India-China Dispute : सीमा पर चीन को जवाब देने के लिए कुमाऊं तैयार, सेना हाई अलर्ट पर
आजादी के 72 वर्ष बाद चीन सीमा तक मिली सड़क की खुशी । इस खुशी पर ग्रहण लगाता नेपाल तो दूसरी तरफ आंखे दिखाते चीन का जबाव देने के लिए कुमांऊ तैयार है।
जिले की सीमा पर तीन देशों में पैदा हुए तनाव के बीच दैनिक जागरण ने चीन और नेपाल सीमा से लगे क्षेत्रों का जायजा लिया और स्थानीय लोगों के विचार लिए। ग्रामीणों ने चीन और नेपाल की इस तरह की हरकतोंं पर चिंता जताई परंतु सीमा को महफूज बताते चीन के इशारे पर नेपाल के कालापानी, लिपूलेख को अपना बताने को लेकर आक्रोश जताया। सीमा पर स्थित भारतीय गांव नेपाल के भू भाग को अपना बताते हैं।
लिपूलेख पर शांति है। यहां पर तीसरे चौथे दिन चीनी सैनिक सीमा तक आते हैं। अलबत्त्ता सीमा पर चीन के खुफिया कैमरे सीमा की सारी जानकारी लेते रहते हैं। फिलहाल किसी तरह का बहुत अधिक तनाव नहीं है। भारत की तरफ सेना, आइटीबीपी चौकस नजर रखे है। जिस कालापानी को लेकर नेपाल दूसरे देश की भाषा बोलता है वहां तक पहुंचने के लिए नेपाल में एक रास्ता तक नहीं है। नेपाल में लामारी से आगे पैदल मार्ग बनाया जा रहा है। तीन दिन पूर्व नेपाल ने यहां पर पैदल मार्ग के लिए चट्टान काटने के लिए एक छोटे से हैलीकॉप्टर से संकरे स्थल पर मशीन उतारी है।
गब्र्यांग गांव योगेश गब्र्याल ने बताया कि भारतीय सेना और आइटीबीपी पर पूरा भरोसा है। सरकार को यहां पर अधिक ध्यान देना होगा। व्यास घाटी के गांव चीन और नेपाल सीमा से लगे हैं। यहां पर सुरक्षा की अधिक आवश्यकता है। चीन की किसी भी हरकत का पूरा जबाव दिया जाएगा।
बदला है चीन सीमा से लगे गांवों का माहौल
चीन से सटे व्यास घाटी सात गांवों का माहौल उत्साहजनक है। चीन और नेपाल की हरकतों को लेकर थोड़ी बहुत बैचेनी भी है । नेपाल की हरकतों को लेकर गुस्सा भी है। नेपाल की इस हरकत से गुंजी और गब्र्याग के ग्रामीण कहते हैं कि काली नदी पार नेपाल का जो हिस्सा नजर आता है वह सारा गुंजी और गब्र्यांग गांव का है। व्यास घाटी के सात गांवों बूंदी, गब्र्यांग, गुंजी, नाबी, कुटी, नपलच्यू, रोंगकोंग हैं। जिनमें छह गांव इनर लाइन से आगे आते हैं केवल बूंदी गांव इनर लाइन से पीछे है। सभी गांवों में पहली बार सड़क पहुंचने की खुशी है। गांवों में वर्ष 1962 के चीन युद्ध को देखे लोग कम हैं अलबत्त्ता उनकी नई पीढ़ी अपने पूर्वजों द्वारा चीन युद्ध के समय भारतीय सेना को दिए गए सहयोग से खुद को गर्वित मानते हैं और कहते हैं कि वह देश के लिए अपने पूर्वजों की परंपरा का निर्वहन करने को तैयार है। ग्रामीण भारतीय सेना और सुरक्षा बलोंं पर भरोसा रखते हैं और खुद का सीमा प्रहरी बताते हैं।
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