इस वृक्ष पर बैठ बांसुरी बजाकर गोपियों को रिझाते थे कान्हा, अब हो रहा संरक्षण
हल्द्वानी में वन अनुसंधान केंद्र भगवान कृष्ण के प्रिय वृक्ष कदंब के पौधों को संवार रही है। ये वही वृक्ष है जिसपर बैठकर बांसुरी बजाते थे।
By Edited By: Updated: Mon, 03 Sep 2018 09:22 AM (IST)
हल्द्वानी, [सतेंद्र डंडरियाल]: भगवान श्रीकृष्ण की नगरी गोकुल से कोसों दूर हल्द्वानी में कृष्ण को अति प्रिय लगने वाले पौधों को संवारा जा रहा है। कदंब के जिस वृक्ष पर कान्हा बांसुरी बजाकर गोपियों को रिझाया करते थे, माखन व दही रखने के लिए कृष्णवट व माखनकटोरी वृक्ष के पत्तों का इस्तेमाल करते थे, उनके नन्हे पौधों को वन अनुसंधान केंद्र हल्द्वानी की पौधशाला में तैयार किया जा रहा है। यहां से उत्तर प्रदेश सहित देश के अन्य राज्यों की नर्सरी व धार्मिक स्थलों में रोपण के लिए इन पौधों को भेजा जाता है।
गोवर्द्धन पर्वत को अपनी तर्जनी अंगुली पर उठाकर लोगों को प्रकृति पूजन के लिए प्रेरित करने वाले भगवान कृष्ण प्रकृति प्रेमी माने जाते हैं। शास्त्रों के अनुसार गोकुल में गायों को चराने के दौरान भगवान कृष्ण कदंब के वृक्ष नीचे बैठकर बांसुरी बजाया करते थे, उनकी बांसुरी की मधुर धुन सुनकर गाय उनके पास आ जाती। सिर्फ गाय ही नहीं, गोपियों को भी उनकी बांसुरी की धुन मोहित कर देती थी। यमुना के किनारे कदंब के काफी वृक्ष हुआ करते थे।
बताया जाता है कि कृष्ण एक बार मटकी से माखन निकालकर खा रहे थे, उनके हाथ से माखन उनके कपड़ों पर गिर रहा था, जिस पर उनके सहपाठी हंसने लगे। तभी कृष्ण ने माखन रखने के लिए जिस पौधे की उत्पत्ति की, उसका नाम कृष्णवट रखा गया। जिसे माखनकटोरी भी कहा जाता है। कृष्ण गले में वैजयंतीमाला पहनते थे। वैजयंतीमाला के वृक्ष पर जो फल लगते हैं, उनकी माला बनाई जाती है।धार्मिक मान्यता के अनुसार वैजयंतीमाला को पहनना बहुत ही शुभ माना जाता है। कदंब के पौधों में लगने वाले फलों को बंदर, लंगूर बड़े चाव से खाते हैं।
अनुसंधान केंद्र प्रभारी मदन बिष्ट बताते हैं कि भगवान कृष्ण से जुड़े व धार्मिक महत्व के कदंब, माखनकटोरी व वैजयंतीमाला के पौधों को संरक्षित कर अनुसंधान केंद्र की नर्सरी में पौधे तैयार किए जा रहे हैं। कृष्ण से इनका संबंध होने के कारण धार्मिक स्थलों पर इन पौधों को काफी पसंद किया जाता है।
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