India-Nepal Land Dispute : अस्कोट के पाल राजाओं का था पश्चिमी नेपाल का बड़ा भू-भाग
जिस कालापानी लिपुलेख लिम्पियाधुरा पर नेपाल अपना हक जता रहा है यह नेपाल का कभी नहीं रहा। वर्तमान सीमा से लगा पश्चिमी नेपाल का विशाल भू-भाग अस्कोट के पाल राजाओं का था।
ओपी अवस्थी, पिथौरागढ़ : जिस कालापानी, लिपुलेख, लिम्पियाधुरा पर नेपाल अपना हक जता रहा है यह नेपाल का कभी नहीं रहा। वर्तमान सीमा से लगा पश्चिमी नेपाल का विशाल भू-भाग अस्कोट के पाल राजाओं का था। सुगौली संधि पर अंग्रेजों ने कालापानी को सीमा बनाया। पाल राजवंश के तत्कालीन राजा को तब नेपाल को सौंपी गई उनकी भूमि का अंग्रेजों ने मुआवजा दिया था, हालांकि पाल राजवंश इसके पक्ष में नहीं था।
यह दावा अस्कोट रियासत के पाल राजवंश के वर्तमान उत्तराधिकारी कुंवर भानुराज पाल ने किया है। उनका कहना है कि उनके पूर्वजों की रियासत तिब्बत सीमा कालापानी, लिपुलेख से लेकर वर्तमान नेपाल के पश्चिमी क्षेत्र तक फैली थी। अंग्रेजों की वर्ष 1815 में गोरखाओं से संधि की वार्ता चली। वर्ष 1816 में संधि पर सहमति बनी। संधि होने के बाद पाल राजवंश के तत्कालीन राजा महेंद्र पाल द्वितीय को बिहार के सुगौली बुलाया गया था।
सुगौली में अंग्रेजों ने बताया गया कि कालापानी को भारत नेपाल की सीमा तय कर दिया गया है। अंग्र्रेजों ने पाल राजवंश की नेपाल को दी गई भूमि का मुआवजा दिया। उस समय उनके पूर्वजों को उनकी रियासत की जमीन नेपाल को दिए जाने के बदले में दी गई धनराशि कितनी थी, इसका जिक्र नहीं है परंतु भूमि नेपाल को दिए जाने का उल्लेख है। रियासत की भूमि नेपाल को दिए जाने से पाल राजवंश के लोग अंग्रेजों की चाल से नाखुश थे।
650 साल तक कैलास यात्रा का पाल राजवंश ने किया संचालन
सदियों से चली आ रही कैलास मानसरोवर यात्रा का अस्कोट के पाल राजवंश ने 650 साल तक संचालन किया था। तब देश भर से कैलास मानसरोवर यात्री अस्कोट पहुंचते थे। जहां से फिर जत्था अस्कोट रियासत की भूमि से लिपुलेख पार कर तिब्बत में प्रवेश करता था। इस दौरान मार्ग में कुछ अराजक तत्व लूटपाट करते थे। 1289 में तत्कालीन राजा उदय देव पाल ने कैलास यात्रियों की सुरक्षा के लिए अपने हथियार बंद लोगों को भेजना प्रारंभ किया। यह व्यवस्था आजादी के बाद रियासत के देश में विलय होने तक जारी रही ।
पाल राजवंश के कुलदेवता का मंदिर अभी भी नेपाल में
अस्कोट पाल राजवंश के कुलदेवता का मंदिर अभी भी नेपाल में है। काली नदी पार के शिखर चोटी पर राजवंश के कुलदेवता मल्लिकार्जुन महादेव का मंदिर है। अस्कोट के धर्मवीर राजा और रानी प्रतिदिन इस मंदिर में पूजा करने जाते थे। मान्यता है कि मल्लिकार्जुन की परम भक्त एक रानी अधिक उम्र होने के कारण प्रतिदिन दर्शन के लिए नहीं आ पाने के कारण अपने कुल देवता से अस्कोट में ही पूजा की प्रार्थना की थी। इस प्रार्थना पर नेपाल के शिखर से एक शंख उड़ता हुआ अस्कोट के अंगलेख की चोटी पर आया जहां पर पूजा अर्चना के लिए मल्लिकार्जुन में मंदिर बनाया गया।
लिपुलेख, कालापानी भारत का हिस्सा
पाल राजवंश के उत्तराधिकारी कुंवर भानुराज पाल ने बताया कि लिपुलेख, कालापानी भारत का है। इसके अलावा पश्चिमी नेपाल का विस्तृत भू-भाग अस्कोट रियासत का रहा है। जिसे अंग्रेजों ने नेपाल को देकर कालापानी को सीमा बना दिया था। भारत-नेपाल सीमा से लगे लखनपुर की चोटी पर नेपाल ने अपना अधिकार करना चाह था, पाल राजवंश की सेना ने उन्हें खदेड़ा था। पश्चिमी नेपाल के विस्तृत भू-भाग में उनके पूर्वजों का राज था। पुराने सभी दस्तावेज इस बात की तस्दीक करते हैं।कालाढूंगी में कपड़े धुल रही किशोरी को जंगल में घसीट ले गया तेंदुआ, सर्च ऑपरेशन में मृत मिली