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Mount Kailas: दुनिया की एकमात्र चोटी, जिसे फतह नहीं किया जा सका, जानिए कैलास के अजेय होने के कारण

Mount Kailasदुनिया में अभी भी कई जगहें विज्ञान से परे हैं। उन्हीं में से एक है कैलास पर्वत। कोई भी पर्वतारोही इस पर चढ़ नहीं सका है। विज्ञानी भी इसकी गुत्थी सुलझा नहीं सके हैं। बहुत से प्रयास हुए पर कई धर्मों के लिए आस्था का केंद्र अजेय ही है।

By Prashant MishraEdited By: Updated: Fri, 24 Jun 2022 06:45 AM (IST)
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एवरेस्ट से लगभग 2 हजार मीटर कम ऊंचे 6638 मीटर के कैलास पर्वत पर आज तक कोई नहीं चढ़ सका।

जागरण संवाददाता, हल्द्वानी : कैलाश पर्वत क्षेत्र को हिंदू मानसखंड कहते हैं। देवाधिदेव महादेव की स्थली होने के नाते हिंदुओं की आस्था का केंद्र तो है ही साथ ही जैन तीर्थांकर ऋषभनाथ को यहीं पर तत्व ज्ञान प्राप्त हुआ, महात्मा बुद्ध को यहीं वास करना बताया गया, तिब्बत के डाओ अनुयायी इसे अध्यात्म का केंद्र मानते हैं। इस तरह से यह कई धर्माें की धुरी है। शायद इसीलिए यह पर्वतारोहियों के लिए अजेय है। 

8848 मीटर की ऊंचाई वाली दुनिया की सबसे ऊंची चोटी माउंट एवरेस्ट को अब तक करीब 7 हजार से अधिक पर्वतारोही फतह कर चुके हैं। पर एवरेस्ट से लगभग 2 हजार मीटर कम ऊंचे 6638 मीटर के कैलास पर्वत पर आज तक कोई नहीं चढ़ सका।

पर्वतारोही, विज्ञानी व भूगोलवेत्ताओं के लिए यह अभी भी रहस्य बना हुआ है। अध्यात्मिक लोगों का कहना है कि ये कोई संयोग तो नहीं कि एक ही पर्वत को चार धर्मों के केंद्र में रखा गया है। यहां कुछ तो है जो विज्ञान से परे है।

क्या कहते हैं विज्ञानी

राष्ट्रीय हिमालयी पर्यावरण शोध संस्थान कोसी कटारमल (अल्मोड़ा) के शोधकर्ता रह चुके पर्वतारोही डॉ. महेंद्र सिंह मिराल कैलास पर्वत पर अपने अध्ययन का हवाला दे कहते हैं कि कैलास तकनीकी व भौगोलिक लिहाज से बहुत जटिल पर्वत श्रंखला है। जबर्दस्त चुंबकीय क्षेत्र को खुद में समेटे इस अलौकिक पर्वत की सतह से कुछ ही ऊंचाई तक चढ़ाने पर कुशलतम पर्वतारोही भी थकान से टूट जाता है।

पर्वतारोही व शोधकर्ता डॉ. महेंद्र सिंह मिराल ने बताया कि धार्मिक आस्था के केंद्र कैलास पर्वत पर चढ़ना असंभव है। वहां शरीर के बाल व नाखून तेजी से बढ़ने लगते हैं।

पर्वतारोहियों के अनुभव

  • 1999 में रूस के वैज्ञानिकों की टीम एक महीने तक कैलाश पर्वत के नीचे रही और इसके आकार के बारे में शोध करती रही. वैज्ञानिकों ने कहा कि इस पहाड़ की तिकोने आकार की चोटी प्राकृतिक नहीं, बल्कि एक पिरामिड है जो बर्फ से ढकी रहती है।
  • 2007 में रूसी पर्वतारोही सर्गे सिस्टियाकोव ने अपनी टीम के साथ माउंट कैलास पर चढ़ने की कोशिश की थी। सिस्टियाकोव ने बताया कि जब वह पहाड़ के आधार पर पहुंचे, तो धड़कनें तेज हो गईं। दिल तेज़ हो गया था। मैं खुद को दुर्बल महसूस करने लगा। इसके बाद मैं आगे नहीं बढ़ सका और उतरने का फैसला किया। जैसे जैसे हम नीचे आए सबकुछ ठीक होता गया।
  • चीन सरकार के कहने पर कुछ पर्वतारोहियों का दल कैलाश पर चढ़ने का प्रयास कर चुका है। पर उन्हें भी सफलता नहीं मिली।

कैलास के अजेय होने के कारण

  • यह धरती का केंद्र माना जाता है। पूरी धरती पर यही एक जगह है जहां चारों दिशाएं आकर मिलती हैं। आपको यकीन नहीं होगा कि दुनिया की अन्य जगहों के मुकाबले कैलाश पर आकर समय तेजी से बीतने लगता है। 
  • समय तेजी के बीतने का प्रमाण यह है कि इस क्षेत्र में लोगों ने पाया कि शरीर के बाल और नाखून 2 दिन में ही इतने बढ़ जाते हैं, जितने 2 हफ्ते में बढ़ने चाहिए। शरीर की त्वचा सामान्य से अधिक तेजी से बूढ़ी नजर आने लगती है।
  •  इसके अलावा कैलास पर्वत बहुत ज्यादा रेडियोएक्टिव भी है। माना जाता है कि कैलास पर थोड़ा सा ऊपर चढ़ते ही व्यक्ति दिशाहीन हो जाता है। यहां कोई कंपास काम नहीं करता। बिना दिशा के ज्ञान के पर्वत या जंगल में जाना मौत को दावत देने के समान है।

कैसे पहुंचे कैलास

कैलास पर्वत क्षेत्र में जाने के लिए दो रास्ते हैं। एक रास्ता भारत में उत्तराखंड के पिथौरागढ़ से होकर गुज़रता है। यह दुर्गम है, यहां अधिकतर पैदल चलकर ही यात्रा पूरी की जा सकती है। दूसरा रास्ता जो थोड़ा आसान है वो है नेपाल की राजधानी काठमांडू से होकर। यह सरल है क्योंकि यहां पर काफी हद तक सड़क मार्ग से वाहन से जाया जाता है।

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