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12 साल में केवल एक बार खिलता है ये फूल, नैनीताल के जंगलों में होती है इसकी खोज; औषधि के लिए है कारगर

Nainital कुमाऊं विवि की डा सोनी दफौटी के अनुसार जोंटिला या ए गॉसिपिना 12 साल में एक बार खिलता है। यह कश्मीर हिमालय से भूटान तक पाया जाता है। इस पौधे को 1973 में देहरादून के मसूरी में डा एस विश्वास जबकि पिथौरागढ़ जिले के उच्च हिमालयी क्षेत्र चौंदास घाटी में वर्ष 2000 में डा एसएस सामंत ने रिपोर्ट किया है।

By Jagran NewsEdited By: Swati SinghUpdated: Thu, 14 Sep 2023 11:13 AM (IST)
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12 साल में केवल एक बार खिलता है ये फूल, नैनीताल की है खासियत
नैनीताल, किशोर जोशी। शहर के कालाढूंगी रोड में चारखेत, हनुमानगढ़ी के समीप कैमल्स बेक पहाड़ी के नीचे के अलावा हल्द्वानी रोड में बल्दियाखान से पहले 12 साल के बाद फिर कंडाली या जोंटिला, बॉटनिकल नाम आर्टिका डायोसिया, का पुष्प खिल उठा है। इस दुर्लभ पुष्प की मौजूदगी उत्तराखंड में नैनीताल सहित उच्च हिमालयी क्षेत्र में चौंदास घाटी, कश्मीर से लेकर नेपाल-भूटान तक देखी गई है।

कुमाऊं विवि की डा सोनी दफौटी के अनुसार जोंटिला या ए गॉसिपिना 12 साल में एक बार खिलता है। यह कश्मीर हिमालय से भूटान तक पाया जाता है। इस पौधे को 1973 में देहरादून के मसूरी में डा एस विश्वास जबकि पिथौरागढ़ जिले के उच्च हिमालयी क्षेत्र चौंदास घाटी में वर्ष 2000 में डा एसएस सामंत ने रिपोर्ट किया है। इसकी जड़ अतिसार रोग के उपचार में प्रयुक्त होती है और डंडी स्थानीय समुदाय रस्सी व जाल बनाने में उपयोग में लाता रहा है। यह समुद्र तल से पांच हजार से साढे सात हजार फिट ऊंचाई वाले स्थानों में उगता है।

सबसे पहले 1975 में दिखा था ये फूल

पर्यावरणविद पद्मश्री अनूप साह के अनुसार यह जोंटिला का फूल उन्होंने सबसे पहले 1975 में पहला चक्र देखा था। फिर 1987 में, 1999 में, 2011 में भी रिपोर्ट किया है। इसी साल 12 सितंबर को पांचवां चक्र देखा। साह के अनुसार उनकी दादी ने उन्हें बताया था कि यह पौधा 12 साल में खिलता है। इस पौधे का शहद अत्यधिक पोष्टक होता था। साह के अनुसार दोगांव के नीचे जोंटिला चार साल बाद खिलेगा जबकि इस साल यह हनुमानगढ़ी के समीप भी खिला है। प्रकृति प्रेमी विनोद पाण्डे के अनुसार यह अगस्त में फूलना आरंभ करता है और अक्टूबर प्रथम सप्ताह तक फूल देता है, फिर बीज बन जाते हैं।

चौंदास घाटी में होता है कंडाली उत्सव

पिथौरागढ़ जिले के उच्च हिमालयी क्षेत्र में चौंदास घाटी में जनजाती समाज की ओर से कंडाली उत्सव का आयोजन किया जाता है। इस साल यह आयोजन 25-26 व 27 अक्टूबर को तय है। पदमश्री साह के अनुसार वह पांचवीं बार इस उत्सव में भाग लेने जा रहे हैं। साह के अनुसार चौंदांस घाटी के अलग-अलग गांव में यह उत्सव होता है। यह उत्सव रं समाज की विरासत से जुड़ा है। बूंदी व पांगू में यह कुंभ की तरह 12 साद बाद आयोजन होता है। पर्व में कंडाली को नष्ट किया जाता है।

कंडाली का पौधा उपचार में लाभदायक

लोक कथा के अनुसार महिला का इकलौता बेटा बीमार पड़ गया था तो उसका कंडाली के पौधे से उपचार किया गया तो बच्चे की मौत हो गई। तब महिला ने वनस्पति का श्राप दिया कि 12वें साल में तेरी टहनियां भी 12 हो जाएंगी और तूझे भी नष्ट कर दिया जाएगा। तब से 12 साल में कंडाली उत्सव का आयोजन कर उसके पौधों को नष्ट किया जाता है। साह के अनुसार इस पौधे के बारे में नई पीढ़ी को जागरूक करने के लिए शोध करने की आवश्यकता है। इन्सेट जोंटिला, हिमालय के मध्य ऊंचाई वाले क्षेत्रों की दक्षिणी ढालों में पाया जाने वाला एक विशिष्ट बहुवर्षीय शाकीय पौधा है, जो 12 साल में अपना जीवन चक्र पूरा करता है।

नैनीताल में होता है ये खास फूल

जीवन चक्र पूरा करने से पूर्व इसके झुरमुटों में भरपूर फूल आते हैं, जो बीज में परिवर्तित हो जाते हैं। नैनीताल के आस पास इस प्रजाति में इस साल भी विस्तृत फूल आने से यह स्पष्ट होता है कि यहां दो या उस से अधिक आनुवंशिकी वाले पॉपुलेशन हैं। इसके फूलने फलने के चक्र को समझना, इस चक्र का मधुमक्खियों व अन्य परागण कारक कीटों के साथ अंतर संबंध समझना प्रकृति प्रेमियों व पारिस्थितिक विज्ञानियों के लिये महत्वपूर्ण होगा। - डॉ गोपाल सिंह रावत पूर्व निदेशक भारतीय वन्य जीव संस्थान।

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