नैनीताल पर फिर मंडराया खतरा, चायना पीक की पहाड़ी दरकी; दहशत में घरों से बाहर आए लोग
सरोवर नगरी नैनीताल की सबसे ऊंची चोटी चायनापीक की पहाड़ी का एक हिस्सा दरक गया। तेज आवाज के साथ पत्थर गिरने व पेड़ धराशायी होने से निचले इलाकों में दहशत फैल गई ।
By Skand ShuklaEdited By: Updated: Thu, 30 Jan 2020 12:50 PM (IST)
नैनीताल, जेएनएन : नैनीताल एक बार फिर खतरे की जद में है। यहां की सबसे ऊंची चोटी चायनापीक की पहाड़ी का एक हिस्सा मंगलवार शाम तेज आवाज के साथ दरक गया। इस दैरान पत्थर और पेड़ों के गिरने से निचले इलाकों में दहशत फैल गई और लोग घरों से बाहर आ गए। बलियानाला भूस्खलन और राजभवन के निहालनाला की पहाड़ी के खिसकने के खतरे के बाद चायना पीक की पहाड़ी दरकने से शहर को नया खतरा पैदा हो गया है। सरकार व प्रशासन के लिए भी एक नई चुनौती खड़ी हो गई है।
आवाज सुनकर घरों से बाहर भागे लोग नैनीताल में मंगलवार रात से तेज बारिश हुई तो बुधवार सुबह से बर्फबारी दोपहर तक बार्फबारी होती रही। ऊंची चोटियों पर आधा फिट तक बर्फ गिरी है। बुधवार शाम करीब साढ़े पांच बजे भूगर्भीय दृष्टि से बेहद संवेदनशील चायनापीक पहाड़ी का करीब 50 मीटर से अधिक का हिस्सा दरक गया। मलबे के साथ दर्जनों पेड़ों भी धराशायी हो गए। पत्थर व मलबे के साथ पेड़ धराशायी होने की आवाज शेरवानी इलाके से लेकर उत्तराखंड प्रशासन अकादमी, चीनाबाबा चौराहे तक सुनी गई। आवाज इतनी तेज थी कि लोग दहशत के कारण घरों से बाहर आ गए।
चायनापीक पहाड़ी की तलहटी में हजारों की आबादी होटल विक्रम विंटेज में कार्यरत विजय पंत के अनुसार पहाड़ी दरकने की आवाज सुनकर लोग घरों से बाहर आ गए। पहाड़ी से लगातार कटाव हो रहा है। चायनापीक पहाड़ी की तलहटी में हजारों की आबादी रहती है। इसमें हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश, न्यायाधीशगण, महाधिवक्ता, केएमवीएन मुख्यालय समेत होटल, सैकड़ों आवासीय मकान हैं। डीएम सविन बंसल ने कहा कि गुरुवार सुबह आपदा प्रबंधन टीम मौके पर जाकर पूरी स्थिति का जायजा लेगी।
1993 में खाली कराया गया इलाका 1993 की अतिवृष्टि के कारण चायनापीक की पहाड़ी दरकी तो पेड़ और मलबा बहकर नीचे इलाकों तक पहुंच गया था। चायना पीक से आने वाला पूरा नाला मलबे से पट गया। कुमाऊं विवि भूगोल विभाग के प्रो. पीसी तिवारी बताते हैं कि 1993 में शेरवानी से लेकर मौजूदा हाई कोर्ट से ऊपर तक का इलाका मलबे से पट गया था। जिसके बाद इलाके से लोगों को हटाया गया। करीब चार माह तक लोगों को स्कूलों में शरण दी गई। प्रो. तिवारी के अनुसार अविभाजित उत्तर प्रदेश के दौर में उत्तर प्रदेश भूगर्भ विज्ञान विभाग के विशेषज्ञों ने इस पहाड़ी का अध्ययन किया तो निष्कर्ष निकला कि नालों के अतिक्रमण की वजह से मलबा आवासीय कॉलोनियों तक पहुंचा। इसके बाद चायनापीक पहाड़ी का ट्रीटमेंट किया गया है। सैनिक स्कूल से लेकर हंस निवास तक व सत्यनारायण मंदिर तक सुरक्षा दीवार बनाई गई है।
मानकों को ताक पर रखकर अंधाधुंध हुए निर्माण पिछले साल नैनीताल की लोवर माल रोड का बड़ा हिस्सा नैनी झील में धंस गया था। वहीं बलियानाला की पहाड़ियों का दरकना भी निरंतर जारी है। वहां से अधिकतर परिवारों को शिफ्ट किया जा चुका है। नैनीताल शहर में बढ़ती लोगों की भीड़ और अंधाधुंध हुए निर्माण ने शहर के हालात को काफी जटिल बना दिया है। वर्तमान में नैनीताल की बसासत इतनी सघन हो चुकी है कि अब निर्माण की गुंजाइश ही नहीं है। इसके बावजूद बचे खुचे स्थानों पर भी ऊपर तक पहुंच रखने वाले लोगों ने निर्माण कार्य जारी रखा। मानकों को ताक पर रखकर उन्हें इसकी स्वीकृति भी मिलती रही। लेकिन जब हद हो गई तो उत्तराखंड हाईकोर्ट ने मामले का खुद संज्ञान लेते हुए सरोवर नगरी में निर्माण पर पूरी तरह से प्रतिबंध ला दिया।
बाहर के वाहनों को प्रवेश की अनुमति आम दिनों को छोड़ दिया जाए तो पर्यटन सीजन में भी बाहर से आने वाले वाहनों पर कोई प्रतिबंध नहीं। नतीजा ऐसे दिनों में पार्किंग पूरी तरह से फुल हो जाती है। वाहनों की भीड़ इस कदर बढ़ जाती है कि काठोदाम से नैनीताल तक वाहनों की लंबी कतार लग जाती है। ऐसे में लोकल के लोगों को अपने घर और ऑफिसों में पहुंचने में काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है।
इलेक्ट्रॉनिक वाहनों का संचालन नहीं बार बार मांग उठने और प्रस्ताव बनने के बावजूद नैनीताल के लिए अभी तक इलेक्ट्रॉनिक वाहन अभी तक नहीं चल सके। इसका नुकसान होता है कि लोग व्यक्तिगत वाहन लेकर पहुंच जाते हैं। इससे जहां सरोवर नगरी में प्रदूषण का ग्राफ बढ़ रहा है वहीं अनावश्यक का दबाव भी आपदा के लिए खतरनाक साबित हो रहा है।पर्यटकों के आगमन पर कोई प्रतिबंध नहीं
नैनीताल को नैसर्गिक सौंदर्य इस कदर को लोगों को भाता है किे हर कोई यहां खिंचा चला है। इससे दिन ब दिन सरोवर नगरी पर दबाव बढ़ता जा रहा है। पर्यटकों के आमद को लेकर कोई निति नहीं बनी है। इसका खामियाजा सरोवर नगरी को भुगतना पड़ रहा है।वनों के अंधाधुंध कटान से बढ़ा भूस्खलन का खतरा वनों का अंधाधुंध कटान भी सरोवर नगरी के लिए घातक साबत हुआ है। पेड़ों का कटना पहाड़ों के दरकने की बड़ी वजह मानी जाती है। लेकिन शुरुआती दिनों में इस पर कोई अंकुश न लगने के कारण सरोवर नगरी को काफी नुकसान पहुंचा है।
अपर माल रोड के लिए भी बढ़ा खतरा नैनीताल में लोअर माल रोड के धंसने के कारण अपर माल रोड भी खतरे की जद में है। दरअसल माल रोड के ठीक ऊपर की पहाड़ी के भीतर भारी मात्रा में पानी रिसकर पहुंच रहा है। विशेषज्ञ बताते हैं कि पहाड़ियों में जलरिसाव रोकने के लिये नालों की मरम्मत बेहद जरूरी है लेकिन चिन्ता की बात यह है कि रिसाव के पानी को झील तक पहुंचाने वाले 12 नाले गायब हो चुके हैं। ये सभी नाले संवेदनशील क्षेत्रों में थे। वर्ष 1880 में शेर का डांडा पहाड़ी में भूस्खलन हुआ था जिसने नैनीताल को भारी नुकसान पहुंचाया था।
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