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इन कानूनी अधिकारों के बारे में जरूर जानें, तभी लड़ सकेंगे अपने हक के लिए

महिलाओं को अपने अधिकारों के प्रति जागरूक होना होगा। यदि किसी परिवार में महिला के अधिकारों का हनन हो रहा है तो वह खुलकर आवाज उठाने के साथ ही कानूनी मदद लें।

By Skand ShuklaEdited By: Updated: Thu, 24 Jan 2019 07:28 PM (IST)
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इन कानूनी अधिकारों के बारे में जरूर जानें, तभी लड़ सकेंगे अपने हक के लिए
हल्द्वानी, जेएनएन : महिलाओं को अपने अधिकारों के प्रति जागरूक होना होगा। यदि किसी परिवार में महिला के अधिकारों का हनन हो रहा है तो वह खुलकर आवाज उठाने के साथ ही कानूनी मदद लें। घरेलू हिंसा संरक्षण अधिनियम के तहत न्यायालय से महिलाओं को उनके अधिकार दिलाने के लिए कानून बनाए गए हैं। दैनिक जागरण के प्रश्न पहर में हल्द्वानी बार एसोसिएशन अध्यक्ष अधिवक्ता गोविंद बिष्ट ने बुधवार को फोन पर महिलाओं को इसी तरह जागरूक किया।

अधिवक्ता बिष्ट ने कहा कि विवाह के बाद दहेज उत्पीडऩ समेत महिला के साथ मानसिक, शारीरिक व आर्थिक रूप से उत्पीडऩ करना या अधिकारों का हनन रोकने के लिए घरेलू हिंसा संरक्षण एक्ट बनाया गया है। ऐसी पीडि़त महिलाएं केंद्र सरकार द्वारा बनाई गई संस्थाओं के माध्यम से मजिस्ट्रेट के समक्ष मुकदमा दाखिल कर सकती हैं। मुकदमा जब तक चलेगा, तब तक मुकदमे में आने वाले खर्च व अंतरिम भरण पोषण या जिन अधिकारों का हनन किया गया है, उन अधिकारों की सुरक्षा के लिए न्यायालय निर्देशित करती है। यदि महिला के साथ उसका पति या परिवार का सदस्य किसी तरह का शारीरिक शोषण या दहेज के लिए उसे प्रताडि़त कर हिंसा करता है तो उसके विरुद्ध 498ए आइपीसी व 3/4 दहेज अधिनियम के तहत मुकदमा पंजीकृत कराया जा सकता है।

महिला को भरण-पोषण दिलाता है परिवार न्यायालय

यदि किसी महिला का पति कानूनी रूप से तलाक दिए बिना उसका त्याग कर देता है। अपनी जिम्मेदारियों का निर्वहन नहीं करता है। महिला की जीविका से संबंधित जवाबदेही से मुंह मोड़ लेता है तो वह महिला परिवार न्यायालय में अपने पति के खिलाफ 125 सीआरपीसी के तहत भरण-पोषण का वाद दायर कर अपने भरण-पोषण के लिए कोर्ट द्वारा तय भत्ते से धनराशि प्राप्त कर सकती है। साथ ही यदि महिला की संतान नाबालिग है तो उसके लिए भी संयुक्त रूप से भरण-पोषण प्राप्त कर सकती है।

12 साल से कम उम्र के बच्चों से न कराएं खतरनाक काम

अधिवक्ता गोविंद बिष्ट ने बताया कि बाल श्रम कानून में 12 साल से कम उम्र के बच्चों को खतरा उत्पन्न करने वाले रोजगार से जोडऩा अपराध है। इसकी शिकायत होने पर संबंधित फर्म या फैक्ट्री आदि के स्वामी पर जुर्माने के साथ ही अधिकतम उस कारोबार को बंद भी किया जा सकता है।

बच्चों को यौन उत्पीडऩ के बारे में करें जागरूक

अधिवक्ता बिष्ट के मुताबिक बालकों के साथ होने वाले अपराधों में अक्सर उनके सगे संबंधी, रिश्तेदार, परिचित द्वारा ही अपराध घटित होना पाया जाता है। लोगों को अपने बच्चों को यौन उत्पीडऩ के बारे में जागरूक करने के साथ ही निरंतर संवाद बनाए रखना चाहिए। बच्चों को गुप्त अंगों की जानकारी देने के साथ किन अंगों को छूना गलत है, इसके बारे में जागरूक किया जाना चाहिए। कई बार हम बालकों के सामाजिक रूप से व्यस्क होने तक इंतजार कर शरीर के अंगों के बारे में बात करना गलत मानते हैं। यही संवाद की कमी से बाल अपराध घटित होने के पीछे अहम कारण बनती है। लैंगिक अपराधों से बालकों का संरक्षण अधिनियम(पाक्सो) की धारा तीन से लेकर 17 तक लैंगिक हमले या शारीरिक हृास आदि के संदर्भ में अपराध व दंड की व्यवस्था की गई है। इसके अलावा इन अपराधों की श्रेणी के संदर्भ में आइपीसी के तहत पूर्वोत्तर व्यवस्था भी लागू है।

अगर पुलिस नहीं लिख रही रिपोर्ट तो ये करें

अधिवक्ता बिष्ट ने बताया कि किसी अपराध के घटित होने पर सर्वप्रथम अपनी शिकायत नजदीकी थाने या चौकी में करें। यदि संबंधित थाना/चौकी में रिपोर्ट नहीं लिखी जाती है तो शिकायत जिले के वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक या पुलिस अधीक्षक से करें। आला अधिकारी संबंधित थाना/चौकी से मामले की जांच की आख्या मांगकर रिपोर्ट दर्ज करने के लिए आदेशित कर सकते हैं। इसके बावजूद अगर आपकी रिपोर्ट दर्ज नहीं होती है या आप दर्ज रिपोर्ट से संतुष्ट नहीं हैं, तो आप धारा 156 (3) के तहत न्यायालय में प्रार्थना पत्र दे सकते हैं। न्यायालय संबंधित थाने से मामले में आख्या मांगकर रिपोर्ट दर्ज करने के लिए आदेशित कर सकता है।

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