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Uttarakhand News: लाखों का पैकेज छोड़ कमल-नमिता मशरूम से बना रहे चाय, चटनी और अचार, दूसरों को भी दे रहे रोजगार

Mushroom cultivation by Kamal-Namitaअल्मोड़ा के कमल व नमिता युवाओं के लिए प्रेरणास्रोत बने हुए हैं। दोनों ने मशरूम उत्पादन में तकनीकि के सहारे से विभिन्न उत्पादन कर लाखों की कमाई के साथ ही किसान व महिलाओं को रोजगार मुहैया करा रहे हैं। इन्हें कई राज्यों से आर्डर मिल रहे हैं।

By Prashant MishraEdited By: Updated: Tue, 23 Aug 2022 02:54 PM (IST)
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mushroom_cultivation_by_kamal-namita: मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने स्टार्टअप उत्तराखंड के सम्मान से भी नवाजा है
जागरण संवाददाता, अल्मोड़ा: Mushroom cultivation by Kamal-Namita आइटी सेक्टर में बेहतर पैकेज की नौकरी छोड़ अल्मोड़ा के कमल पांडे ने अपनी मित्र नमिता टम्टा के साथ मशरूम उत्पादन को आजीविका का जरिया बनाया है।

दोनों ने रेशीय औषधि मशरूम का उत्पादन कर न सिर्फ खुद आय अर्जित की बल्कि काश्तकार और महिलाओं को भी रोजगार दे रहे हैं। यही नहीं एग्रीकल्चर के छात्रों को इंटर्नशिप भी करा रहे हैं। आधुनिक तकनीक से मशरूम को आजीविका बनाने वाले कमल और नमिता युवाओं के लिए प्रेरणा बन गए हैं।

कोविड में आए घर

मूलरूप से अल्मोड़ा जिले के धौलादेवी ब्लाक के छोटे से गांव ढौरा निवासी कमल पांडे पिछले 10 वर्षों से दिल्ली में आइटी सेक्टर में कार्यरत थे। मार्च 2020 में कोरोना की पहली लहर के बीच उन्हें घर आना पड़ा। अल्मोड़ा आकर वर्क फ्राम होम चलता रहा। 

खाली समय में लिया प्रशिक्षण

सितंबर 2020 में लाकडाउन में छूट के बीच उन्होंने ज्योलिकोट में तीन दिवसीय मशरूम उत्पादन का प्रशिक्षण प्राप्त किया। अल्मोड़ा के पपरसली में लीज में रहकर मशरूम उत्पादन का ट्रायल किया। इंजीनियरिंग के छात्र रहने के साथ उन्होंने विभिन्न अन्य प्रयोग भी किए।

देहरादून में मशरूम उत्पादन के लिए 15 दिवसीय प्रशिक्षण लिया। इसके बाद उन्होंने अपनी मित्र फाइन आर्ट्स की छात्रा थानाबाजार निवासी नमिता टम्टा (Mushroom cultivation by Kamal-Mamita) के साथ आगे की कार्ययोजना बनाई।

यह है लागत व उत्पादन

औषधि के रूप में कारगर रेशीय मशरूम, मशरूम की चाय समेत बटन मशरूम आदि के लिए कार्य किया। बाबा एग्रोटेक से स्टार्टअप कर 2020 में ही पायलट प्रोजेक्ट के तहत पहली बार करीब 80 हजार रुपये से मशरूम उत्पादन शुरू कर तीन टन कंपोस्ट तैयार किया। पहली ही बार में दो से तीन माह के भीतर कुल एक लाख रुपये से अधिक की आय अर्जित की। 

असफलता के बाद ऊंची उड़ान

डेढ़ साल बाद अब तीन टन बढ़कर 10 टन कंपोस्ट लगाई जा रही है। कमल ने पहले तो मशरूम बिक नहीं पाई। पर फिर बाबा इंडिया आर्गेनिक बायो के नाम से यूनिट बनाई।

अब काश्तकारों की मशरूम का अचार-चटनी, मेडिशनल मशरूम की चाय आदि तैयार किए जा रहे हैं। उत्तराखंड के साथ ही उनकी मशरूम महाराष्ट्र, कर्नाटक, गोवा आदि समेत कई राज्यों में पहुंच रहा है।

रेशीय मशरूम के दाम आसमान पर

सामान्य और अन्य मशरूम के मुकाबले औषधी रेशीय मशरूम महंगे दामों में जाती है। रेशीय मशरूम को 10 हजार से 50 हजार रुपये प्रति किलो के दाम से बेचा जा रहा है।

संस्था से कुल 300 काश्तकार जुड़े हुए हैं। इसके अलावा 30 से अधिक महिलाओं को भी स्वरोजगार मिला है।

कृषि के छात्रों को दे रहे इंटर्नशिप

कृषि क्षेत्र में कोई पढ़ाई न होने के बावजूद कमल व नमिता के बेहतर काम को देखर लोग प्रशिक्षण के लिए आ रहे हैं। दोनों पंतनगर विश्वविद्यालय के कृषि के छात्र-छात्राओं को तीन माह का इंटर्नशिप भी करा रहे हैं।

दोनों को बीते दिनों मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने स्टार्टअप उत्तराखंड के सम्मान से भी नवाजा है।

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