जाे शासनादेश जंगल को बचाने के लिए था वही अब बन रहा दावानल का कारण nainital news
अविभाजित उत्तर प्रदेश के दौर में एक शासनादेश ने उत्तराखंड में वन महकमे की वनों के विस्तार तथा चीड़ के वनों के निस्तारण की योजना पर पानी फेर दिया है।
By Skand ShuklaEdited By: Updated: Mon, 27 Jan 2020 09:30 AM (IST)
नैनीताल, जेएनएन : एक शासनादेश जो वनों के संरक्षण की दिशा में बेहद जरूरी कदम था, वही अब जंगल के लिए खतरा बन चुका है। शासनादेश अविभाजित उत्तर प्रदेश के दौर का है, जिसके कारण उत्तराखंड में वन महकमे की वनों के विस्तार व चीड़ के वनों के निस्तारण की योजना प्रभावी नहीं हो पा रही है। आलम यह है कि इस आदेश की वजह से वन महकमे ने पिछले दो दशक से फायर लाइन यानी चीड़ के पेड़ों को काटना ही बंद कर दिया है। इन्हीं चीड़ के पेड़ों से पीरूल बनता है जो हर साल हजारों हेक्टेयर जंगल को जलाकर राख कर देता है। अब महकमे ने इस आदेश में संशोधन को लेकर शासन से पत्राचार किया है।
जानिए कौन सा शासनादेश सरकार के लिए बना हैं फांस दरअसल 1996 में अविभाजित उप्र के दौर मेें शासन ने एक शासनादेश जारी किया। जिसके तहत समुद्र तल से एक हजार मीटर से अधिक वाले स्थानों पर हरे पेड़ काटने पर पाबंदी लगा दी थी। बाद में सुप्रीम कोर्ट ने गौंडावर्मन केस मामले में फैसला देते हुए इसी शासनादेश का जिक्र किया। साथ ही मॉनीटरिंग कमेटी भी बनाई थी। शासनादेश व सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद पर्वतीय इलाकों में हरे पेड़ों के कटान पर पूरी तरह पाबंदी लगा दी।
चीड़ के वनों का दायरा बढ़ने से पीरूल के करण जल रहे जंगल
शुरुआत में तो दिक्कतें कम आईं मगर अब इस आदेश की वजह से वन महकमे के सामने चुनौतियों का अंबार खड़ा हो गया है। चीड़ के वनों का दायरा लगातार बढ़ रहा है तो पीरूल की वजह से दावानल की समस्या विभाग के लिए चुनौती बन गई है। मुख्य वन संरक्षक कार्ययोजना मान सिंह भी मानते हैं कि इस शासनादेश की वजह से वनों का विकास थम सा गया है। उन्होंने कहा कि चीड़ के जंगल घने हो रहे है, उम्रदराज पेड़ों की वजह से नई पौधा नहीं उग पा रही है। दावानल का खतरा भी बढ़ गया है। वनों को नुकसान हो रहा है। फायर लाइनें काटना ही बंद करना पड़ा है।
संकट के लिए सरकार की नीतियां जिम्मेदार तरुण जोशी, वन पंचायत संघर्ष मोर्चा ने कहा कि राज्य बनने के बाद वनों का प्रतिशत 64 से बढ़कर 71 फीसद हो गया है। सुप्रीम कोर्ट ने इस आदेश के संबंध में एक उच्चस्तरीय कमेटी का गठन भी किया है, मगर राज्य सरकार द्वारा आज तक इस कमेटी के समक्ष अपनी चिंताएं बताई तक नहीं। इस पूरे संकट के लिए सरकार की नीतियां जिम्मेदार हैं।
उत्तराखंड में वन-एक नजर में आरक्षित वन-26,547 वर्ग किलोमीटरसंरक्षित वन-154.02 वर्ग किलोमीटरसिविल एवं सोयम वनवन पंचायत-4961 वर्ग किमी, राजस्व विभाग के अधीन-4768.704 वर्ग किमी, निजी वन-123 वर्ग किमी, अवर्गीकृत वन-1444.51 वर्ग किम
गर्मियों में बढ़ जाती हैं आगजनी की घटनाएं गर्मियां शुरू होते ही जंगलों में आग लगनी शुरू हो जाती है। पिछले साल देर तक बारिश और बर्फबारी जारी रही। लेकिन जब सूरज की तपिश बढ़ी और पहाड़ों में नमी कम हुई तो जंगलों में आग लगने की घटनाएं बढ़ती चली गईं। पिछले साल आग की करीब दो हजार घटनाएं सामने आईं। जिनमें गढ़वाल मंडल में में करीब सात सौ तो कुमाऊं में तेरह सौ घटनाओं में जंगल के हरे भरे पेड़ जलकर राख हो गए। 100 के आसपास घटनाएं संरक्षित वन क्षेत्र में हुई हैं। आग से उत्तराखंड के चंपावत, अल्मोड़ा, पिथौरागढ़, चमोली और रुद्रप्रयाग सबसे ज्यादा प्रभावित हुए।
चीड़ की पत्तियों से बनता है पीरूल चीड़ की पत्तियां जिन्हें पीरूल भी कहते हैं, यह बेहद ज्वलनशील होती हैं। यही पीरूल जंगलों में दावानल का बड़ा कारण बनते हैं और हर साल हजारों हेक्टेयर वन को लील जाते हैं। लेकिन इसी पीरूल का यदि सही तरीके से उपयोग किया जाए तो यह काफी सार्थक भी हो सकता है। पीरूल से बिजली, कोयला आदि बन रहा है। विशेष प्रकार के कागज भी इससे बनते हैं।
यह भी पढ़ें : पीएफ का पैसा निकालना अब और भी आसान, बस इन स्टेप्स को करें फॉलो यह भी पढ़ें : एयर फाइबर से हाई स्पीड इंटरनेट देगा बीएसएनएल, रेडियो फ्रीक्वेंसी से पहुंचेगा लोगों तक कनेक्शन
आपके शहर की हर बड़ी खबर, अब आपके फोन पर। डाउनलोड करें लोकल न्यूज़ का सबसे भरोसेमंद साथी- जागरण लोकल ऐप।