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पांडवों की मां कुंती के नाम पर चीन सीमा पर स्थित अंतिम गांव का नाम पड़ा कुटी

देवभूमि उत्तराखंड तमाम ऐतिहासिक और पौराणिक कथाओं का खुद में समेटे हुए है। उच्च हिमालयी भू भाग में भारत-चीन सीमा पर स्थित अंतिम भारतीय गांव कुटी का इतिहास द्वापर युग के पांडवों से जुड़ा है। पांडव जब स्वर्गारोहण के लिए गए थे तो इसी गांव में लंबा प्रवास किया था।

By Skand ShuklaEdited By: Updated: Mon, 19 Oct 2020 08:49 AM (IST)
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देवभूमि उत्तराखंड तमाम ऐतिहासिक और पौराणिक कथाओं का खुद में समेटे हुए है।

पिथौरागढ़, जेएनएन : देवभूमि उत्तराखंड तमाम ऐतिहासिक और पौराणिक कथाओं का खुद में समेटे हुए है। उच्च हिमालयी भू भाग में भारत-चीन सीमा पर स्थित अंतिम भारतीय गांव कुटी का इतिहास द्वापर युग के पांडवों से जुड़ा है। पांडव जब स्वर्गारोहण के लिए गए थे तो इसी गांव में लंबा प्रवास किया था। यह गांव उनकी माता कुंती को भा गया था, जिसके चलते कालांतर में इसका नाम कुटी पड़ गया।

समुद्रतल से लगभग 13000 फीट की ऊंचाई पर स्थित कुटी गांव अंतिम भारतीय गांव है। इस गांव के निकट अतीत में निखुर्च मंडी थी। वर्ष 1962 के भारत-चीन युद्ध से पूर्व इस मंडी में भारत-तिब्बत व्यापार होता था और इसी मंडी से तिब्बत जाने का मार्ग था। कैलास मानसरोवर जाने वाले इस मार्ग से भी जाते थे। 1962 के युद्ध के बाद यह मंडी भी समाप्त हो गई और तिब्बत में प्रवेश वर्जित हो गया। कुटी गांव कुटी यांगती (नदी) के तट पर आदि कैलास मार्ग पर पड़ता है। इस ऊंचाई पर बसे इस गांव में समतल मैदान तक हैं। निकट में है आदि कैलास।

द्वापर युग में जब पांडव अपने अंतिम समय में स्वर्गारोहण को गए तो कैलास मानसरोवर यात्रा मार्ग पर आने वाले कुटी गांव में रहे। सौंदर्य से भरपूर कुटी में पांडवों ने लंबे समय यहां पर प्रवास किया।उनके प्रवास के अवशेष आज भी बचे हैं। बताया जाता है कि पांडवों की मां कुंती को कुटी पसंद आया था। यहां पर पांडवों ने जिस स्थान पर अपना निवास बनाया वह समतल मैदान से लगभग पांच मीटर ऊंचा है। इस स्थान पर पांडवों के बैठने के लिए बिछाए गए पत्थर को आज भी विद्यमान है। बाद में कुंती के नाम से गांव का नाम कुटी पड़ गया। यहां पर पांडव पर्वत हैं। इसमें पांच चोटियां हैं जिन्हें पांच पांडवों का प्रतीक माना जाता है।

खर नाम से जाना जाता है पांडवों के आवास का अवशेष

पांडवों के आवास को आज भी खर नाम से जाना जाता है। इसी स्थान पर पांडव निवास करते थे। खर के निकट स्थानीय नाम छका (नमक की खान) है। इसके कुछ दूर शालीमार है। शालीमार में छोटे-छोटे पत्थरों की खान है। इन पत्थरों को निकालने पर विभिन्न आकृति के पत्थर निकलते हैं। जिन पर लोग श्रद्धा रखते हैं।

धार्मिक पर्यटन की यहां पर हैं अपार संभावनाएं

केएमवीएन के साहसिक पर्यटन के प्रबंधक दिनेश गुरुरानी बताते हैं कि कुटी गांव अति सुंदर गांव है। यहां पर धार्मिक पर्यटन की भी अपार संभावनाएं हैं। आदि कैलास मार्ग पर होने के कारण यहां पर्यटक पहुंचने लगे हैं। इस गांव को पर्यटन के रूप में विकसित करने पर यह पर्यटन रोजगार का प्रमुख साधन बन जाएगा। अंतिम गांव होने के कारण पर्यटकों को पूरी व्यास घाटी के भी दर्शन होंगे।

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