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वीरेन डंगवाल की स्मृति में रामनगर में खोला गया पुस्तकालय, कवि को किया याद

रचनात्मक शिक्षक मंडल की पहल पर बुधवार को हिंदी के वरिष्ठ कवि वीरेन डंगवाल के जन्मदिन पर उनकी स्मृति में नरसिंहपुर एरड़ा (हाथीडंगर) में पुस्तकालय खोला गया।

By Edited By: Updated: Thu, 06 Aug 2020 12:01 PM (IST)
वीरेन डंगवाल की स्मृति में रामनगर में खोला गया पुस्तकालय, कवि को किया याद

रामनगर, जेएनएन : रचनात्मक शिक्षक मंडल की पहल पर बुधवार को हिंदी के वरिष्ठ कवि वीरेन डंगवाल के जन्मदिन पर उनकी स्मृति में नरसिंहपुर एरड़ा (हाथीडंगर) में पुस्तकालय खोला गया। पुस्तकालय का शुभारंभ बेतालघाट डिग्री कॉलेज के हिंदी विभागाध्यक्ष डाॅ. अधीर कुमार ने किया। इस मौके पर डाॅ. कुमार ने कहा कि वीरेन डंगवाल के जीवनकाल में उनके तीन कविता संग्रह व तुर्की के क्रातिकारी कवि नाजिम हिकमत की कविताओं के अनुवाद व कई लेख प्रकाशित हुए।

उनकी कविताएं अंधेरे से लड़ने की राह दिखाती हैं। उन्होंने कहा बच्चों के अंदर यदि पढ़ने की प्रवृति पैदा हो जाए तो वे कभी भी जीवन में असफल नही हो सकते। कार्यक्रम आयोजक नवेंदु मठपाल द्वारा वीरेन डंगवाल की कविताओं हाथी, मेरा बच्चा, उजले दिन जरूर आएंगे, पपीता, हमारा समाज, रामसिंह का वाचन किया गया। वीरेन डंगवाल स्मृति पुस्तकालय में उनकी कविताओं के संग्रह के साथ-साथ देश दुनिया का हिंदी में लिखा गया व अनुवाद किया गया बेहतरीन साहित्य मौजूद है। बच्चों के लिए प्रकाशित होने वाली पत्रिका बालबोध भी है।

कार्यक्रम मे गिरीश मैंदोला, प्रेमराज, अनिल बिष्ट, अरुण कुमार, समरजीत कौर कोमल ,सचिन कुमार, रीना, कपिल चंद्रा मौजूद रहे। चर्चित कवि व पत्रकार वीरेन डंगवाल जयंती पर हल्द्वानी में आधारशिला प्रकाशन की ओर से आयोजित वेबिनार में वरिष्ठ साहित्यकार के भारद्वाज ने कहा कि वीरेन डंगवाल नए अंदाज के कवि थे। उन्होंने हिंदी कविता का नया मुहावरा गढ़ा। वरिष्ठ साहित्यकार प्रो. बटरोही ने कहा कि वीरेन की उनके मन-मस्तिष्क में एक से अधिक आत्मीय दोस्त की छवि है।

उन्होंने समाज को अपनी कविताओं में व्यक्त किया। वह जिंदगी व कविता के बीच फासला नहीं रखते थे। भावनाओं को सीधे व्यक्त करना वीरेन का बड़ा गुण रहा। साहित्यकार दिवाकर भट्ट ने कहा कि वीरेन डंगवाल ने हिंदी कविता की श्रीवृद्धि में अप्रतिम योगदान दिया। दिनेश जुयाल ने कहा कि वीरेनदा प्रतिबद्ध कवि थे। उन्होंने हिंदी पत्रकारिता को समग्रता से देखा और उसी के रूप में उसका प्रस्तुतीकरण किया। प्रभात सिंह, साहित्यकार प्रो. वाचस्पति ने भी विचार रखे। डंगवाल की कविता 'आएंगे उजले दिन आएंगे' से कार्यक्रम का समापन किया गया।

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