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लिलियम फूल की खेती पहाड़ के लोगों के लिए बन रही रोजगार जरिया nainital news

पिथौरागढ़ में गेंदे के फूल की खेती के बाद लिलियम की खेती शुरू हो गई है। इससे जहां नौवजवान आर्थिक रूप से आत्‍मनिर्भर होंगे वहीं दूसरों के लिए प्रेरणा बनेंगे।

By Skand ShuklaEdited By: Updated: Wed, 18 Dec 2019 10:55 AM (IST)
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लिलियम फूल की खेती पहाड़ के लोगों के लिए बन रही रोजगार जरिया nainital news
नाचनी (पिथौरागढ़) जेएनएन : हाॅलैंड के फूल लिलियम की डिमांड ट्यूलिप के बाद दुनिया में सर्वाधिक है। व्‍यावसायिक खेती के लिहाज से सफल उत्‍तराखंड में भी इसे अपनाया जा रहा है। सजावट के लिए सर्वाधि‍क डिमांड वाला ये फूल लोगों को स्‍वरोजगार मुहैया करा रहा है। यही कारण है कि पिथौरागढ़ में गेंदे के फूल की खेती के बाद लिलियम की खेती शुरू हो गई है। इससे जहां रोजगार के लिए शहरों का रुख करने वाले नौवजवान आर्थिक रूप से आत्‍म निर्भर होंगे वहीं दूसरों के लिए प्रेरणा का श्रोत बनेंगे। लिलियम फूल के बल्ब को हॉलैंड से मंगवाया जाता है भारत इसके 15-20 लाख बल्बों का हॉलैंड से आयात करता है।

चालीस पॉलीहाउस में 45 हजार लिलियम पुष्प लगाए गए

पिथौरागढ़ जिले के नाचनी में रामगंगा नदी घाटी के तल्ला जोहार में गेंदा के बाद अब लिलियम के फूल आजीविका के साथ-साथ पलायन पर प्रहार करने के आधार बनते जा रहे हैं। इस क्षेत्र में अब तक चालीस पॉलीहाउस में 45 हजार लिलियम पुष्प लगाए हैं। क्षेत्र के काश्तकार जिससे 18 लाख की आय अर्जित करेंगे। सहकारिता के माध्यम से ग्रेडिंग और पैकेजिंग कर लिलियम के पुष्प सीधे दिल्ली मंडी पहुंचने लगे हैं। जलागम परियोजना के तहत रामगंगा नदी घाटी में पुष्प उत्पादन आजीविका का सशक्त माध्यम बन चुका है।

जंगली जानवरों से परेशान हो गए थे लोग

जंगली जानवरों के आतंक के चलते तल्ला जोहार में पलायन तेजी से हो रहा है और खेत बंजर पड़ते जा रहे  हैं। इस बीच इस क्षेत्र का चयन उत्त्तराखंड विकेंद्रीकृत जलागम विकास परियोजना के तहत हुआ। परियोजना के द्वारा एबीएसओ ग्राम्या -2 के तकनीकी सहयोग से इस क्षेत्र में लिलियम पुष्प के उत्पादन का कार्य प्रारंभ किया गया। इससे पूर्व कोट्यूड़ा गांव में दिनेश बथ्याल द्वारा अपने प्रयासों से गेंदा पुष्प का उत्पादन प्रारंभ किया गया था। दिनेश के फूलों की बिक्री को देख कर क्षेत्र के काश्तकार आगे आने लगे।

जलागम परियोजना से मिला किसानों का सहयोग

जलागम परियोजना द्वारा थल और नाचनी के किसानों को लिलियम पुष्प के उत्पादन के लिए प्रेरित किया गया। परियोजना के तहत किसानों को निशुल्क पॉलीहाउस और आवश्यक उपकरण व कीटनाशक दवाईयां दी गई। इस योजना के तहत क्षेत्र में चालीस पॉलीहाउसों में 45 हजार से अधिक लिलियम पुष्प बल्ब लगाए गए हैं। लिलियम पुष्प 45 दिनों में तैयार हो जाता है। बाजार में एक लिलियम पुष्प की कीमत 40 रु पये है। इस लिहाज से 45 हजार लिलियम  पुष्पों से 18 लाख की आय होगी, जो काश्तकारों की आय को दोगुना कर देगी। वहीं गांवों से पलायन के लिए कदम रोक देगी।

इन गांवों में हो रही फूलों की खेती

थल के बलतिर, अठखेत, तड़ीगांव , दौलीकौली,  उड़ी सिरतोली,  द्यौकली और शौकियाथल और नाचनी के भैंसखाल, हुपुली, खेतभराड़, बरा, चामी भैंस्कोट गांवों में लिलियम की खेती हो रही है। सभी गांवो में मिला कर 24 परिवार फूलों की खेती से जुड़ चुके हैं।

सहकारिता के माध्यम से हो रही बिक्री

उगाए गए फूलों की बिक्री त्रिवेणी सहकारिता एवं उन्नति स्वायत्त्त सहकारिता के माध्यम से ग्रेडिंग और पैकेजिंग कर सीधे दिल्ली मंडी  भेजा जा रहा है। जहां पर फूलों के व्यापारी हाथों हाथ खरीद रहे हैं। लिलियम के साथ गेंदा और गुलदावरी पुष्पों की खेती भी हो रही है। फूलों की खेती से अब मायूस हो चुके काश्तकारों के चेहरे भी खिलने लगे हैं।

इन प्रदेशों की जलवायु लिलियम की खेती के अनुकूल

लिलियम के फूल की खेती के लिए देश में जम्मू-कश्मीर, हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड की जलवायु काफी उत्तम मानी जाती है। यह फूल सिर्फ 70 दिनों के अंदर ही बागवानी में किसानों के लिए फायदेमंद साबित हो रहा है। इसके एक एकड़ में 90 हजार से एक लाख फूल आराम से तैयार हो जाते है। उत्तराखंड के अल्मोड़ा जिले के गांव हड़ौली के किसान पिछले कई सालों से लिलियम की खेती कर रहे हैं। अगर बाजार की बात करें तो 40 से 50 रूपये एक फूल की कीमत है। लिलियम की खेती से बेरोजगार किसानों को अपनी आमदनी को बढ़ाने में काफी ज्यादा फायदा होगा।

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