Uttarakhand Lockdown : पास के लिए सात घंटे लाइन में लगने के बाद भी मायूस हुए लोग
पिछले एक महीने से लॉकडाउन की वजह से लोग परेशान हैं। डीएम के निर्देश पर मंगलवार को पास को लेकर अलग-अलग अधिकारियों की जिम्मेदारी तय की गई। ताकि लोगों को दिक्कत न आए।
By Skand ShuklaEdited By: Updated: Wed, 22 Apr 2020 08:44 PM (IST)
हल्द्वानी, जेएनएन : कठघरिया निवासी कैलाश जोशी को रानीखेत में फंसे अपने दो बच्चों को घर लाना था। कुबेर मेहरा को बूढ़ी दादी को गांव भेजना था। इनके जैसे कई थे, जो एसडीएम कोर्ट के बाहर पास की आस लेकर आए थे। परेशानी का अंदाजा नगर निगम के गेट तक पहुंच चुकी लाइन से साफ लग रहा था। मगर जिम्मेदार को इस दर्द-तकलीफ से कोई मतलब नहीं था। यहीं वजह है कि एक बजे तक कोई अफसर पूछने तक नहीं आया। बाहर पुलिस खड़ी थी जिसका काम सिर्फ लाइन को व्यवस्थित करना था। इसलिए बीच-बीच में फटकारा भी जा रहा था। घड़ी में जैसे ही एक बजे और लॉकडाउन की छूट खत्म हुई। अधिकांश मायूस होकर घरों को लौट गए।
पिछले एक महीने से लॉकडाउन की वजह से लोग परेशान हैं। डीएम के निर्देश पर मंगलवार को पास को लेकर अलग-अलग अधिकारियों की जिम्मेदारी तय की गई। ताकि लोगों को दिक्कत न आए। मगर निचले अधिकारियों की लापरवाही की वजह से दिक्कत खत्म होने का नाम नहीं ले रही। बुधवार सुबह एसडीएम कोर्ट के बाहर छह बजे से लोगों की लाइन जुट गई थी। लोगों को लगा कि भले नंबर देर में आए मगर समस्या का समाधान हो ही जाएगा। जमावड़ा ज्यादा होने से पुलिसकर्मियों को भी बार-बार व्यवस्था बनाने में दिक्कत आ रही थी। लोगों ने बताया कि पौने एक बजे तक वह उम्मीद में खड़े थे, लेकिन फिर मायूस होकर लौटना पड़ा। अधिकांश को अनुमति नहीं मिल सकी।
एक कर्मचारी तक नियुक्त नहीं
पुलिस कैंप कार्यालय के बाहर पास मांगने वालों की भीड़ लगने पर तुरंत पुलिसकर्मी बाहर आकर परमिशन की वजह पूछते थे। मामला अधिकार क्षेत्र से बाहर का होने पर समझाकर भेज दिया जाता था। इससे बेवजह लोगों को खड़ा नहीं होना पड़ता था। मगर एसडीएम कोर्ट के बाहर ऐसी कोई व्यवस्था नहीं थी। जिस वजह से सूचना लिस्ट पर भी ज्यादातर की नजर नहीं पड़ सकी।
अफसर पूछने क्यों नहीं आए
सुबह से लगी लाइन साढ़े 11 बजे करीब तक निगम के गेट तक पहुंच गई थी। उसके बावजूद लोग कह रहे थे कि अभी कोई अधिकारी नहीं आया। भले लाइन में लगे कई लोगों को अनुमति यहां से नहीं मिल सकती थी। लेकिन किसी जिम्मेदार एक बार समझाने तो आना चाहिए था।
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