके यहां मजदूरी करते थे। अब इंदिरा के लिए दोहरी चुनौती हो गई। गांव का मामला होने के कारण पिता और परिवार का रवैया बिल्कुल तटस्थ था। समर्थन तो दूर उन्हें घर व समाज दोनों से जबरदस्त विरोध का भी सामना करना पड़ा। लेकिन इंदिरा डटी और अड़ी रही। उन्होंने वारदात के एक महीने बाद पुलिस थाने में रिपोर्ट दर्ज कराई। पूरे मामले की जांच हुई। पुलिस पर आरोपित को गिरफ्तार करने का दवाब बना और वह गिरफ्तार हुआ। अब पीडि़ता को कोर्ट से न्याय दिलाना था तो इंदिरा ने मजबूत पैरवी की। जिसका परिणाम यह हुआ कि दुष्कर्मी को 12 साल की सजा हुई। पीडि़ता को आर्थिक सहायता के रूप में कोर्ट ने पांच लाख रुपए भी देने का आदेश दिया। हालांकि पीडि़ता नेपाल चली गई थी तो उस तक अभी आर्थिक सहायता की रकम नहीं पहुंच सकी है।
मैंने हार नहीं मानी और पीडि़ता को न्याय मिला
इंदिरा दानू, अधिवक्ता निर्भया प्रकोष्ठ, बागेश्वर ने कहा कि नेपाली मूल की होने के कारण व्यवस्था उसके खिलाफ थी। लेकिन कानून में सबको अधिकार है। मैंने भी हिम्मत नही हारी और पीडि़ता को न्याय मिला। न्याय की जीत हुई। समाज के दबे-कुचले व शोषित-पीडि़त वर्ग को न्याय दिलाना हमेशा मकसद रहेगा और न्याय का तकाजा भी यही है।
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