फाइलों में दौड़ता रहा आइएसबीटी, आज तक जमीन नहीं तलाश सकी सरकार
कुमाऊं के लिए बहुपयोगी आइएसबीटी की परियोजना पूरे साल अफसरों के दौरों तक ही सीमित रही। सरकार से लेकर अफसर तक आइएसबीटी निर्माण के लिए जमीन तक फाइनल नहीं कर पाए।
By Skand ShuklaEdited By: Updated: Tue, 01 Jan 2019 09:25 PM (IST)
संदीप मेवाड़ी, हल्द्वानी : कुमाऊं के लिए बहुपयोगी आइएसबीटी की परियोजना पूरे साल अफसरों के दौरों तक ही सीमित रही। सरकार से लेकर अफसर तक आइएसबीटी निर्माण के लिए जमीन तक फाइनल नहीं कर पाए। हालांकि साल के अंतिम महीने में शासन स्तर पर तीनपानी की जमीन फाइनल होने की चर्चा उठी, लेकिन आदेश कहीं दिखाई नहीं दिया।
आइएसबीटी का मुद्दा भाजपा व कांग्रेस के लिए पूरे साल सियासी अखाड़े का मैदान बना रहा। कांग्रेस सरकार में लंबी जद्दोजहद के बाद गौलापार में अंतरराष्ट्रीय स्टेडियम के समीप आइएसबीटी निर्माण के लिए आठ हेक्टेयर भूमि मिली। इस भूमि पर आइएसबीटी निर्माण का शिलान्यास करने के साथ काम भी शुरू हो गया। लेकिन सरकार बदलते ही आईएसबीटी का मामला धरातल की जगह फाइलों में दौडऩा शुरू हो गया। मई 2017 में आइएसबीटी की भूमि पर कंकाल मिलने के बाद राजनीति गरमा गई। भाजपा सरकार ने गौलापार में आइएसबीटी बनाने की योजना ही निरस्त कर दी। साथ ही परिवहन निगम के प्रबंध निदेशक की अध्यक्षता में कमेटी का गठन कर नई जमीन ढूंढने का काम सौंपा गया। इस कमेटी ने तीनपानी, कालाढूंगी रोड व एफटीआइ के पास तीन जमीनें देखी। फरवरी में एमडी परिवहन निगम, अपर परिवहन आयुक्त ने संयुक्त निरीक्षण किया। चार माह पहले नए परिवहन आयुक्त ने भी तीनपानी स्थित भूमि का निरीक्षण किया। उसके बाद तीनपानी की जमीन फाइनल होने के कयास लगने शुरू हो गए। 29 नवंबर को मुख्य सचिव उत्पल कुमार सिंह ने भी केवल तीनपानी का ही दौरा कर इस जमीन के फाइनल होने के कयासों को हवा दी। लेकिन इतना सबकुछ होने के एक माह बाद भी सरकार जमीन फाइनल होने का आदेश जारी नहीं कर सकी।
आइएसबीटी का मुद्दा भाजपा व कांग्रेस के लिए पूरे साल सियासी अखाड़े का मैदान बना रहा। कांग्रेस सरकार में लंबी जद्दोजहद के बाद गौलापार में अंतरराष्ट्रीय स्टेडियम के समीप आइएसबीटी निर्माण के लिए आठ हेक्टेयर भूमि मिली। इस भूमि पर आइएसबीटी निर्माण का शिलान्यास करने के साथ काम भी शुरू हो गया। लेकिन सरकार बदलते ही आईएसबीटी का मामला धरातल की जगह फाइलों में दौडऩा शुरू हो गया। मई 2017 में आइएसबीटी की भूमि पर कंकाल मिलने के बाद राजनीति गरमा गई। भाजपा सरकार ने गौलापार में आइएसबीटी बनाने की योजना ही निरस्त कर दी। साथ ही परिवहन निगम के प्रबंध निदेशक की अध्यक्षता में कमेटी का गठन कर नई जमीन ढूंढने का काम सौंपा गया। इस कमेटी ने तीनपानी, कालाढूंगी रोड व एफटीआइ के पास तीन जमीनें देखी। फरवरी में एमडी परिवहन निगम, अपर परिवहन आयुक्त ने संयुक्त निरीक्षण किया। चार माह पहले नए परिवहन आयुक्त ने भी तीनपानी स्थित भूमि का निरीक्षण किया। उसके बाद तीनपानी की जमीन फाइनल होने के कयास लगने शुरू हो गए। 29 नवंबर को मुख्य सचिव उत्पल कुमार सिंह ने भी केवल तीनपानी का ही दौरा कर इस जमीन के फाइनल होने के कयासों को हवा दी। लेकिन इतना सबकुछ होने के एक माह बाद भी सरकार जमीन फाइनल होने का आदेश जारी नहीं कर सकी।
कंकाल मिलते ही लटका काम
वर्ष 2015 में आइएसबीटी निर्माण के लिए गौलापार स्थित आठ हेक्टेयर वन भूमि परिवहन विभाग को वन विभाग से मिली थी। इसके बदले में सरकार ने बागेश्वर में दो गुनी भूमि वन विभाग को दी। जमीन मिलते ही पहली किश्त में 75 करोड़ रुपये जारी करने के साथ ही निर्माण एजेंसी से काम भी शुरू करा दिया गया। भूखंड निर्माण के लिए 2625 पेड़ काटे गए। अक्टूबर 2016 में आइएसबीटी का शिलान्यास कर दिया गया। जमीन खुदान के दौरान कंकाल मिलते ही आइएसबीटी फिर सियासी मुद्दों में उलझकर लटक गया।
तीनपानी बाइपास के चौड़ीकरण का प्रस्ताव भी अटका
आइएसबीटी निर्माण के लिए तीनपानी-टीपीनगर बाइपास में नहर कवङ्क्षरग कर सड़क चौड़ीकरण का काम भी होना है। शासन के निर्देश पर लोक निर्माण विभाग, सिंचाई विभाग, जलसंस्थान व ऊर्जा निगम ने संयुक्त रूप से 22.65 करोड़ का प्रस्ताव बनाया। इसमें नहर कवर होने के साथ ही सड़क निर्माण पेयजल व बिजली की लाइनें शिफ्ट आदि काम होने हैं। छह महीने पहले जिलाधिकारी के माध्यम से ये प्रस्ताव भी शासन को भेज दिया गया। अब तक इस प्रस्ताव पर भी सरकार की ओर से हरी झंडी नहीं मिली है।
भूमि हस्तांतरण की प्रक्रिया भी नहीं हो सकी
सरकार के अंतिम निर्णय नहीं लेने से नई जमीन के भूमि हस्तांतरण की कार्रवाई भी शुरू नहीं हो पायी। वन विभाग के आधिकारिक सूत्रों की मानें तो भूमि हस्तांतरण आइएसबीटी निर्माण में सबसे बड़ी बाधा बनेगी। पूर्व में वन विभाग आइएसबीटी के लिए गौलापार में जमीन परिवहन विभाग को दे चुका है। एक ही परियोजना के लिए दोबारा जमीन मिलना आसान नहीं होगा। सरकार को बताना होगा कि पुरानी जमीन पर वह क्या करेगी। वह जमीन वन विभाग को वापस लौटाएगी या उस जमीन पर दूसरी परियोजना का निर्माण करेगी। इसके बाद परिवहन विभाग व वन विभाग संयुक्त रूप से प्रस्ताव बनाकर वन संरक्षक पश्चिमी वृत्त को भेजेंगे। वहां से प्रस्ताव केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय के नोडल अफसर को जाएगा। नोडल अफसर से हरी झंडी मिलने पर जमीन हस्तांतरण हो पाएगा। वहीं जमीन हस्तांतरण से पहले सरकार को दो गुनी जमीन किसी दूरी जगह पर वन विभाग को देने के साथ ही पौधरोपण भी कराना होगा।हल्द्वानी-नैनीताल रूट पर पहली बार दौड़ी इलेक्ट्रिक बस
परिवहन निगम ने इस साल पहली बार अपनी सड़कों पर इलेक्ट्रिक बस की शुरुआत की। परिवहन महकमे के केरल की एक कंपनी से परिवहन निगम का करार हुआ। पहले चरण में देहरादून-मसूरी रूट पर ट्रायल के बाद नवंबर माह में हल्द्वानी-नैनीताल रूट के लिए बस पहुंची। इस बस का ट्रायल चल रहा है। अफसरों के मुताबिक ट्रायल में सफल होने पर जल्द ही हल्द्वानी-नैनीताल रूट पर 25 इलेक्ट्रिक बसों का संचालन शुरू किया जाएगा। अन्य छोटे रूटों पर भी ये बस शुरू करने की अफसरों की योजना है। इस बस से ईंधन बचने के साथ ही पर्यावरण पर भी असर नहीं पड़ रहा है। साथ ही यात्रियों को बस से होने वाली आवाज की दिक्कतें नहीं आ रही हैं। इस बस का किराया भी साधारण बस के बराबर निगम ने रखा है।यह भी पढ़ें : प्रदेश के नौ लाख बेरोजगारों को मिल सकता है भत्ते का तोहफा
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