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कत्यूरी राजकुमार मालूशाही और राजुला की अमर प्रेम गाथा दूरदर्शन से पहुंच रही लोगों तक

कत्यूर वंश के राजकुमार मालूशाही और शौका वंश की कन्या राजुला की अमर प्रेम गाथा राजुला-मालूशाही दूरदर्शन के जरिए लोगों तक पहुंच रही है।

By Skand ShuklaEdited By: Updated: Mon, 20 Apr 2020 10:24 AM (IST)
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कत्यूरी राजकुमार मालूशाही और राजुला की अमर प्रेम गाथा दूरदर्शन से पहुंच रही लोगों तक

हल्द्वानी, जेएनएन : कत्यूर वंश के राजकुमार मालूशाही और शौका वंश की कन्या राजुला की अमर प्रेम गाथा राजुला-मालूशाही दूरदर्शन के जरिए लोगों तक पहुंच रही है। 15वीं शताब्दी की कहानी को संगीत नाटिका के रूप में देहरादून दूरदर्शन पर प्रसारित किया जा रहा है। दो एपिसोड में दिखाई जाने वाली नाटिका के दो भाग प्रसारित हो चुके हैं।

उत्तराखंड के इस सबसे मार्मिक कथानक से जुड़े नृत्य नाटिका का लेखक और निर्माता वरिष्ठ साहित्यकार जुगल किशोर पेटशाली हैं। पेटशाली बताते हैं कि दूरदर्शन पर राजुला-मालूशाही को दिखाने के लिए 1992 में हिंदी व कुमाऊंनी में लोक गीतों के माध्यम से ऑडियो रिकॉर्डिंग का कार्य किया गया। फिर एक साल बाद वीडियो रिकॉर्डिंग की गई थी। दूरदर्शन लखनऊ से पहली बार प्रसारित हुई प्रेम गाथा को लोगों ने खूब पंसद किया। कुमाऊं अंचल ही नहीं बल्कि समूचे भारत के दर्शकों से इसे सराहा।

35 लोक धुनों का समावेश

पेटशाली कहते हैं राजुला-मालूशाही संगीत नाटिका की सबसे खास बात यह है कि ङ्क्षहदी भाषा में होने के बावजूद इसकी धुन को कुमाऊंनी भाषा के विभिन्न लोक गीतों की धुनों पर तैयार किया गया है। संगीत नाटिका में कुमाऊंनी भाषा की करीब 35 लोक धुनों को समाहित किया गया है। इसमें छपेली, चांचरी, झोड़ा, बैर, भगनौल, न्योली, जागर आदि प्रमुख हैं।

अल्मोड़ा, पिथौरागढ़ में हुआ है फिल्मांकन

जुगल किशोर पेटशाली बताते हैं कि छह एपिसोड के संगीत नाटक को पिथौरागढ़ के मुनस्यारी, अल्मोड़ा के कसार देवी, चितई में फिल्माया गया है। नाटक में उत्तराखंडी कला व संस्कृति की गहरी झलक मिलती है।

नई पीढ़ी तक पहुंचाना मकसद

मूल रूप से अल्मोड़ा के पेटशाला के रहने वाले जुगल किशोर पेटशाली बताते हैं कि बचपन की सबसे उत्कट इच्छाओं में राजुला-मालूशाही शामिल रहा है। बड़ा होने के बाद सोचा कि राजुला-मालूशाही की गाथा का जीवित रखना और नई पीढ़ी तक पहुंचाना जरूरी है। इसमें कई लोगों ने योगदान दिया। नाटिका का संगीत हेम ठाकुर ने तैयार किया है। संयोजन लोक गायिका लता कुंजवाल ने किया है। कथानक के नायक राजेंद्र प्रसाद तिवारी ने नृत्य संयोजन का भी दायित्व निभाया है।

गोपाल बाबू समेत कई गायकों की आवाज

संगीत नाटक में कालजयी लोक गायक स्व. गोपाल बाबू गोस्वामी के अलावा दीवान कनवाल, मोहन सिंह डोलिया, मंजू बिष्ट, मंजुला पंत, पुलमा दास जोशी ने आवाज दी है। बैर, भगनौल गायक चंदन बोरा रीठागाड़ी ने हुड़के पर संगत दी है। राजू तिवारी, श्रद्धा गुरुरानी, कुसुम भंडारी, आशा सनवाल, दीपा जोशी, चंचल तिवारी, दीपा जोशी, आलोक वर्मा, दीप पांडे, ममता साह, पान सिंह डोलमा, मोहन जोशी, तनुजा कांडपाल महेंद्र रावत, चंदू पेटशाली, राम लाल, माधुरी कैड़ा, गोकुल बिष्ट, नंदन रौतेला, भावना रौतेला, राजेश पांडे आदि ने अभिनय किया है।

जानिए क्या थी राजुला-मालूशाही की कहानी

उत्तराखंड की लोक गाथाओं में गाई जाने वाली 15वीं सदी की अनोखी प्रेम कथा है राजुला-मालूशाही की। कहते हैं कुमाऊं के पहले राजवंश कत्यूर से ताल्लुक रखने वाले मालूशाही जौहार के शौका वंश की राजुला के प्रेम में इस कदर दीवाने हुए कि राज-पाट छोड़ संन्यासी हो गए। उनके प्रति राजुला की चाहत भी इस कदर थी कि उसने उनसे मिलने के लिए नदी, नाले, पर्वत किसी बाधा की परवाह नहीं की। कत्यूरों की राजधानी बैराठ (वर्तमान चौखुटिया) में थी।

बचपन में हो गई थी शादी

जनश्रुति के अनुसार बैराठ में राजा दोला शाह राज करते थे। उनकी संतान नहीं थी। उन्हें सलाह दी गई कि वह बागनाथ (वर्तमान बागेश्वर) में भगवान शिव की आराधना करें तो संतान प्राप्ति होगी। वहां दोला शाह को संतानविहीन दंपति सुनपति शौक-गांगुली मिलते हैं। दोनों तय करते हैं कि एक के यहां लड़का और दूसरे के यहां लड़की हो तो वह दोनों की शादी कर देंगे। कालांतर में शाह के यहां पुत्र और सुनपति के यहां पुत्री जन्मी।

राजा मौत, राजुला को कोसते हैं दरबारी

ज्योतिषी राजा दोला शाह को पुत्र की अल्प मृत्यु का योग बताते हुए उसका विवाह किसी नौरंगी कन्या से करने की सलाह देते हैं। लेकिन दोला शाह को वचन की याद आती है। वह सुनपति के यहां जाकर राजुला-मालूशाही का प्रतीकात्मक विवाह करा देते हैं। इस बीच राजा की मृत्यु हो जाती है। दरबारी इसके लिए राजुला को कोसते हैं। अफवाह फैलाते हैं कि अगर यह बालिका राज्य में आई तो अनर्थ होगा। उधर, राजुला मालूशाही के ख्वाब देखते बड़ी होती है। इस बीच हूण देश के राजा विक्खीपाल राजुला की सुंदरता की चर्चा सुन सुनपति के पास विवाह प्रस्ताव भेजता है। राजुला को प्रस्ताव मंजूर नहीं होता।

कहानी का दुखांत, आंखों में ला देता है आंसू

वह प्रतीकात्मक विवाह की अंगूठी लेकर नदी, नाले, पर्वत पार करती मुन्स्यारी, बागेश्वर होते हुए बैराठ पहुंचती है। लेकिन मालूशाही की मां को दरबारियों की बात याद आ जाती है। वह निद्रा जड़ी सुंघाकर मालूशाही को बेहोश कर देती है। राजुला के लाख जगाने पर भी मालूशाही नहीं जागता। राजुला रोते हुए वापस हो जाती है। यहां माता-पिता दबाव में हूण राजा से उसका विवाह करा देते हैं। उधर, मालूशाही जड़ी के प्रभाव से मुक्त होता है। उसे राजुला का स्वप्न आता है, जो उससे हूण राजा से बचाने की गुहार लगाती है। मालूशाही को बचपन के विवाह की बात याद आती है। वह राजुला के पास जाने का निश्चय करता है तो मां विरोध करती है। इस पर मालूशाही राज-पाट, केश त्याग संन्यासी हो जाता है। दर-दर भटकते उसकी मुलाकात बाबा गोरखनाथ से होती है। उनकी मदद से वह हूण राजा के यहां जा पहुंचता है। राजुला मालूशाही को देख अति प्रसन्न हो जाती है, लेकिन मालूशाही की हकीकत विक्खीपाल पर खुल जाती है। वह उसे कैद कर लेता है। प्रेम कथा का दुखद अंत होता है।

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