कॉर्बेट के घड़ियाल अंतरराष्ट्रीय प्रकृति संरक्षण संघ की रेडलिस्ट में, सीटीआर प्रशासन की बढ़ी चिंता
कॉर्बेट टाइगर रिजर्व के घड़ियाल का वजूद खतरे में है। अंतरराष्ट्रीय प्रकृति संरक्षण संघ (आईयूसीएन) की रेडलिस्ट तो कम से कम यही संकेत दे रही है।
By Skand ShuklaEdited By: Updated: Fri, 10 May 2019 08:47 PM (IST)
रामनगर, विनोद पपनै: कॉर्बेट टाइगर रिजर्व के घड़ियालों का वजूद खतरे में है। अंतरराष्ट्रीय प्रकृति संरक्षण संघ (आईयूसीएन) की रेडलिस्ट तो कम से कम यही संकेत दे रही है। आइयूसीएन के कॉर्बेट के घड़ियालों को संकटग्रस्त प्रजाति में शामिल किए जाने के बाद सीटीआर प्रशासन सकते में है। अब तक माना जा रहा है कि कॉर्बेट का इलाका घड़ियालों के लिए मुफीद है।
यह पहला मौका है जब कॉर्बेट पार्क में घड़ियाल आबादी को अंतरराष्ट्रीय रेड लिस्ट ग्लोबल असेसमेंट में शामिल किया गया है। कॉर्बेट पार्क में घड़ियाल आबादी को वैश्विक स्तर पर छह प्रजातियों में से एक माना जाता है। उत्तर भारतीय उप महाद्वीप में मीठे पानी के घड़ियाल का हाल ही में आईयूसीएन रेड लिस्ट ऑफ थ्रेटिड के अनुसार मूल्यांकन कि या गया। कार्बेट में घड़ियाल के बारे में 2008 तक कोई खास जानकारी नहीं थी। घड़ियाल विशेषज्ञ सुबीर मारियो चौफिन द्वारा कॉर्बेट में उनकी आबादी का अध्ययन गहनता से अध्ययन किया गया। उन्होंने 2012 से 2016 तक बारीकी से सर्वे किया। इस काम में स्टेलनबॉश विश्वविद्यालय के डॉ. एलिसन जे लेस्ली उनके परामर्शदाता रहे। जो दक्षिण अफ्रीका के वैज्ञानिक सलाहकार भी है।
उत्तराखंड निवासी चौफिन आईयूसीएन रेड लिस्ट प्रक्रिया के दौरान भारत, नेपाल, भूटान, पाकिस्तान,बांग्लादेश और म्यांमार की प्रजातियों के लिए वैश्विक मूल्यांकनकर्ताओं के रूप में इस प्रक्रिया का हिस्सा थे।
यह पहला मौका है जब कॉर्बेट पार्क में घड़ियाल आबादी को अंतरराष्ट्रीय रेड लिस्ट ग्लोबल असेसमेंट में शामिल किया गया है। कॉर्बेट पार्क में घड़ियाल आबादी को वैश्विक स्तर पर छह प्रजातियों में से एक माना जाता है। उत्तर भारतीय उप महाद्वीप में मीठे पानी के घड़ियाल का हाल ही में आईयूसीएन रेड लिस्ट ऑफ थ्रेटिड के अनुसार मूल्यांकन कि या गया। कार्बेट में घड़ियाल के बारे में 2008 तक कोई खास जानकारी नहीं थी। घड़ियाल विशेषज्ञ सुबीर मारियो चौफिन द्वारा कॉर्बेट में उनकी आबादी का अध्ययन गहनता से अध्ययन किया गया। उन्होंने 2012 से 2016 तक बारीकी से सर्वे किया। इस काम में स्टेलनबॉश विश्वविद्यालय के डॉ. एलिसन जे लेस्ली उनके परामर्शदाता रहे। जो दक्षिण अफ्रीका के वैज्ञानिक सलाहकार भी है।
उत्तराखंड निवासी चौफिन आईयूसीएन रेड लिस्ट प्रक्रिया के दौरान भारत, नेपाल, भूटान, पाकिस्तान,बांग्लादेश और म्यांमार की प्रजातियों के लिए वैश्विक मूल्यांकनकर्ताओं के रूप में इस प्रक्रिया का हिस्सा थे।
150 से ज्यादा घड़ियाल पार्क में
सुबीर मारियो चौफीन के मुताबिक 2015-16 में वयस्क और अवयस्क मिलाकर 90 घड़ियाल यहां थे। पार्क वार्डन शिवराज चंद्र का कहना है कि इस समय वयस्क और अवस्यक घड़ियालों की तादाद करीब 150 है। यहां घडिय़ाल पूरी तरह से सुरक्षित हैं। यहां उनके वास स्थल को इसलिए खतरा नहीं है क्योंकि यहां न तो खनन है और न ही यहां की नदी में मानव का हस्तक्षेप। आईयूसीएन का अंतिम सर्वेक्षण 2017 हुआ
वन्यजीव विशेषज्ञ एजी अंसारी की मानें तो आईयूसीएन का अंतिम सर्वेक्षण 2017 हुआ जिसकी रिपोर्ट इस साल 2019 में प्रकाशित हुई है। गंभीर खतरे में शामिल कुल घड़ियालों की संख्या विश्व में लगभग 600 है। भारत में यह छह मुख्य स्थान राजस्थान और उत्तर प्रदेश के चम्बल, कतर्नियाघाट व चितवन, गंडक नदी बिहार, कॉर्बेट व बबाई में पाई जाती है। कॉर्बेट में अंतिम सर्वे सुबीर चौफि न द्वारा किया गया। इस विलुप्तप्राय जीव के संरक्षण की अति आवश्यकता है।
सुबीर मारियो चौफीन के मुताबिक 2015-16 में वयस्क और अवयस्क मिलाकर 90 घड़ियाल यहां थे। पार्क वार्डन शिवराज चंद्र का कहना है कि इस समय वयस्क और अवस्यक घड़ियालों की तादाद करीब 150 है। यहां घडिय़ाल पूरी तरह से सुरक्षित हैं। यहां उनके वास स्थल को इसलिए खतरा नहीं है क्योंकि यहां न तो खनन है और न ही यहां की नदी में मानव का हस्तक्षेप। आईयूसीएन का अंतिम सर्वेक्षण 2017 हुआ
वन्यजीव विशेषज्ञ एजी अंसारी की मानें तो आईयूसीएन का अंतिम सर्वेक्षण 2017 हुआ जिसकी रिपोर्ट इस साल 2019 में प्रकाशित हुई है। गंभीर खतरे में शामिल कुल घड़ियालों की संख्या विश्व में लगभग 600 है। भारत में यह छह मुख्य स्थान राजस्थान और उत्तर प्रदेश के चम्बल, कतर्नियाघाट व चितवन, गंडक नदी बिहार, कॉर्बेट व बबाई में पाई जाती है। कॉर्बेट में अंतिम सर्वे सुबीर चौफि न द्वारा किया गया। इस विलुप्तप्राय जीव के संरक्षण की अति आवश्यकता है।
क्या है आयूसीएन रेड लिस्ट
संकटग्रस्त प्रजातियों की आईयूसीएन लाल डेटा सूची (रेड लिस्ट) (1994 में शुरुआत) को पौधों और पशु प्रजातियों के संरक्षण की स्थिति का मूल्यांकन करने के व्यापक उद्देश्य के वैश्विक दृष्टिकोण के रूप में मान्यता दी गयी है। अपनी छोटी सी शुरुआत से, आईयूसीएन की रेड डेटा लिस्ट के आकार और जटिलता में वृद्धि हुई है और यह वर्तमान में सरकारों, गैर सरकारी संगठनों और वैज्ञानिक संस्थाओं की संरक्षण गतिविधियों के मार्गदर्शन में तेजी से एक प्रमुख भूमिका निभा रही है। आईयूसीएन ने प्रजातियों को विश्व भर से एकत्र किये गये आंकड़ों के आधार पर विलुप्त, जंगलों में विलुप्त, गंभीर खतरे, लुप्तप्राय, कमजोर आदि श्रेणियों में वर्गीकृत किया गया है। यह भी पढ़ें : बाजार में आ गया पहाड़ का राजा फल काफल, जानें क्या है इसकी खासियत और इससे जुड़ी कहानी
संकटग्रस्त प्रजातियों की आईयूसीएन लाल डेटा सूची (रेड लिस्ट) (1994 में शुरुआत) को पौधों और पशु प्रजातियों के संरक्षण की स्थिति का मूल्यांकन करने के व्यापक उद्देश्य के वैश्विक दृष्टिकोण के रूप में मान्यता दी गयी है। अपनी छोटी सी शुरुआत से, आईयूसीएन की रेड डेटा लिस्ट के आकार और जटिलता में वृद्धि हुई है और यह वर्तमान में सरकारों, गैर सरकारी संगठनों और वैज्ञानिक संस्थाओं की संरक्षण गतिविधियों के मार्गदर्शन में तेजी से एक प्रमुख भूमिका निभा रही है। आईयूसीएन ने प्रजातियों को विश्व भर से एकत्र किये गये आंकड़ों के आधार पर विलुप्त, जंगलों में विलुप्त, गंभीर खतरे, लुप्तप्राय, कमजोर आदि श्रेणियों में वर्गीकृत किया गया है। यह भी पढ़ें : बाजार में आ गया पहाड़ का राजा फल काफल, जानें क्या है इसकी खासियत और इससे जुड़ी कहानी
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